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उत्तर प्रदेश और शास्त्रीय संगीत- ख्याल

ख्याल यानी विचार या कल्पना ये फारसी भाषा का शब्द है। ख्याल गायकी हिंदुस्तानी संगीत की एक ऐसी विधा है जो उत्तर भारत में सबसे अधिक प्रसिद्ध हुई। ख्याल गायकी की जड़े अगर ढूंढी जाए तो वे हिंदुस्तानी और फारसी संगीत दोनो के मिलाप में मिलती हैं। ख्याल गायकी या शैली की उत्पत्ति के बारे में अलग अलग विचारकों की राय में मतभेद है। कुछ विचारक इसे अमीरखुआरो की देन मानते हैं तो कुछ इसे जौनपुर के शर्की सुलतानों की जिसमे सुलतान मुहम्मद शर्की और हुसैन शाह का नाम लिया जाता है । खैर जो भी हो ख्याल जैसे विशिष्ट संगीत की उत्पत्ति का श्रेय किसी एक को नहीं बल्कि पूरी संस्कृति और यहां के लोगों को दिए जाना ही उचित है। 

बंदिश
ख्याल गायकी की रचनाएं बंदिश कहलाती है और इन्हे दो प्रकार से गाया जाता है। विलंबित यानी बड़ा ख्याल और द्रुत यानी लघु या छोटा ख्याल। विलंबित ख्याल ध्रुपद से ही निकला मान जाता है क्योंकि इसे धीमी गति में सांस रोककर और एक ताल में गाया जाता है जबकि द्रुत ख्याल को तेज गति से यानी चपलता के साथ गगाया जाता है। 18वी शताब्दी में मुहम्मद शाह के दरबार में सदारंग और अदारंग नाम के दो गायक हुए जिन्हे तानसेन का वंशज भी कहा जाता है इन दोनो भाइयों ने ख्याल के विकास में बहुत योगदान दिया। उन्होंने ख्याल गायकी में हजारों बंदिशों की रचना की और उन बंदिशों में से कुछ को आज भी गया जाता है। 

ख्याल का क्षेत्रीय विस्तार
ख्याल संगीत को कई रागों में गाया जा सकता है इसलिए यह ध्रुपद की तुलना में अधिक लचकदार है। ख्याल गायकी को मुगल संगीतज्ञों द्वारा बहुत प्रसिद्ध किया गया और इसे हिंदू राज्यों का भी समर्थन मिला इसीलिए उत्तर भारत में इसका खूब विस्तार हुआ । उत्तर प्रदेश में आगरा से लेकर लखनऊ और जौनपुर इस कला के केंद्र बिंदु बन गए । 

घराना और गायक
ख्याल गायकी में भी कई सारे प्रमुख घराने हुए। जैसे दिल्ली घराना जिसका श्रेय अमीर खुसरो को दिया जाता है । इसके अलावा आगरा घराना, ग्वालियर घराना, पटियाला घराना, इंदौर घराना, जयपुर अतरौली घराना, मेवाती घरानाआदि प्रमुख है । ये तो थी घरानों की बात अब अगर कुछ बड़े गायकों के नाम देखे जो इन घरानों से संबद्ध थे तो उनमें सबसे पहले नाम आता है उस्ताद बड़े गुलाम अली खां साहब का ये ग्वालियर घराने और पटियाला घराने से संबद्ध थे जिनका गया हुआ गीत याद पिया की आए आज भी संगीत प्रेमियों के लिए एक मिसाल है। आपने लता दी, मन्ना डे, बड़े गुलाम अली खान साहब, पंडित भीमसेन जोशी जी जैसे बड़े संगीतज्ञों के गीत तो सुने ही होंगे ये सब प्रशिक्षित शास्त्रीय गायक थे जिनका संबंध किसी न किसी बड़े घराने से था जैसे लता दी और मन्ना डे का भेंडीबाजार घराना, भीमसेन जोशी जी का किराना घराना और पंडित जसराज जी का संबंध मेवाती घराने से है ।

 

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