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उत्तर प्रदेश और शास्त्रीय संगीत-ध्रुपद

उत्तरप्रदेश जो कला की हर विधा में आगे है वो भला संगीत में पीछे कैसे रह जाए। उत्तरप्रदेश की धरती इतनी महान है कि यहां राम से लेकर कृष्ण और बुद्ध तक सब ने विचरण किया। इसी संस्कृति ने उत्तरप्रदेश की अवध और बृज की भूमियों से नए संगीत का सूत्रपात किया। भारतीय शास्त्रीय संगीत को हिंदुस्तानी और कार्नाटिक नामक दो शैलियों में बाटा गया है। हिंदुस्तानी संगीत उत्तर भारत में प्रचलित और विकसित हुआ तो कर्नाटक संगीत दक्षिण भारत में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में समय के साथ कई बदलाव हुए पर इसका प्राचीन रूप तो सामवेद से ही निकला है ।भरतमुनि के लिखे गए नाट्यशास्त्र का भी इसमें प्रभाव पड़ा। इसी हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का ही भाग है ध्रुपद। 

ध्रुपद

ध्रुपद वैसे तो अपनी जड़े सामवेद से ही लाया है पर इसका असली स्वरूप तो प्रबंध संगीत से ही निकल कर आया।ध्रुपद संगीत को उत्तर भारत के कई महत्वपूर्ण दरबाराें में स्थान मिला जैसे ग्वालियर के महाराजा ने ध्रुपद को अपने दरबार में एक विशेष स्थान दिया और इसे विकसित कराया। इस कार्य में स्वामी हरिदास का महत्वपूर्ण योगदान रहा जो भक्ति काल के एक महत्वपूर्ण संत थे। उन्होंने तानसेन और बैजूबावरा को इसकी शिक्षा दी और फिर इन दोनो ने ध्रुपद को एक विशेष ख्याति दिलाई। तानसेन ने मुगल बादशाह अकबर के दरबार में आकर इस संगीत को और अधिक उभारा। एक तरफ तो ध्रुपद संगीत दरबारो में ख्याति बटोर रहा था तो वहीं संत लोग इस संगीत को बृज क्षेत्र के मंदिरों में कृष्ण की उपासना करने के उपयोग में लाते थे और ऐसे करते करते उत्तर प्रदेश की भूमि में ध्रुपद का विकास होने लगा। धीरे धीरे करके ध्रुपद भी कई शैलियों में बाटा लगा और इन्हे वाणी कहा जाने लगा।

वाणी

वाणी ठीक उसी तरह है जैसे ख्याल गायकी में घराने होते हैं। ध्रुपद संगीत को गाने वाले गायक बताते हैं की ध्रुपद संगीत को मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि आराधना के लिए गया जाता है। ध्रुपद संगीत प्राचीन गुरु शिष्य परंपरा का पालन करता है। पहले ध्रुपद संगीत को संस्कृत में गया जाता था पर 15वो शताब्दी आते आते इसको बृज क्षेत्र में बृज भाषा में गया जाने लगा। ध्रुपद संगीत को गाने की शुरुआत आलाप से होती है। ध्रुपद संगीत में मुख्य चार वाणियां है। जैसे गौहर वाणी, डागर वाणी, खंडार वाणी ,और नौहर वाणी। इन वाणियों के अनुरूप ही ध्रुपद में कई सारे घराने हुए। घराने जो गाते तो ध्रुपद ही थे पर उनकी अपनी अपनी स्टाइल थी जो उनके गायन को अन्य घरानों से अलग बनाती थी।। इनमे प्रमुख हुए डागर घराना, तलवंडी घराना,, दरभंगा घराना और बेत्तियाह घराना। अगर आज की बात करे तो ध्रुपद गायकी में डागर भाइयों, और गुण्डेचा भाइयों ने काफी नाम कमाया है।

 

 

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