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उत्तर प्रदेश की मृदा

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मृदा या मिट्टी पृथ्वी की ऊपरी सतह पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की ऊपरी परत है, जो चट्टानों के विखंडन एवं वियोजन तथा वनस्पतियों के अवसादों के योग से बनती है। किसी भी क्षेत्र की मृदाएं पैतृक पदार्थ (चट्टान), जलवायु दशाएं (वर्षा, तापमान), ढाल की तीव्रता, वनस्पति और समय (दीर्घकालिक, अल्पकालिक ) पर निर्भर करती हैं। उत्तर प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं। प्रदेश के क्षेत्रफल का लगभग दो-तिहाई भाग गंगा तंत्र की धीमी गति से बहने वाली नदियों द्वारा लाई गयी जलोढ़ मिट्टी की गहरी परत से बनी है। यह मिट्टी कहीं रेतीली तो कहीं चिकनी दोमट है तथा अत्यधिक उपजाऊ है राज्य के दक्षिणी भाग की मिट्टी सामान्यतः मिश्रित लाल और काली या लाल से लेकर पीली है राज्य के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में मृदा कंकरीली से लेकर उर्वर दोमट तक है। जो महीन रेत और ह्यूमस मिश्रित है। जिसके कारण कुछ क्षेत्रों में घने जंगल विद्यमान है।
उत्तर प्रदेश की प्रमुख मिट्टियां-

  1. तराई मृदाएं
  2. पर्वतपदीय मृदाएं
  3. जलोढ़ मृदाएं
  4. लाल और पीली मृदाएं
  5. मिश्रित लाल एवं कालीन मृदाएं
  6. मध्यम काली मृदाएं
  7. कैल्शियम युक्त मृदाएं
  8. लवण प्रभावित मृदाएं
  9. लाल बलुई मृदाएं

उ.प्र. की मिट्टियों को प्रो. वाडिया, कृष्णन एवं मुखर्जी के वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर दो भागों में विभाजित किया जाता है-

  1. गंगा के विशाल मैदान की नूतन और उप-नूतन मिट्टियां तथा
  2. दक्षिण पठार की प्राचीन रवेदार और विंध्यन शैलीय या बुंदेलखंडीय मिट्टियां।

गंगा के विशाल मैदान की मृदाएं
इस क्षेत्र की लगभग सम्पूर्ण मृदा को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  • बांगर या पुरानी जलोढ़ मृदा
  • खादर या नवीन जलोढ़ मृदा

प्राचीनतम कॉप मिट्टी क्षेत्रों को बांगर कहते हैं। नवीन कॉप मिट्टी वाले क्षेत्रों को खादर कहते हैं। बांगर मिट्टी में फॉस्फोरस एवं चूने की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है जबकि नाइट्रोजन, पोटाश, जीवांश आदि पदार्थों की कमी पाई जाती है। बांगर मिट्टी को दोमट, मटियार, बलुई दोमट, मूंड या पुरातन कॉप मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है। उ. प्र. के पूर्वी भाग के बांगर मिट्टी को उपरहार मिट्टी भी कहा जाता है।

खादर मिट्टी नदियों के बाढ़ वाले मैदानों में पाई जाती है। खादर मिट्टी हल्के रंग वाली छिद्रयुक्त तथा महीन कणों वाली होती है। खादर मिट्टी बांगर की अपेक्षा अधिक उर्वरा शक्ति वाली होती है। खादर मिट्टी में सामान्यतः चूना, पोटाश, मैग्नीशियम तथा जीवांशों की अधिकता जबकि नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं ह्यूमस पदार्थों की कमी पाई जाती है। खादर मिट्टी को भूतन कॉप, बलुआ, सिल्ट बलुआ, मटियार दोमट आदि नामों से जाना जाता है।

लाल एवं काली मिश्रित मिट्टी राज्य के झांसी डिवीजन, मिर्जापुर, सोनभद्र के साथ-साथ प्रयागराज जिले के करछना और मेजा तहसील में पाई जाती है। इन जिलों के ऊपरी पठारी भाग में मिट्टी लाल है एवं दो प्रकार की है परवा और राकड़ | परवा हल्की रेतीली या रेतीली दोमट है, जबकि राकड़ क्षारीय है।

भाबर पर्वतपदीय क्षेत्र हैं, यहां की मिट्टी मोटी बालुओं तथा कंकड़ और पत्थरों से निर्मित बहुत छिछली है। इस क्षेत्र में नदियां लुप्त हो जाती हैं। भाबर के समानांतर निचले भाग में तराई क्षेत्र विस्तारित है। यहां की मृदा उपजाऊ, नम, दलदली और समतल है। इस मृदा में गन्ना एवं धान की अच्छी पैदावार होती है। उ.प्र. के गंगा-यमुना दोआब एवं गंगा- रामगंगा दोआब क्षेत्रों में जलोढ़ एवं कॉप मिट्टी का विस्तार है। उ. प्र. में जलोढ़ एवं दोमट मिट्टी सर्वाधिक क्षेत्र पर पाई जाती है। गंगा-यमुना तथा उनकी सहायक नदियों के बाढ़ वाले क्षेत्रों में प्लाइस्टोसीन युग में निर्मित बलुई मिट्टी के 10-12 फीट ऊंचे टीलों को भूड़ कहते हैं। भूड़ हल्की दोमट एवं मिश्रित बलुई मिट्टी होती है

दक्षिण पठार की प्राचीन रवेदार और विंध्यन शैलीय या बुंदेलखंडीय मिट्टियां

बुंदेलखंडीय मृदा उ.प्र. के दक्षिणी पठार की मिट्टियों को बुंदेलखंडीय मिट्टी कहते हैं। इस क्षेत्र में कावड़, पडवा (परवा), भोंटा, माड (मार), राकड़ आदि मिट्टिया पायी जाती हैं। इस क्षेत्र की काली मृदा को करेल, कपास अथवा रेगुर आदि नामों से भी जाना जाता है। भोंटा मिट्टी विंध्य पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है। माड (मार) मिट्टी, काली मिट्टी या रेगुर मिट्टी के समान चिकनी होती है। माड (मार) मिट्टी में सिलिकेट, लोहा एवं एल्युमीनियम खनिज पदार्थ पाए जाते हैं। माड मिट्टी उ.प्र. के पूर्वी क्षेत्रों में पाई जाती है। इस मिट्टी में चूना अधिक होता है।

पड़वा मिट्टी उ.प्र. के हमीरपुर जालौन और यमुना नदी के ऊपरी जिलों में पाई जाती है। पड़वा मिट्टी हल्के लाल रंग की होती है। राकड़ मिट्टी उ.प्र. के दक्षिण पर्वतीय एवं पठारी ढलानों पर पाई जाने वाले मिट्टी है।

लाल मिट्टी उ.प्र. के मिर्जापुर, सोनभद्र जिलों में पाई जाती है। लाल मिट्टी का निर्माण बालूमय लाल शैलों के अपक्षय से हुआ है। लाल मिट्टी का विस्तार बेतवा एवं धसान नदियों के जलप्लावित क्षेत्रों में भी पाया जाता है। लाल मिट्टी में नाइट्रोजन, जीवांश, फॉस्फोरस एवं चूना खनिजों की कमी पाई जाती है। लाल मिट्टी में गेहूं, चना एवं दलहन आदि फसलें उगाई जाती हैं।

ऊसर एवं रेह मिट्टी उ.प्र. के अलीगढ़, मैनपुर, कानपुर, सीतापुर, उन्नाव एटा इटावा, रायबरेली एवं लखनऊ जिलों में पाई जाती है तथा ये लवण से प्रभावित हैं। रेहयुक्त क्षारीय ऊसर भूमि का उत्तर प्रदेश में अधिक विस्तार है।
बंजर तथा भाट नामक मृदा उ.प्र. के गोरखपुर, बस्ती, महराजगंज कुशीनगर, सिद्धार्थ नगर एवं गोंडा जिलों में पाई जाती है। बंजर मिट्टी चिकनी और बलुई चिकनी दोनों प्रकार की होती है, इसमें चूना अपेक्षाकृत कम होता है। प्रदेश के जालौन झांसी, ललितपुर और हमीरपुर जिलों में काली मृदा का विस्तार होने के कारण चना, गेहूं, अरहर एवं तिलहन प्रमुख उपजें हैं।

जलप्लावित नदी के किनारे पाई जाने वाली मिट्टी को उ.प्र. में ढूंह के नाम से जाना जाता है। उत्तर प्रदेश के उत्तर-पूर्व में स्थित कुशीनगर जिले की मिट्टी को स्थानीय भाषा में 'भाट' कहा जाता है। इस मिट्टी में मोटे अनाज वाली फसलें उगाई जाती हैं।

टर्शियरी मिट्टी उत्तर प्रदेश में शिवालिक पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है। यह मिट्टी चाय की खेती के लिए उपयुक्त है। उ. प्र. के उत्तर-पश्चिम भाग की मिट्टी में फॉस्फेट की कमी पाई जाती है। उत्तर प्रदेश के जौनपुर, आजमगढ़ तथा मऊ जनपदों की मृदा में पोटाश की कमी पाई जाती है। जालौन, झाँसी, ललितपुर, हमीरपुर के क्षेत्र में काली मिट्टी भी पाई जाती है। यह मिट्टी भीगने पर फैलती हैं तथा सूखने पर सिकुड़ती है। अलीगढ़, कानपुर, सीतापुर, उन्नाव एटा इटावा, रायबरेली तथा लखनऊ की मिट्टी ऊसर तथा रेह से प्रभावित है।

उत्तर प्रदेश में मृदा अपरदन की समस्याः
जल बहाव अथवा वायु के वेग अथवा हिम के पिघलने से एक स्थान की मिट्टी का अन्यत्र स्थान पर चला जाना मृदा अपरदन कहलाता है। उत्तर प्रदेश में वायु अपरदन प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों में एवं जलीय अपरदन पूर्वी एवं दक्षिणी क्षेत्रों में अधिक होता है। चम्बल नदी अधिग्रहण क्षेत्र में अवनालिका अपरदन सर्वाधिक होता है, जिससे उ. प्र. का इटावा जिला विशेष रूप से प्रभावित है। इसके कारण ही आगरा, इटावा और जालौन जिलों में बीहड़ पाए जाते हैं। उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र में अवनालिका अपरदन, दक्षिणी क्षेत्र में रिल अपरदन तथा पूर्वी एवं उत्तरी क्षेत्र में परत अपरदन विशेष रूप से प्रभावी है। उत्तर प्रदेश में मृदा अपरदन के मुख्य कारण मानसून वर्षा की प्रकृति, वनों का अभाव तथा ढाल की तीव्रता आदि हैं। वायु अपरदन से उ.प्र. के सर्वाधिक प्रभावित जिले मथुरा एवं आगरा हैं। जलीय अपरदन से उ.प्र. का सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र हिमालय का तराई प्रदेश है। प्रदेश के अलीगढ़, मैनपुरी, कानपुर, उन्नाव एटा इटावा, रायबरेली, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, जौनपुर और प्रयागराज जिलों में अधिक सिंचाई एवं उर्वरकों के इस्तेमाल से लगभग 10 प्रतिशत भूमि ऊसर हो चुकी है। प्रदेश के पश्चिमी एवं दक्षिणी क्षेत्रों में लवणीय या क्षारीय मृदा पाई जाती है, जबकि प्रदेश के पूर्वी क्षेत्रों (तराई भागों में) कुछ हिस्सों में अम्लीय मृदा पाई जाती है।

भारत का बंजर भूमि एटलस 2019:

उत्तर प्रदेश की स्थिति उत्तर प्रदेश में बंजर भूमि, वर्ष 2008-09 के 9619.35 वर्ग किमी. ( देश का 3.99 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र) से कम होकर वर्ष 2015-16 में 8537.06 वर्ग किमी. (देश का 3.54 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र) हो गई है। उपर्युक्त अवधि में राज्य में बंजर भूमि में 1082.29 वर्ग किमी. की कमी आई है। प्रदेश में 988.36 वर्ग किमी. बंजर भूमि को कृषि भूमि में परिवर्तित किया गया है, जबकि 89.09 वर्ग किमी. बंजर भूमि को जल निकाय के रूप में परिवर्तित किया गया है। हरदोई जिले में 79.25 वर्ग किमी. तथा कानपुर देहात में 72.19 वर्ग किमी. बंजर भूमि में कमी आई है। बलिया जिले में 32.01 वर्ग किमी एवं महराजगंज में 1.83 वर्ग किमी. बंजर भूमि में वृद्धि हुई है। प्रदेश में झांसी जिले में सर्वाधिक बंजर भूमि (445.36 वर्ग किमी.) है। इसके पश्चात आगरा (426.74 वर्ग किमी.) का स्थान है। प्रदेश में लगभग 2129.61 वर्ग किमी. क्षेत्र लवणता / क्षारीयता से प्रभावित है। लवणता / क्षारीयता से प्रभावित मिट्टियां मुख्यतः रायबरेली, औरैया, आजमगढ़, एटा, फतेहपुर, हरदोई, जौनपुर, कन्नौज कानपुर देहात, लखनऊ, मैनपुरी, उन्नाव में है। सर्वाधिक लवणीय / क्षारीय मृदा रायबरेली जिले में है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1. उत्तर प्रदेश की मृदा के प्रकारों का वर्णन करें।
प्रश्न 2. उत्तर प्रदेश में पायी जाने वाली विभिन्न प्रकार की मृदाओं का वर्णन करते हुए मृदा अपरदन की समस्या को विस्तार से समझाएं।

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