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निबंधात्मक मुद्दे भाग 13: भारतीय कृषि में निजी क्षेत्र की भूमिका (संभावनाएँ और चुनौतियाँ)

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भारत एक कृषि प्रधान देश है आज भी भारत की आधी से अधिक आबादी प्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। भारत की खाद्य सुरक्षा कृषि की सफलता पर निर्भर है। स्वतंत्रता के बाद से ही कृषि सरकार के प्रयासों पर निर्भर रही है। सिंचाई परियोजनाओं से लेकर अनुसंधान तक में सरकार पर निर्भरता के कारण कृषि अवसंरचना का विकास धीमा रहा तथा अनुसंधान पर व्यय अत्यंत सीमित रहा। इसके अलावा छोटी जोतों, भंडारण अवसंरचना तथा प्रसंस्करण की कमी कृषि क्षेत्र की सबसे बड़ी बाधाएँ हैं। किसानों की आय बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है कि इन बाधाओं को दूर किया जाए। सरकार के सीमित संसाधनों पर अत्यधिक दबाव तथा कृषि के विकास की बढ़ती आवश्यकता को देखते हुए अन्य विकल्प तलाशनें में आवश्यक हो गए हैं। इन बदलती आवश्यकताओं के कारण कृषि में निजी क्षेत्र की भूमिका महत्वपूर्ण होती जा रही है। कृषि की सफलता अब बहुत हद तक निजी क्षेत्र के प्रभावी उपयोग पर निर्भर करती है। बीज उत्पादन, मशीनरी, कृषि में नवोन्मेष आदि में निजी क्षेत्र अग्रणी हैं। छोटी जोतों की समस्या के समाधान में कांट्रैक्ट फार्मिंग हो या उत्पादन पश्चात् अवसंरचना की आवश्यकता निजी क्षेत्र की इन सभी क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका हो सकती है। हालांकि निजी क्षेत्र की भूमिका विवादों का विषय रही है। हालिया किसान आंदोलनों में विरोध का एक प्रमुख कारण निजी क्षेत्र की बढ़ती भूमिका को लेकर था। अतः कृषि में निजी क्षेत्र की संभावनाओं के साथ-साथ चुनौतियों का मूल्यांकन आवश्यक है।

भारतीय कृषि में निजी क्षेत्र की भूमिकाः संभावनाएँ-
किसानों की आय दोगुना करने तथा कृषि क्षेत्रक के विकास में निजी क्षेत्र की संभावनाएँ उत्पादन के पूरे जीवनचक्र में देखी जा सकती हैं:-

 

 

कृषि की सफलता उन्नत बीजों पर निर्भर है। विश्व के सभी देशों में निजी कंपनियाँ बीज अनुसंधान और विकास में अग्रणी हैं (जैसे- मोंसैटो)। भारत में भी निजी क्षेत्र विभिन्न फसलों के लिए बीज के विकास में सहायक हो सकता है जो भारतीय जलवायु एवं आवश्यकताओं के अनुरूप हो। 

ऊर्वरक कारखाने मुख्यत: निजी क्षेत्रक के अंतर्गत ही हैं। भारतीय आवश्यकताओं के अनुरूप ऊर्वरक उत्पादन में वे सहायक हैं। नीम लेपित यूरिया जैसे नवोन्मेष भारतीय य परिदृश्य में कर्वरक दक्षता सुधारने में मदद कर सकते हैं। तैयार उत्पादों के खरीदार के रूप निजी क्षेत्रक निर्णायक सिद्ध हो सकता है तथा कांट्रैक्ट फार्मिंग किसानों की आय को बढ़ाने में सहायक हो सकती है।

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 92000 करोड़ रूपये की फसलें भण्डारण क्षमता की कमी के कारण नष्ट हो जाती हैं। निजी क्षेत्र भण्डारण अवसंरचना की कमी को पूरा करने में सहायक हो सकता है। कोल्डस्टोरेज, भण्डारण गृह आदि का निर्माण निजी क्षेत्र की सहायता से किया जा सकता है।

खाद्य प्रसंस्करण की भारत में अत्यंत कमी है चीन (65%) अमेरिका ( 90% ) की तुलना में भारत में केवल 10% खाद्य प्रसंस्करण किया जाता है। भारत में कुल उत्पादित फल और सब्जियों का लगभग 30% नष्ट हो जाता है यदि निजी क्षेत्र को इस हेतु प्रोत्साहित किया जाए, तो न केवल किसानों की आय में वृद्धि की जा सकेगी ही, बल्कि रोजगार सृजन भी हो सकेगा। इसके अलावा भारत की खाद्यप्रसंस्करण संभावनाओं का दोहन निजी क्षेत्र के लिए भी लाभप्रद होगा । वर्तमान में विपणन की अक्षमता तथा बिचौलियों की अधिकता किसानों की आय में कमी का मुख्य कारण है। निजी क्षेत्र का उपयोग विपणन अवसंरचना सुधार, नई मंडियों के निर्माण तथा डोर-टू-डोर डिलेवरी में किया जा सकता है। निजी क्षेत्र कृषि निर्यात में अग्रणी भूमिका निभाता है। कृषि क्षेत्रक के विकास में निर्यात के आकर्षक गंतव्य तथा मांग के अनुसार उत्पादन कर, निर्यात प्रोत्साहित किया जाता है।

मशीनरी का निर्माण कृषि दक्षता सुधार की प्राथमिक शर्त है। निजी क्षेत्रक द्वारा कृषि की अवश्यकताओं हेतु की नवोन्मेष एवं मशीनरी उत्पादन में अपार संभावनाएं है।

शोध के क्षेत्र में बीज, कृषि पद्धतियों, शस्यन तथा विपणन से लेकर मशीनरी तक शोध में निजी निवेश अत्यंत आवश्यक है। वर्तमान पारंपरिक कृषि को अधिक दक्ष एवं लाभदायी बनाने के लिये आवश्यक मशीनरी का निर्माण एवं शोध भी अत्यंत आवश्यक है। छोटी जोतों तथा बाजार तक पहुँच की समस्या का समाधान कांट्रैक्ट फार्मिग के माध्यम से किया जा सकता है। किसानों के समूहों को प्राइवेट कंपनियों से जोड़कर इन्हें, तकनीकी, उन्नत बीज और बाजार पहुँच प्राप्त कराई जा सकती है।

भारतीय कृषि में निजी क्षेत्र की भूमिका चुनौतियाँ:- 

भारत में निजी क्षेत्र के कृषि में बढ़ते प्रभाव के प्रति किसानों का अविश्वास सबसे बड़ी चुनौती है। हालिया किसान आंदोलन में सबसे प्रमुख मुद्दा निजी क्षेत्र की बढती भूमिका को लेकर था। इस अविश्वास का सबसे प्रमुख कारण शोषण की संभावना है। कांट्रैक्ट फार्मिग में किसानों की विधिक अज्ञानता का फायदा न उठाया जाए यह सबसे बड़ी चिन्ता है। नीतियों में पारदर्शिता की कमी तथा शासन का जवाबदेही न होना किसानों की असुरक्षाओं को बढ़ा देता है।

 

इन सब के अलावा निजी क्षेत्र हेतु सरकारी प्रोत्साहनों का अभाव भी एक चुनौती है। इसके अलावा विभिन्न लाभार्थी वर्गो द्वारा सुधारों का विरोध निहित हितों के कारण भी किया जाता है। जिसे रोकने की आवश्यकता है।

आगे की राह:

सरकार के संसाधनों पर दबाव तथा कृषि क्षेत्रक की बढ़ती मांग को देखते हुए कृषि में निजी क्षेत्र का महत्व बढ़ता जा रहा है। मॉडल कांट्रैक्ट फार्मिग अधिनियम की कमियों को सुधारते हुए कृषि क्षेत्रक में निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए व्यापक रणनीति की आवश्यकता है। किसानों का विश्वास पूर्ण पारदर्शी तंत्र तथा जवाबदेही सुनिश्चित करके ही बढ़ाया जा सकता है। निजी निवेश में वृद्धि भी एक बेहतर संरचना, पारदर्शी ढाँचे एवं प्रोत्साहन से ही सम्भव है। अतः सरकार को इस दिशा में प्रयास करना चाहिए ।

ध्यान रहे-
"यदि कृषि विफल हो जाती है तो सबकुछ विफल हो जाएगा" इसलिए कृषि किया जाना अत्यंत आवश्यक है। 

 

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