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उत्तर प्रदेश : भौगोलिक स्थिति

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उत्तर प्रदेश भारत का सीमांत राज्य है जिसकी उत्तरी सीमा नेपाल को स्पर्श करती है। उत्तराखंड के गठन के पूर्व इसकी सीमाएं चीन के तिब्बत क्षेत्र से भी जुड़ी थी। प्राकृतिक रूप से उत्तर प्रदेश के उत्तर में हिमालय की शिवालिक श्रेणियां, पश्चिम, दक्षिण-पश्चिम एवं दक्षिण में यमुना नदी तथा विंध्य श्रेणियां और पूर्व में गंडक नदी है। यह काफी बड़े भाग में फैला है और इसमें समतल जमीन से लेकर उत्तर में ऊँचे पहाड़ भी मौजूद है। उ. प्र. का वर्तमान भौगोलिक स्वरूप 9 नवंबर, 2000 को अस्तित्व में आया है। 9 नवंबर, 2000 को उ.प्र. के 13 पर्वतीय जिलों को काटकर उत्तरांचल (अब उत्तराखंड) राज्य का निर्माण किया गया।

भौगोलिक अवस्थिति :
भूगर्भिक दृष्टि से उ. प्र. प्राचीनतम गोंडवाना लैंड का भू-भाग है। उ. प्र. के दक्षिण भाग में स्थित पठारी भाग प्रायद्वीपीय भाग का ही अंग है, जिसका निर्माण विंध्य क्रम की शैलों द्वारा प्री-कैम्ब्रियन युग में हुआ है। उ.प्र. का अक्षांशीय विस्तार 23°52' से 31°28' उत्तरी अक्षांश के मध्य है। कुल अक्षांशीय विस्तार 7°36' है। उ.प्र. का देशांतरीय विस्तार 77°51' पूर्व से 84°38' पूर्वी देशांतर के मध्य है। प्रदेश का कुल देशांतरीय विस्तार 7°09' है। राज्य का पूर्व से पश्चिम तक विस्तार 650 किमी. तथा उत्तर से दक्षिण तक का विस्तार 240 किमी. है। राज्य का कुल क्षेत्रफल 2,40,928 वर्ग किमी. है जो देश के कुल क्षेत्रफल का 7.33 प्रतिशत है।

उत्तर प्रदेश से लगी अन्य प्रादेशिक सीमाएं
उ.प्र. की सीमाएं केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली सहित कुल 9 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेश से लगी हुई हैं। उ.प्र. की सीमा को स्पर्श करने वाले 8 राज्य हैं- हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार एवं उत्तराखंड तथा इसकी सीमा को स्पर्श करने वाला एकमात्र केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली है। इसकी सीमाएं उ.प्र. के गाजियाबाद एवं गौतमबुद्ध नगर से लगी हुई हैं। प्रदेश की पूर्वी सीमा बिहार एवं झारखंड से लगी हुई है। प्रदेश की उत्तरी सीमा नेपाल के अतिरिक्त उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश से लगी हुई है। उ. प्र. की पश्चिमी सीमाएं हरियाणा, राजस्थान तथा केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली से लगी हैं। उ.प्र. की दक्षिणी सीमाएं मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ को स्पर्श करती हैं। उ.प्र. की सबसे लंबी सीमा मध्य प्रदेश से स्पर्श करती है। उ. प्र. की न्यूनतम सीमा रेखा से स्पर्श करने वाला राज्य हिमाचल प्रदेश है। उ.प्र. का एकमात्र जिला सहारनपुर है जिसकी सीमा हिमाचल प्रदेश लगती है। इसके अतिरिक्त इस जिले की सीमा हरियाणा एवं उत्तराखंड से भी लगी है। उ.प्र. के सर्वाधिक 11 जिलों को स्पर्श करने वाला राज्य मध्य प्रदेश है। सर्वाधिक 4 प्रदेशों को स्पर्श करने वाला उ.प्र. का एकमात्र जिला सोनभद्र है। यह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड एवं बिहार को स्पर्श करता है। उ. प्र. की सीमा को स्पर्श करने वाला एकमात्र विदेशी राष्ट्र नेपाल है। मध्य प्रदेश से तीन तरफ से घिरा जिला ललितपुर है। क्षेत्रफल की दृष्टि से उ. प्र. का भारत में चौथा स्थान है। उ. प्र. से अधिक क्षेत्रफल वाले राज्य हैं- राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र प्रदेश के सबसे पूर्वी एवं पश्चिमी जिले क्रमशः बलिया एवं शामली हैं। प्रदेश के सबसे उत्तरी एवं दक्षिणी जिले क्रमश: सहारनपुर एवं सोनभद्र हैं। प्रदेश के कुछ जिलें को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भी सम्मिलित किया गया है जो है गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, शामली एवं बागपत (कुल शामिल खेत्र- 14,826 वर्ग किमी.) हैं।

भौतिक विभागः 
उत्तराखंड के गठन से पूर्व राज्य के तीन भू-भाग थे पर्वतीय क्षेत्र, मैदानी क्षेत्र और दक्षिण का पठारी क्षेत्र । परंतु उत्तराखंड के गठन के बाद पूरा पर्वतीय क्षेत्र, उत्तर प्रदेश से अलग हो गया है और अब इस पर्वतीय क्षेत्र से लगा हुआ भाबर-तराई क्षेत्र ही उत्तर प्रदेश में बचा हुआ है। उ.प्र. को वर्तमान में मुख्यत: तीन प्राकृतिक प्रदेशों में विभाजित किया गया है-

  • भाबर एवं तराई का प्रदेश
  • गंगा-यमुना का मैदान
  • दक्षिण का पठारी प्रदेश

भाबर एवं तराई का प्रदेश
भाबर एवं तराई का प्रदेश पश्चिम में सहारनपुर से लेकर पूर्व में देवरिया एवं कुशीनगर तक एक पतली से पट्टी भाबर और तराई कहलाती है। भाबर क्षेत्र में नदियां लुप्त हो जाती हैं, जो तराई क्षेत्र में फिर से प्रकट होती हैं। भाबर क्षेत्र में जलोढ़ पंख और जलोढ़ शंकु जैसी नदी से निर्मित स्थलाकृतियां बनती हैं। भावर क्षेत्र वह पर्वतीय भू-भाग है जो कंकड़-पत्थरों से निर्मित है। इस खेत्र का विस्तार उ. प्र. के बिजनौर, सहारनपुर, पीलीभीत शाहजहांपुर एवं लखीमपुर खीरी जिलों में है। पश्चिम में यह क्षेत्र लगभग 34 किमी. चौड़ा है, परंतु पूर्व की ओर बढ़ने के साथ यह संकरा होता जाता है। तराई क्षेत्र, भाबर के दक्षिण में दलदली एवं गाद मिट्टी वाला क्षेत्र है जो महीन अवसादों से निर्मित है। घने जंगल और लंबे हाथी घासों से ढका हुआ तराई क्षेत्र कभी 80 से 90 किमी. तक चौड़ा था तथा इसके अंतर्गत सहारनपुर, बिजनौर, रामपुर, बरेली, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, बहराइच, गोंडा, बस्ती, सिद्धार्थ नगर, गोरखपुर, महराजगंज, देवरिया और कुशीनगर जिलों के भाग आते थे। इधर कुछ वर्षों से भूमि सुधार कार्यों के कारण इसकी चौड़ाई काफी कम हो गई है जिससे इसका काफी भाग उपजाऊ भूमि के रूप में किसानों को प्राप्त हो गया है। अब यहां गन्ना, गेहूँ और धान की फसलें रिकॉर्ड पैदावार दे रही है। अनेक जगहों पर जूट की भी अच्छी खेती हो रही है। प्रदेश के ऊंचाई वाले भागों में मिलने वाली प्राचीनतम जलोढ़ मिट्टी को रेह (Rarh) नाम से जाना जाता है। भाबर क्षेत्र और दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्र को छोड़कर पूरा प्रदेश नदियों द्वारा बाढ़ के दौरान लाई गई कांप मृदा से बना है।

गंगा-यमुना के विस्तृत मैदानी प्रवेशः

इसको तीन उप-विभागों में बांटा गया है

  • गंगा-यमुना का ऊपरी मैदान
  • गंगा का मध्य मैदानी प्रदेश
  • गंगा का पूर्वी मैदान

गंगा-यमुना के ऊपरी मैदान का विस्तार लगभग 500 किमी. लंबी एवं 80 किमी. चोड़ी पट्टी के रूप में है। गंगा-यमुना के मध्य मैदानी प्रदेश का विस्तार उ.प्र. के सहारनपुर, बिजनौर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, हाथरस, मथुरा, आगरा, मैनपुरी, एटा, बदायूं, मुरादाबाद तथा बरेली जिलों में मिलता है। गंगा के पूर्वी मैदान का विस्तार उ.प्र. के वाराणसी, जौनपुर, गाजीपुर, आजमगढ़, बलिया, मिर्जापुर, सोनभद्र एवं संत रविदास नगर में है। गंगा-यमुना के मैदान का निर्माण कांप मिट्टी से हुआ है। गंगा-यमुना के विस्तृत मैदानी प्रदेश की समुद्र तल से औसत ऊंचाई 300 मी. है। इस विस्तृत मैदानी प्रदेश का निर्माण अभिानूतन एवं अतिनूतन युग में नदी घाटी में अवसादीकरण से हुआ है। इस विस्तृत मैदानी प्रदेश का ढाल पश्चिमांचल में उत्तर से दक्षिण की ओर तथा पूर्वांचल में पश्चिमोत्तर से दक्षिण-पूर्व की ओर है।

दक्षिण का पठारी प्रदेश
दक्षिण का पठारी प्रदेश उ.प्र. में दक्षिण पठारी प्रदेश का कुल क्षेत्रफल 45200 वर्ग किमी. है। दक्षिण पठारी प्रदेश के अंतर्गत बुंदेलखंड एवं बघेलखंड के भू-भाग सम्मिलित हैं। यह क्षेत्र दक्कन के पठार का ही प्रसरण है तथा इस भू-भाग की उत्तरी सीमा यमुना तथा गंगा नदी द्वारा निर्धारित है तथा दक्षिणी सीमा विंध्य पर्वत द्वारा निर्धारित होती है। पूर्व में केन नदी तथा पश्चिम में बेतवा तथा पाहुज नदियां इसकी सीमा निर्धारित करती हैं। इसके अंतर्गत झांसी, जालौन, हमीरपुर, महोबा, चित्रकूट, ललितपुर और बांदा जिले, प्रयागराज जिले की मेजा और करछना तहसीलें गंगा के दक्षिण में पड़ने वाला मिर्जापुर का हिस्सा तथा चंदौली जिले की चकिया तहसील आती है। इस पठारी क्षेत्र की सामान्य ऊंचाई 300 मीटर के आस-पास है तथा कुछ स्थानों पर यह ऊंचाई 450 मीटर से भी अधिक है। मिर्जापुर, सोनभद्र जिले के कुछ स्थानों पर कैमूर और सोनाकर की पहाड़ियां लगभग 600 मीटर तक ऊंची हैं। बुंदेलखंड का निर्माण उ.प्र. के दक्षिण उच्च प्रदेश में विंध्य काल की प्राचीनतम नीस चट्टानों द्वारा तथा निम्न प्रदेशों में नदियों द्वारा निक्षेपित मिट्टी से हुआ है। बुंदेलखंड के पश्चिमी भाग में काली मृदा (रेगुर) का विस्तार है, जो मालवा पठार का ही विस्तार है। कैमूर शृंखला बुंदेलखंड से लगी हुई है। इसकी रचना विंध्य शैलों से हुई है। बुंदेलखंड में 'च्लास' नामक घास बहुतायत में पायी जाती है। बघेलखंड क्षेत्र की प्रमुख नदी सोन है। बघेलखंड के उत्तर एवं दक्षिण में क्रमश: सोनपुर एवं रामगढ़ की पहाड़ियां अवस्थित हैं। दक्षिण पठारी प्रदेश की औसत ऊंचाई 300 मीटर है। दक्षिण पठारी प्रदेश का ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर है। दक्षिण पठारी प्रदेश की प्रमुख नदियां चंबल, बेतवा, केन, सोन एवं टोंस हैं। कम वर्षा के कारण इस पठारी क्षेत्र में वृक्ष-वनस्पतियां छोटी होती हैं। यहां की मुख्य फसलें ज्वार, तिलहन, चना और गेहूं हैं। बघेलखंड क्षेत्र में शंक्वाकार टीले बहुतायत से मिलते हैं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1. उत्तर प्रदेश की भौगोलिक स्थिति को स्पष्ट करते हुए इसके प्रमुख भौतिक प्रदेशों का उल्लेख करें।
प्रश्न 2. उत्तर प्रदेश का तराई प्रदेश बुंदेलखण्ड क्षेत्र से भौतिक रूप में किस प्रकार भिन्न है। वर्णन करें।
प्रश्न 3. उत्तर प्रदेश को कितने भौतिक प्रदेशों में बाँटा जा सकता है? इसके विभिन्न प्रदेशों की भौगोलिक विशेषताओं का वर्णन करें।

 

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