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भारत के स्वतंत्रता संग्राम में 1857 से पहले उत्तर प्रदेश का योगदान

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सन् 1764 ईसवी के बक्सर युद्ध में मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय, अवध के नवाब शुजाउदौला एवं बंगाल के नवाब मीर कासिम पर ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत ने भारतीयों को गुलामी की ओर ले गया, जिसे लंबे संघर्ष से प्राप्त स्वतंत्रता के बाद मिटाया जा सका। 1780 ईस्वी में बनारस के राजा चेत सिंह को भी अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य कर दिया गया। शुजाउदौला के बाद असफउददौला और फिर 1797 ईस्वी में उसका भाई सादत अली, अवध का नवाब बना। सादत अली ने 1801 में अंग्रेजों को प्रयागराज, गोरखपुर, रोहिलखंड, कानपुर, फतेहपुर, इटावा, एटा, दक्षिण मिर्जापुर और कुमायूं का क्षेत्र सौंप दिया। 1803 में अंग्रेजों ने मराठों को पराजित कर अलीगढ़, मेरठ, आगरा, झांसी, हमीरपुर, जालौन के क्षेत्रों पर अधिकार करके उत्तर प्रदेश के लगभग समूचे क्षेत्रफल पर अंग्रेजों का शासन स्थापित हो गया।  

                                 

भारत पर अंग्रेजी सत्ता की स्थापना के 100 वर्ष बाद 1857 में देश का प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष शुरू हुआ। इसका प्रारंभ 10 मई 1857 को उत्तर प्रदेश के मेरठ से हुआ था। यद्यपि नाना साहब के साथ मिलकर अजीमुल्ला खाँ ने बिठूर (कानपुर) में इस स्वाधीनता संघर्ष की योजना तैयार की थी। इस विद्रोह की शुरुआत सैनिकों द्वारा गाय और सुअर की चर्बी युक्त कारतूस को मुंह से खोलने से इनकार करने के साथ हुई थी। अंग्रेज अधिकारियों ने भारतीय सैनिकों के असंतोष को डराकर दबाने की कोशिश की तो स्थिति विस्फोटक हो गई । 34 वीं नेटिव इन्फेंट्री के सैनिक बलिया निवासी मंगल पांडे ने बैरकपुर छावनी में 29 मार्च 1857 को मेजर सर्जेंट के ऊपर गोली चला दी, जिसके कारण मंगल पांडे को फांसी दे दी गई और 34 वी रेजीमेंट को समाप्त कर दिया गया ।

विद्रोही सैनिकों ने अपने ब्रिटिश अधिकारियों पर गोली चलाई और दिल्ली के लिए प्रस्थान किया। 12 मई को दिल्ली पर अधिकार कर विद्रोहियों ने मुगल बादशाह बहादुरशाह द्वितीय को भारत का सम्राट घोषित कर दिया। शीघ्र ही लखनऊ, कानपुर, बरेली, झांसी, वाराणसी और प्रयागराज में विद्रोह फैल गया। कानपुर में तात्या टोपे के साथ नाना साहब ने अंग्रेजों को चुनौती दी तो झांसी में विद्रोह का नेतृत्व रानी लक्ष्मीबाई ने किया। लखनऊ में विद्रोहियों का नेतृत्व अवध की बेगम हजरत महल ने किया। अनेक देशी शासक इस विद्रोह में तटस्थ बने रहे, जबकि कुछ शासकों ने विद्रोह के दमन में अंग्रेजों का साथ दिया। 5 जून 1857  को विद्रोहियों ने कानपुर पर अधिकार कर लिया और नाना साहब को पेशवा घोषित कर दिया ।  

 
     

झांसी में रानी लक्ष्मीबाई को शासिका घोषित कर दिया गया, बरेली में खान बहादुर खान ने बतौर नवाब नाजिम सत्ता अपने हाथ में ले ली। अंग्रेजी सेना ने ह्यूरोज के नेतृत्व में 3 अप्रैल 1858 को झांसी पर अधिकार कर लिया। रानी लक्ष्मीबाई अपने सहयोगी तात्या टोपे के साथ ग्वालियर चली गई लेकिन जून 1858 में अंग्रेजों ने उन पर वहां भी आक्रमण कर दिया। अंग्रेजों से लड़ते हुए रानी लक्ष्मीबाई 17 जून 1858 को वीरगति को प्राप्त हुई। मई -जून 1858 में बरेली, बनारस, प्रयागराज पर भी अंग्रेजों का दोबारा अधिकार हो गया लखनऊ और शाहजहांपुर में विद्रोह का नेतृत्व करने वाली बेगम हजरत महल पराजित होने के बाद नेपाल चली गई जहां, उनकी मृत्यु हो गई। जुलाई, 1858 तक विद्रोह पूरी तरह समाप्त हो गया।      

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