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"हम अपने पूर्वजों से पृथ्वी का वंशानुगत अधिकार नहीं प्राप्त करते हैं, हम इसे अपनी भावी पीढ़ियों से उधार लेते हैं।"
जलवायु परिवर्तन वर्तमान समय की सबसे बड़ी चुनौती है। बढ़ता वैश्विक तापमान, मौसम और जलवायु में तीव्र बदलाव, निचले तटीय क्षेत्रों को डुबोता बढ़ता समुद्री जलस्तर, सम्पूर्ण विश्व में हिमनदों के पिघलने की बढ़ती दर पृथ्वी पर न केवल मानवीय जीवन के समक्ष संकट है बल्कि यह अन्य जीवों को भी नष्ट कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन, उसके वैश्विक प्रभावों और भारतीय संदर्भ में इसके निहितार्थों का विस्तृत विश्लेषण आगे किया गया है।
जलवायु परिवर्तन वैश्विक तापमान, वर्षण, वायु के प्रारूप और जलवायु के अन्य कारकों में लंबी अवधि (कई दशकों) में हुए अपेक्षाकृत स्थायी परिवर्तनों को संदर्भित करता है। इसका प्रभाव पृथ्वी पर लगभग सभी क्षेत्रों पर पड़ता है मानव तथा अन्य सजीवों की विभिन्न गतिविधियाँ प्रभावित होती है। जलवायु परिवर्तन के लिए विभिन्न कारक उत्तरदायी हैं जिन्हें प्राकृतिक और मानवजन्य कारकों में बाँटकर देखा जा सकता है।
प्राकृतिक कारकों में महाद्वीपीय प्रवाह, ज्वालामुखी क्रियाएँ, पृथ्वी के झुकाव, धूमकेतु एवं उल्कापिंडी आदि के प्रभावों को रखा जा सकता है। प्राकृतिक कारक दीर्घकालिक रूप से जलवायु पर प्रभाव डालते हैं। मानवजन्य कारकों में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन, एअरोसोल उत्सर्जन, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और बदलते भूमि उपयोग आदि को रखा जा सकता है।
IPCC की छठी आकलन रिपोर्ट के अनुसार मानवजन्य कारकों (एन्थ्रोपोजेनिक फैक्टर्स) ने स्पष्ट रूप से वायुमंडल महासागर और स्थलीय भूभाग के तापमान में वृद्धि की है। यह वृद्धि औद्योगिकरण पश्चात् युग में हुई है। इसके परिणामस्वरूप वैश्विक जलवायु परिवर्तन के विभिन्न प्रभाव दिखाई पड़ रहे हैं जैसे-
उत्तरी तथा दक्षिणी दोनों गोलाद्धों में जलवायु क्षेत्रों का स्थानांतरण ध्रुवों की ओर हुआ है। 1950 के दशक से वैश्विक स्तर पर लू और अकाल जैसी मिश्रित चरम घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि हुई है तथा वैश्विक स्तर पर हिमनदों के पिघलने की दर पिछले 2000 वर्षों में सर्वाधिक है। बुवाई के मौसम में विलंब से कृषि प्रभावित हो रही है। वैश्विक पृष्ठीय तापमान में 1.07 °C की वृद्धि 2019 तक हो चुकी है। इसके अलावा आर्कटिक क्षेत्र में हिमपिघलने की दर में वृद्धि हो रही है तथा समुद्री जल स्तर में वृद्धि दर जोकि 1901 से 1971 के बीच 1.3 मिलीमीटर प्रतिवर्ष वर्ष 2006 से 2018 के बीच बढ़कर 1.3 मिलीमीटर प्रतिवर्ष हो गई है। बढ़ते तापमान में ऊर्जा की मांग में बढ़कर 3.7 मिली मीटर प्रतिवर्ष हो गई है।
अब सवाल यह है कि इन जलवायु परिवर्तनों से भारत किस प्रकार प्रभावित हो रहा है?
जर्मनवाच द्वारा जारी वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक के मुताबिक परिवर्तन के प्रति सर्वाधिक सुभेद्य देशों की सूची में भारत वर्ष 2021 में 7 वें स्थान पर है जबकि 2020 में 5 वे स्थान पर था। वर्ष 2018 में जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में सर्वाधिक मौतें दर्ज की थी और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से सर्वाधिक मौद्रिक क्षति भी हुई थी।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा जारी 'भारतीय क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन का आकलन' नामक रिपोर्ट में जलवायु के कारणों और प्रभावों का भारतीय परिप्रेक्ष्य में अध्ययन किया गया है इसके निष्कर्षों के अनुसार भारत में तापमान वृद्धि से सूखा, बाढ़, उत्तरी हिन्द महासागर में समुद्री जलस्तर में वृद्धि, उष्णकटिबंधीय चक्रवातों तथा हिमालयी क्रायोस्फीयर में परिवर्तन से अत्यधिक प्रभावित होगा। जलवायु परिवर्तन से विभिन्न क्षेत्रों में समस्या उत्पन्न करने की संभावना है तथा बढ़ते तापमान और ग्रीष्म ऋतु की चरम दशाएं, बाढ़ सूखा और वर्षा की परिवर्तनशीलता के कारण खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। ये कारक सूखा और बाढ़ के रूप में भारत में जल संकट को और अधिक बड़ा सकते हैं। बढ़ता तापमान ऊर्जा की मांग में बढ़ोत्तरी करेगा चूंकि भारत की जीवाश्म ईधन पर निर्भरता अधिक है अतः यह न केवल आयात व्यय को बढ़ा सकता है बल्कि ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में भी वृद्धि होगी ।
उच्च तापमान, चरम मौसमी घटनाएँ और उच्च जलवायु परिवर्तन शीलता विभिन्न प्रकार के रोगों (मलेरिया, डेंगू, लू लगने) आदि के प्रसार में वृद्धि कर स्वास्थ्य संकट उत्पन्न करेंगा। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव जैव विविधता पर भी पड़ेगा कई प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा बढ़ सकता है लगभग 30% प्रवाल भित्तियों के नष्ट हो जाने की आशंका है। इन सब का समग्र प्रभाव अर्थव्यवस्था पर दृष्टिगोचर होगा। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, वर्ष 2030 तक हीट स्ट्रेट के कारण होने वाली उत्पादकता में गिरावट से भारत में 34 मिलियन पूर्णकालिक रोजगार के बराबर क्षति हो सकती है। पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार भूमि क्षरण सूखा आदि के कारण 2014-15 में सकल घरेलू उत्पाद के भारत को 2.5-3% की क्षति हुई है। इन सब के अलावा जलवायु परिवर्तन प्रवसन, महिलाओं के प्रति समस्याओं तथा जनजातीय जीवन में संकट उत्पन्न करेगा। भारत सरकार जलवायु परिवर्तन संबंधी उपरोक्त चुनौतियों को देखते हुए विभिन्न प्रयास कर रही है। विभिन्न वैश्विक मंचों पर भारत जलवायु परिवर्तन कार्यवाही में सक्रिय भाग ले रहा है। पेरिस समझौते में अपने लक्ष्यों को पूरा करने के प्रयासों में भारत अग्रणी देशों में है। COP 26 में भारत ने 450 GW नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है।
2008 में भारत में जलवायु परिवर्तन पर कार्य योजना प्रारंभ की गई इसके अलावा हरित भारत मिशन, प्रधानमंत्री कुसुम योजना तथा सौर ऊर्जा प्रोत्साहन के साथ साथ ऊर्जा दक्षता के लिए उजाला मानकीयकरण आदि योजना संचालित की जा रही हैं। धारणीय विकास सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा जलवायु परिवर्तन के प्रति अपने प्रयासों को बढ़ाने तथा आम जनता को इनसे जोड़ने की आवश्यकता है। भारत की प्राचीन संरक्षण तकनीकें पुनर्जीवित की जानी चाहिए ताकि वनों, जलाशयों आदि का संरक्षण किया जा सके अंततः हमें मार्गरेट मीड का कथन याद रखना चाहिए- "यदि हम पर्यावरण को नष्ट करते हैं तो हम समाज को नहीं बचा पाएंगे। "
Baten UP Ki Desk
Published : 3 July, 2023, 5:37 pm
Author Info : Baten UP Ki