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वनों एवं वृक्षों से ही भूमि संरक्षण, जल संरक्षण तथा पर्यावरण सुरक्षा सुनिश्चित होती है। दुर्लभ वन्य जीवन प्रजातियों के लिए वन ही उनके प्राकृतिक वास है। प्रदेश के राजस्व में भी वनों का योगदान है। इमारती लकड़ी, जलौनी लकड़ी तथा कुछ अन्य मदों से भी राजस्व प्राप्त होता है। कत्था, तेंदू पत्ता, चिरौंजी, बाँस, मूंज, चारे की घास, औषधियों, जड़ी-बूटियों, शहद, मोम आदि से भी प्रदेश सरकार को राजस्व मिलता है। साल, चीड़, देवदार और शीशम के पेड़ों से निर्माण कार्य के लिए लकड़ी और रेलवे के स्लीपर बनते हैं। चीड़ के पेड़ों से निकले द्रव से रेसिन और तारपीन बनाया जाता है। सेमल का उपयोग माचिस बनाने में किया जाता है। बबूल से अनेक प्रकार के रंग, बांस से पेपर उद्योग और तेंदू से बीड़ी बनायी जाती है। बेंत का उपयोग टोकरी और फर्नीचर बनाने में किया जाता है। प्रदेश में तीन प्रकार के वन पए जाते हैं-
उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन-आर्द्र पर्णपाती वन तराई के नमी वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं। इस क्षेत्र में 100-150 सेमी. तक वर्षा होती है। यहाँ ऊँचे भागों में जहाँ अनिश्चित आकारों वाले पर्णपाती वृक्ष पाए जाते हैं, वहीं निचले क्षेत्रों में बांस, लताओं और बेंत के साथ हरी-भरी झाड़ियाँ पाई जाती हैं। इन वनों में साल, बेर, गूलर, महुआ, पलास, सेमल, ढाक, आंवला, जामुन आदि के वृक्ष पाए जाते हैं।
उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन- शुष्क पर्णपाती वन प्रदेश के सभी मैदानी भागों आमतौर पर मध्यपूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों में होते हैं। इन क्षेत्रों में प्रकाश नीचे तक पहुँचता है, अतः यहाँ घासों और झाड़ियों की उपज भी अच्छी होती है। ऐसे वनों के बहुत बड़े क्षेत्र की खेती के लिए सफाई कर दी गई है। इन वनों में साल, पलास, अंजीर, सागौर प्रमुख हैं। नदियों के आसपास या नमी वाले स्थानों पर नीम, पीपल, आम, जामुन, बबूल आदि पाये जाते हैं।
उष्णकटिबंधीय कंटीले वन-कंटीले वन ज्यादातर दक्षिणी-पश्चिमी भागों में पाये जाते हैं। इन क्षेत्रों में वर्षा बहुत कम होती है। इन क्षेत्रों में दूर-दूर तक कंटीले बौने वृक्ष मुख्यतः बबूल, फलदार पौधे, सांहुड़ की पैदावार होती है। वर्षा ऋतु में यहाँ छोटी-छोटी घास उग आती है। यहाँ खैर, फुलाई, नीम, धामन आदि वृक्ष पाये जाते हैं। प्रदेश के ज्यादातर वन तराई- भाभर क्षेत्र में पाए जाते हैं। विंध्य क्षेत्र के वनों में अधिकतर झाड़ियाँ हैं। यहाँ चिरौंजी, ढाक, सागौर, महुआ और तेंदू के जंगल पाए जाते हैं। पहाड़ी क्षेत्र के जंगलों में औषधीय पौधे पाए जाते हैं।
वनावरण की वृद्धि हेतु हो रहे सरकारी प्रयासः
प्रदेश की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए यह आवश्यक है कि प्रदेश में उपलब्ध वनों का वैज्ञानिक पद्धति से सघन प्रबंध किया जाए। वनों से भूमि संरक्षण तथा जल संरक्षण के साथ-साथ मानव जीवन हेतु शुद्ध पर्यावरण की उपलब्धता सुनिश्चित होती है। भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2017 के अनुसार प्रदेश में कुल वनावरण एवं वृक्षावरण राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 9.18 प्रतिशत है जो उ०प्र० वन नीति 1998 के लक्ष्य ( 33 प्रतिशत) से बहुत कम है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार राज्य के वनावरण एवं वृक्षावरण में वृद्धि करने के लिए निम्नलिखित प्रयास कर रही है-
उत्तर प्रदेश में वनों से संबंधित महत्वपूर्ण कार्यक्रम / योजनाएं उत्तर प्रदेश में वनों को 1935 में राजकीय संपत्ति घोषित किया गया। उत्तर प्रदेश, वन महोत्सव का आरंभ जुलाई, 1952 से हुआ। वन महोत्सव आंदोलन का मूलाधार है श्वृक्ष का अर्थ जल है, जल का अर्थ रोटी है और रोटी ही जीवन है। वन अनुसंधानशाला देहरादून (उत्तराखंड) में स्थित है। उत्तर प्रदेश के वन सेवा के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की प्रशिक्षण भारतीय वन महाविद्यालय, देहरादून में दिया जाता है। वनों की उत्पादकता में वृद्धि करने हेतु वर्ष 1970 में कानपुर में राज्य वन अनुसंधान प्रयोगशाला स्थापित किया गया, जिसे वर्ष 1993 में राज्य वन अनुसंधान संस्थापन के रूप में उच्चीकृत किया गया। राष्ट्रीय कृषि आयोग की पहल पर 1979 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सामाजिक वानिकी योजना का शुभारंभ किया गया। तेंदू पत्ता संग्रहण तथा निस्तारण इसे वर्ष 1983 से राज्य वन निगम के द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति (SC,ST) के लोगों द्वारा एक तय पारिश्रमिक पर कराया जाता था, किन्तु नवम्बर 2010 से राज्य सरकार ने अब तेंदू पत्ते से प्राप्त शुद्ध आय का 50% मजदूरों को देने का निर्णय लिया। राज्य में प्रमुख रूप से तेंदूपत्ता मिर्जापुर, सोनभद्र, वाराणसी, महाराजगंज, प्रयागराज, बाँदा, हमीरपुर, झाँसी तथा ललितपुर आदि जिलों में मिलता है। उत्तर प्रदेश में वन प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना वर्ष 1988 में कानपुर में हुई थी । उत्तर प्रदेश में संयुक्त वन प्रबंधन (Joint Forest Management) 1992 में प्रारंभ हुआ था। झ सोनभद्र के वेलहत्थी ग्राम को प्रदेश का पहला ग्राम वन घोषित किया गया है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 7 नवंबर, 2015 को 'ग्रीन यू.पी. क्लीन यू.पी.' अभियान की शुरूआत की गई थी। जड़ी-बूटी एकत्रीकरण कार्यक्रम- प्रदेश के राज्य वन निगम द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति (SC, ST) द्वारा एक निश्चित पारिश्रमिक पर लोगों द्वारा कराया जाता है। इस कार्यक्रम से उत्तर प्रदेश में 5000 परिवारों को रोजगार प्राप्त हुआ है। राज्य में मुख्य जड़ी-बूटियों का संग्रहण ललितपुर, झाँसी, महोबा, चित्रकूट, सोनभद्र, मिर्जापुर तथा चंदौली आदि जनपदों में किया जाता है।
उत्तर प्रदेश वन स्थिति रिपोर्ट 2021
Baten UP Ki Desk
Published : 31 March, 2023, 4:50 pm
Author Info : Baten UP Ki