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उत्तर प्रदेश, भारत का सबसे अधिक आबादी वाला और क्षेत्रफल की दृष्टि से चौथा सबसे बड़ा राज्य है। यह देश के उत्तर-मध्य भाग में स्थित है। ऐतिहासिक दृष्टि से उत्तर प्रदेश को वैदिक युग में ब्रह्मर्षि देश या मध्य देश के रूप में मान्यता प्राप्त थी। वैदिक काल के कई महान संत जैसे भारद्वाज, गौतम, याज्ञवल्क्य, वशिष्ट, विश्वामित्र और वाल्मीकि ने इस क्षेत्र में ज्ञानार्जित किया और लोगों को दीक्षित भी किया। आर्यों की कई पवित्र पुस्तकों की रचना भी यहीं हुई। भारत के दो महाकाव्य, रामायण और महाभारत उत्तर प्रदेश की पृष्ठभूमि से ही है। छठी शताब्दी ईसा पूर्व में उत्तर प्रदेश दो नए धर्मों-जैन धर्म और बौद्ध धर्म से जुड़ा था। सारनाथ, जहाँ बुद्ध ने अपने पहले उपदेश का प्रचार किया। उत्तर प्रदेश के कई केंद्र जैसे- अयोध्या, प्रयाग, वाराणसी और मथुरा आज सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि सारी दुनिया के प्रतिष्ठित केन्द्र बन चुके हैं।
मध्यकाल में उत्तर प्रदेश मुस्लिम शासन के अधीन रहा और हिंदू और इस्लामी संस्कृतियों के नए संश्लेषण का मार्ग प्रशस्त हुआ । रामानंद और उनके शिष्य कबीर, तुलसीदास, सूरदास और कई अन्य बुद्धिजीवियों ने हिंदी और अन्य भाषाओं के विकास में योगदान दिया। 1773 में, मुगल सम्राट ने बनारस और गाजीपुर जिलों को ईस्ट इंडिया कंपनी को हस्तांतरित कर दिया। उत्तर प्रदेश के इतिहास को पांच अवधियों में विभाजित किया जा सकता है:-
उत्तर प्रदेश का प्रागैतिहासिक एवं पौराणिक इतिहास: उत्तर प्रदेश की प्रागैतिहासिक सभ्यता पर पुरातात्विक जाँच ने नई रोशनी डाली है। प्रतापगढ़ के क्षेत्र में पाए गए मानव कंकालों के अवशेष लगभग 10,000 ईसा पूर्व के है। 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व से पहले के क्षेत्र का अन्य ज्ञान बड़े पैमाने पर वैदिक साहित्य और महाकाव्य, रामायण और महाभारत के माध्यम से प्राप्त हुआ है, जो उत्तर प्रदेश में गंगा के मैदान का वर्णन करते है। महाभारत वर्णित स्थल में हस्तिनापुर और उसके आस-पास के क्षेत्र हैं, जो वर्तमान राज्य के पश्चिमी भाग में है, जबकि रामायण वर्णित राम जन्मस्थान, वर्तमान अयोध्या और अवध के क्षेत्र है। राज्य में पौराणिक कथाओं का एक और केन्द्र मथुरा के पवित्र शहरों के आस-पास का क्षेत्र है, जहां कृष्ण का जन्म हुआ था।
बौद्ध-हिंदू काल में उत्तर प्रदेश : भारत और उत्तर प्रदेश का एक व्यवस्थित इतिहास 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व के अंत में आता है, जब उत्तरी भारत में 16 महाजनपद वर्चस्व के लिए संघर्ष कर रहे थे। उनमें से सात पूरी तरह से उत्तर प्रदेश की वर्तमान सीमाओं के भीतर आ गए। 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 6वीं शताब्दी तक, यह क्षेत्र ज्यादातर राज्य की आधुनिक सीमाओं के बाहर केंद्रित शक्तियों के नियंत्रण में था। इस क्षेत्र पर शासन करने वाले महान राजाओं में चंद्रगुप्त (321-297 ई0पू0) और अशोक (तीसरी शताब्दी ई०पू० ) दोनों मौर्य सम्राट, साथ ही समुद्रगुप्त और चंद्रगुप्त द्वितीय थे, बाद में एक प्रसिद्ध शासक हर्ष ने राज्य की वर्तमान सीमाओं का अधिग्रहण किया। कन्नौज में अपनी राजधानी से, वह पूरे उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और राजस्थान के हिस्सों को नियंत्रित करने में सक्षम था। छठी शताब्दी ईसा पूर्व तक प्राचीन वैदिक धर्म काफी हद तक ब्राहमणवाद में विकसित हो गया था जो दूसरी शताब्दी ईसा पूत्र में शास्त्रीय हिंदू धर्म में विकसित हुआ था यह उस अवधि के दौरान विकसित हुआ जब छठी और चौथी शताब्दी ईसा पूर्व के बीच कुछ समय के लिए बुद्ध ने वाराणसी के पास के सारनाथ में अपने पहले धर्मोपदेश का प्रचार किया। उन्होंने जिस बौद्ध धर्म की स्थापना की वह न केवल भारत में बल्कि चीन और जापान जैसे कई दूर देशो में भी फैला। ऐसा कहा जाता है कि बुद्ध ने कुशीनगर में परिनिर्वाण प्राप्त किया था।
मध्य काल में उत्तर प्रदेश : उत्तर प्रदेश में मुस्लिम प्रवृत्तियाँ 1000-30 ईस्वी पूर्व की थी, उत्तर भारत पर मुस्लिम शासन 12वी शताब्दी के अंतिम दशक तक स्थापित नहीं हुआ था, जब दीन मुअम्मद इब्न सम ने गढ़वालों को हराया और अपना शासन स्थापित किया। लगभग 600 वर्षों तक उत्तर प्रदेश में, भारत के अधिकांश हिस्सों में एक मुस्लिम वंश द्वारा शासित था। उस समय के दौरान, कई शासक दिल्ली सल्तनत के सदस्य थे। 1526 में, बाबर ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के साथ मिलकर मुस्लिम राजवंशो में सबसे सफल मुगलों की नीव रखी, जिनका साम्राज्य उत्तर प्रदेश में भी था, जिन्होंने 200 से अधिक वर्षों के लिए उपमहाद्वीप पर राज किया। साम्राज्य की सबसे बड़ी सीमा अकबर (1556-1605) के समय में थी, जिसने आगरा के पास नई राजधानी, फहेतपुर सीकरी का निर्माण किया। उनके पोते, शाहजहाँ (1628-58) आगरा में दुनिया की सबसे बड़ी स्थापत्य उपलब्धियों में से एक ताजमहल का निर्माण किया। शाहजहाँ ने आगरा के साथ-साथ दिल्ली में कई अन्य वास्तुशिल्प इमारतों का भी निर्माण किया। मुगल साम्राज्य ने एक नई संस्कृति के विकास को बढ़ावा दिया। हिंदू और इस्लाम के साथ-साथ भारत की विभिन्न जातियों के बीच एक सामान्य आधार चाहने वाले कई नए संप्रदाय उस अवधि के दौरान विकसित हुए। रामानंद, ने ही इसी समय इस प्रदेश में वैष्णव मत भक्ति संप्रदाय की स्थापना की, जिसने दावा किया कि भक्ति के माध्यम से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। कबीर ( 1440-1518) ने सभी धर्मो की एकता का प्रचार किया। 18वीं शताब्दी में मुगलों के पतन और उत्तर प्रदेश में नवाबी संस्कृति के कारण लखनऊ, कला और संस्कृति के केन्द्र के रूप में विकसित हुआ। औरंगजेब द्वारा उदारता की नीति का परित्याग करने से मुगल साम्राज्य को भारी धक्का लगा। परिणाम यह हुआ कि उसकी मृत्यु के कुछ ही दशकों में शक्तिशाली मुगल साम्राज्य नष्ट हो गया। औरंगजेब के शासनकाल में ही बुन्देलखण्ड ने वीर छत्रसाल के नेतृत्व में विद्रोह का बिगुल बजा दिया था। बुन्देलों की यह लड़ाई रुक-रुक कर लगभग 50 वर्षों तक चली। छत्रसाल को पेशवा बाजीराव की सहायता स्वीकार करनी पड़ी। इस प्रकार उत्तर प्रदेश में मराठों के पैर पड़ चुके थे, स्वयं अवध का स्थानीय सूबेदार सादात खाँ सन् 1732 में स्वतंत्र हो गया और उसके बाद उसके उत्तराधिकारी सन् 1856 तक राज्य करते रहे। कुछ समय तक मराठों ने गंगा-जमुना दोआब पर अपना आधिपत्य स्थापित करने का प्रयास किया किन्तु 1761 ई. में पानीपत की हार ने उनकी इस विस्तार भावना का अन्त कर दिया और अंग्रेजों ने दोआब में अपनी स्थिति सुदृढ़ बना ली।
ब्रिटिश काल में उत्तर प्रदेश: अवध के तीसरे नवाब शुजाउद्दौला (सन् 1754 से 1775 तक) के शासनकाल में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी अवध के शासकों के सम्पर्क में आयी। शुजाउद्दौला ने बंगाल से भागे हुए नवाब मीर कासिम से सन् 1764 में अंग्रेजों के विरुद्ध इकरारनामा कर रखा था किन्तु बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों से पराजित हुआ और उसे कड़ा एवं इलाहाबाद अंग्रेजों को दे देना पड़ा। इसके बाद अंग्रेजों ने कभी धमकी देकर कभी फुसलाकर नवाब से बड़े-बड़े क्षेत्र हड़पने की नीति से जो विस्तृत क्षेत्र बना उसे सन् 1836 में उत्तर-पश्चिम प्रान्त के नाम से एक प्रशासनिक इकाई में बदल दिया गया। अन्त में सन् 1856 में राज्य हड़पने की नीति का अनुसरण करते हुए डलहौजी ने अवध को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया तथा उसे एक चीफ कमिश्नर की अधीनता में रख दिया। आखिरी नवाब वाजिद अली शाह को अंग्रेजों ने कलकत्ता भेज दिया और उसे पेंशन दे दी। इसी समय झाँसी का राज्य भी अंग्रेजों ने अपने राज्य में मिला लिया था। अवध के नवाबों और ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच जैसे सम्बन्ध थे वे एक तरफ तो नवाबों की दुर्बलता का तथा दूसरी तरफ अंग्रेजों की उद्दण्डता, शक्ति और विश्वासघात का स्मरण दिलाते हैं। अतः सन् 1856 में जब अंग्रेजों ने अवध की नवाबी हड़प ली तो यह स्वाभाविक था कि राष्ट्रीय स्तर पर सन् 1857 में विद्रोह भड़क उठा। वर्तमान उत्तर प्रदेश के किसानों, मजदूरों, महिलाओं, दलितों तथा सभी धर्मों व वर्गों के लोगों ने महत्तवपूर्ण 'भूमिका अदा की। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, अवध की बेगम हजरत महल, बख़्त खाँ, नाना साहब, मौलबी अहमदउल्ला शाह, राणा बेनीमाधव सिंह, अजीमउल्ला खाँ तथा अन्य अनेक राष्ट्रभक्तों ने उक्त ऐतिहासिक संघर्ष में जिस कर्तव्यनिष्ठा का परिचय दिया उससे वे अमर हो गये। कंपनी द्वारा अवध को 1877 में उत्तर पश्चिमी प्रांतो के समूह में विलय कर दिया गया।
भारतीय स्वतंत्रता के बाद उत्तर प्रदेश का इतिहास: 1947 में संयुक्त प्रांत भारत के नए स्वतंत्र डोमिनियन की प्रशासनिक इकाइयों में से एक बन गया। दो साल बाद टिहरी गढवाल (अब उत्तराखंड), रामपुर और वाराणसी इसकी सीमाओं के भीतर सभी के संयुक्त राज्य में शमिल किया गया था और भारतीय गणराज्य का एक घटक राज्य बन गया। 26 जनवरी, 1950 को जब स्वतंत्र भारत का संविधान लागू हुआ तो उत्तर प्रदेश भारतीय गणतंत्र का एक पूर्ण राज्य बन गया। इसमें सन्देह नहीं कि अंग्रेजों के राज्यकाल में या उसके बाद की अवधि में उत्तर प्रदेश का इतिहास पूरे भारत के इतिहास से पृथक नहीं रहा, किन्तु यह तथ्य सर्वविदित है कि राष्ट्रीय आन्दोलनों में यहाँ के लोगों का योगदान महत्वपूर्ण है। सी.वाई. चिन्तामणि, तेज बहादुर सप्रू, मदनमोहन मालवीय, मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, गोविन्द वल्लभ पन्त, लालबहादुर शास्त्री तथा रफी अहमद किदवई आदि ये सब राष्ट्र के नेता रहे हैं और सब उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे। यह भी कम गौरव की बात नहीं है कि इस प्रदेश से अनेक प्रधानमंत्री राष्ट्र को मिले हैं- पं. जवाहरलाल नेहरू, श्री लालबहादुर शास्त्री, श्रीमती इंदिरा गाँधी, चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, वी.पी. सिंह, चंद्रशेखर, अटलबिहारी वाजपेयी इत्यादि ।
Baten UP Ki Desk
Published : 22 March, 2023, 3:30 pm
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