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उत्तर प्रदेश की संस्कृति और वास्तुकला

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उत्तर प्रदेश भारतीय संस्कृति के प्राचीन काल से जुड़ा है। जैसे बाँदा (बुंदेलखंड), मिर्जापुर और मेरठ में पाए गए पुरातनस्थल, इसके इतिहास को प्रारंभिक पाषण युग और हडप्पा युग से जोडती है। आदिम पुरूषों द्वारा चाक चित्र या गहरे लाल रंग के चित्र मिर्जापुर जिले की विंध्य पर्वतमाला में बड़े पैमाने पर पाए गये हैं। अतरंगी खेडा, कौशाम्बी, राजघाट और सोंख में भी उसी युग के बर्तन मिले हैं। उत्तर प्रदेश में भारतीय संस्कृति और विरासत की जड़ें गहरी है। इस राज्य ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों से विभिन्न शासनों का एक विविध और गतिशील अतीत देखा है, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न मान्यताओं और परंपराओं का एक सुंदर मिश्रण तैयार हुआ। इसे कला, वास्तुकला, भाषा और साहित्य की दृष्टि से देखा जा सकता है। ताजमहल, श्री कृष्णजन्मस्थली, रामजन्मभूमि, कुशीनगर (जहां भगवान बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया था) गंगा, यमुना, सरस्वती की पवित्र नदियों का मिलन स्थल या त्रिवेणी संगम,  जैसे स्थान यहाँ पाए जाते है ।
 

मौर्य काल :-
तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मौर्या के उदय के साथ, कला के इतिहास में एक नया अध्याय आया। कहा जाता है कि अशोक ने सारनाथ और कुशीनगर का दौरा किया था और व्यक्तिगत रूप से इन दो पवित्र स्थानों पर स्तूप और बिहार के निर्माण का आदेश दिया था। उनके निशान गायब हो गए है लेकिन सारनाथ, प्रयागराज, मेरठ, कौशांबी, संकिसा और वाराणसी में मिले शिला स्तंभों के अवशेष मौर्य कला की उत्कृष्टता को दर्शाते है। अशोक के सभी स्तम्भ चुनार पत्थर से बने है। सारनाथ का अशोक स्तंभ मौर्य कला का उत्कृष्ट नमूना है।


 

(धम्मेक स्तूप, सारनाथ)

मथुरा कला
कुषाण काल के दौरान मथुरा कला अपने शिखर थी। इस अवधि की सबसे महत्वपूर्ण कृति बुद्ध की मानवरूपी छवि है, जो अब तक कुछ प्रतीकों द्वारा दर्शायी जाती थी। मथुरा और गांधार के कलाकार अग्रणी थे, जिन्होंने बुद्ध की छवियों को तराशा। जैन तीर्थकारों और हिंदू देवताओं के चित्र भी मथुरा में बनाए गए थे। आम तौर पर ये सभी प्रारंभिक चित्र आकार में विशाल थे। उनके उत्कृष्ट नमूने अभी भी लखनऊ, वाराणसी, प्रयागराज और मथुरा के संग्रहालयों में संरक्षित है। मथुरा जिले के मठ में कुषाण सम्राट विम कडफिसेस, कनिष्क और शक शासक चष्टन की बैठी और खड़ी  मुद्राओं में विशाल चित्र भी पाए गए है।

(विम कडफिसेस सिंहासन पर, मथुरा संग्रहालय) 


स्वर्णिम युग (गुप्तकाल)
गुप्तकाल को भारतीय कला के इतिहास में स्वर्ण युग के रूप में जाना जाता है। देवगढ़ (झॉसी) का पत्थर और ईट से निर्मित दशावतार मंदिर अपने कलात्मक पैनलों के लिए प्रसिद्ध है। प्राचीन कला और शिल्प के कुछ अन्य नमूने है, जैसे विष्णु चित्र, मथुरा में बुद्ध की खड़ी मूर्ति और सारनाथ संग्रहालय में तथागत की बैठी हुई छवि। कला के मथुरा और सारनाथ दोनों स्थल गुप्त काल के दौरान अपने चरम पर थे। उत्तर प्रदेश में इस अवधि के दौरान प्रतीकात्मक रूपों और सजावटी उदेश्यो में अभूतपूर्व प्रगति देखी गई। राजघाट (वाराणसी), सहेत - महेत (श्रावस्ती), भितरंगाव (कानपुर) और अहिच्छत्र (बरेली) में भी न केवल पत्थर बल्कि टेराकोटा से बनी कलात्मक मूर्तियों के कुछ उत्कृष्ट नमूने पाए गए हैं।


 

(दशावतार मंदिर)

मध्य काल
शर्की शासकों के संरक्षण में शर्की शैली का विकास जौनपुर में हुआ। इन शासकों द्वारा निर्मित स्थापत्य कला के कुछ प्रमुख उदाहरण शाही किला, अटाला मस्जिद, झंझरी मस्जिद, लाल दरवाजा मस्जिद, जामा मस्जिद तथा शाही पुल आदि हैं। मुगल काल के दौरान वास्तुकला की मिश्रित भारतीय और मुस्लिम शैली अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई थी। संगमरमर से निर्मित ताजमहल इस शैली का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। इस अवधि के दौरान असंख्य किले और स्थान, मस्जिद और मकबरों, रत्नागार और तालाबों का निर्माण किया गया जो अपनी सुन्दरता और  भव्य शैली के लिए जाने जाते हैं। जिसमें जामा मस्जिद, बाबरी मस्जिद, आगरा का किला, इलाहाबाद का किला,बुलंद दरवाज़ा आदि प्रमुख है। मुगल वास्तुकला मुख्य रूप से अकबर ओर शाहजहाँ से जुड़ी हुई है।


 

(बुलंद दरवाज़ा, फतेहपुर सीकरी)

नवाबों द्वारा प्रोत्साहन 
शाहजहाँ की मृत्यु के बाद स्थापत्य के क्षेत्र में गिरावट आई लेकिन अवध के नवाबों ने भवन निर्माण शैली की कई पुरानी परंपराओं को जीवित रखा। उन्होंने कई जगह, मस्जिदों, दरवाजों, बगीचों आदि का निर्माण कराया। जिसकी विशेषतायें है सुनहरे छतरियों वाला गुंबद ,गुंबद हॉल, मेहराबदार मंडप, भूमिगत कक्ष आदि। आसफ-उद-दौला द्वारा निर्मित बड़ा इमामबाड़ा भव्य है। इसका गुबंदनुमा द्वार शुद्ध लखनऊ शैली का है इसे अपनी तरह का सबसे बड़ा कक्ष कहा जाता है। वास्तव में इस शैली की कुछ इमारतें कला की सुंदर रचनाएँ है। ब्रिटिश शासन के दौरान और उसके बाद कला को राज्य संरक्षण प्रदान करने की नीति में एक उल्लेखनीय परिवर्तन आया। राज्य ने धार्मिक निर्माणों यानी मंदिरों, मस्जिदों आदि के निर्माण में रूचि दिखाना बंद कर दिया और स्कूल कालेजों, सरकारी कार्यालयों आदि जैसे धर्मनिरपेक्ष भवनों का निर्माण बड़े पैमाने पर किया गया। ये इमारतें निर्माण गतिविधि में आमूल-चूल परिवर्तन का प्रतीक है। नवाबों ने उत्तर प्रदेश में वास्तुकला के इतिहास में एक नए युग की शुरूआत की थी।

 

 
(बड़ा इमामबाडा, लखनऊ)

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