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देवभूमि उत्तराखंड भरी खेलों की नई उड़ान! ई-कचरे से बने सस्टेनेबल मेडल्स ने बढ़ाया खेलों का गौरव

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खेल केवल शरीर को फिट रखने का साधन नहीं होते, बल्कि यह एक देश की ताकत, जुनून और जज़्बे का प्रतीक भी होते हैं। जब खिलाड़ी मैदान पर उतरते हैं, तो वे सिर्फ मेडल नहीं जीतते, बल्कि पूरे राष्ट्र का गौरव बढ़ाते हैं। इसी गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए इस बार राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी कर रहा है देवभूमि उत्तराखंड। बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच खेलों का यह जुनून और भी ऊंचा उठ रहा है।

उत्तराखंड में पहली बार राष्ट्रीय खेलों का आयोजन

भारत के “मिनी ओलंपिक्स” कहे जाने वाले राष्ट्रीय खेलों का आयोजन पहली बार उत्तराखंड की गोद में हो रहा है। देशभर के 28 राज्यों और 8 केंद्रशासित प्रदेशों से हजारों खिलाड़ी यहां अपनी प्रतिभा दिखाने पहुंचे हैं। यह 38वां राष्ट्रीय खेल है, जो कई मायनों में बेहद खास है।

विशेषताएं जो इसे बनाती हैं अनोखा आयोजन

  • ग्रीन और इको-फ्रेंडली इनिशिएटिव: खेलों के लिए पर्यावरण अनुकूल कदम उठाए गए हैं।

  • ई-कचरे से बने मेडल्स: पूरी तरह से सस्टेनेबल मेडल्स तैयार किए गए हैं।

  • देशभर के 10,000 से ज्यादा एथलीट्स: विभिन्न खेलों में भागीदारी कर रहे हैं।

  • उत्तराखंड के 7 शहरों में आयोजन: देहरादून, हल्द्वानी, हरिद्वार और रुद्रपुर समेत 7 प्रमुख शहरों में खेल गतिविधियां हो रही हैं।

सरकार की उत्कृष्ट तैयारियां

उत्तराखंड सरकार ने इस आयोजन के लिए हर संभव तैयारी की है।

  • आधुनिक स्टेडियम का निर्माण: देहरादून, हल्द्वानी, हरिद्वार और रुद्रपुर में अत्याधुनिक खेल परिसरों का निर्माण किया गया है।

  • सड़कों और परिवहन में सुधार: खिलाड़ियों और पर्यटकों की सुविधा के लिए सड़कों और परिवहन व्यवस्थाओं को बेहतर बनाया गया है।

  • आवासीय सुविधाएं: होटल्स, हॉस्टल्स और अस्थायी निवास की व्यापक व्यवस्था की गई है।

  • ईको-फ्रेंडली उपाय: सोलर पावर और इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग किया जा रहा है।

राज्य को मिलेंगे दीर्घकालिक लाभ

इस आयोजन से उत्तराखंड को कई दीर्घकालिक लाभ मिलने की संभावना है।

1. खेल संस्कृति को बढ़ावा

यह पहली बार है जब उत्तराखंड में राष्ट्रीय खेल हो रहे हैं, जिससे स्थानीय युवा खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा दिखाने और नई प्रेरणा प्राप्त करने का बेहतरीन अवसर मिला है।

2. पर्यटन को बढ़ावा

खेलों के कारण लाखों लोग उत्तराखंड आ रहे हैं, जिससे होटल, रेस्तरां और स्थानीय व्यवसायों को काफी लाभ हो रहा है।

3. नई खेल सुविधाएं

जो इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार हुआ है, वह भविष्य में अन्य खेल गतिविधियों और अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स के लिए भी उपयोगी होगा।

4. आर्थिक विकास

इस आयोजन से हजारों करोड़ का निवेश आया है और नई नौकरियों के अवसर पैदा हुए हैं।

5. उत्तराखंड की नई पहचान

अब उत्तराखंड केवल एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि भारत के बड़े खेल आयोजनों का हब बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। राष्ट्रीय खेल 2025 उत्तराखंड के लिए सिर्फ एक प्रतियोगिता नहीं है, बल्कि यह राज्य के विकास की नई उड़ान है। यह आयोजन न केवल खेल संस्कृति को बढ़ावा देगा, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था, पर्यटन और पहचान को भी नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। देवभूमि उत्तराखंड अब खेलों की नई भूमि बनकर उभर रहा है।

कब हुई थी भारतीय राष्ट्रीय खेलों की शुरुआत?

  • खेल को बढ़ावा देने का उद्देश्य

भारतीयों को खेलों में प्रोत्साहन देने के लिए प्रसिद्ध व्यवसायी दोराबजी टाटा ने राष्ट्रीय स्तर पर एक संस्था के गठन का सुझाव दिया था। इस संस्था का उद्देश्य भारतीय खिलाड़ियों को ओलंपिक खेलों के लिए तैयार करना था।

  • पहला आयोजन

भारतीय राष्ट्रीय खेलों का पहला आयोजन 1924 में लाहौर में हुआ था, जिसे उस समय "अखिल भारतीय ओलंपिक खेल" कहा जाता था। इस आयोजन की प्रेरणा ओलंपिक खेलों से ली गई थी। प्रारंभ में इसे हर दो साल पर आयोजित किया जाता था।

  • भारतीय ओलंपिक संघ की स्थापना

1927 में अखिल भारतीय ओलंपिक समिति को भारतीय ओलंपिक संघ में परिवर्तित कर दिया गया। 1935 में इसका आयोजन इलाहाबाद में हुआ। इसके बाद भी यह खेल हर दो साल के अंतराल पर आयोजित होते रहे।

  • महत्वपूर्ण आयोजन

1932 में मद्रास, 1934 में नई दिल्ली, 1936 में लाहौर और 1938 में कोलकाता में इन खेलों का आयोजन हुआ। 1940 में इसका नाम बदलकर "राष्ट्रीय खेल" कर दिया गया।

  • नाम परिवर्तन और विस्तार

1940 तक इसे "इंडियन ओलंपिक गेम्स" के रूप में जाना जाता था। मुंबई ने 1940 में "नेशनल गेम्स" की मेजबानी की। समय के साथ इनके आयोजन अंतराल में बदलाव किए गए। 1970 तक यह हर दो वर्ष पर आयोजित होते रहे, जबकि 1979 में नौ साल के अंतराल के बाद हैदराबाद में इनका आयोजन हुआ।

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