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नगर निगम के इस फैसले से लखनऊ के जायके पर संकट!

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नवाबों का शहर लखनऊ, जहां की तहजीब और नफासत के साथ-साथ यहां का बेहतरीन खाना भी लोगों को अपनी ओर खींचता है। लखनऊ का नाम आते ही ज़हन में सबसे पहले यहां की बिरयानी और कबाब का स्वाद उभरता है। लखनवी अंदाज के साथ-साथ यहां के लजीज पकवान इसकी धरोहर का ही एक हिस्सा हैं। लेकिन, इस विरासत और लजीज जायके पर अब एक गंभीर संकट मंडरा रहा है। आने वाले दिनों में लखनऊ के मशहूर जायके में वो पहले जैसा स्वाद नहीं मिल पाएगा और इसका कारण है तंदूर भट्ठियों पर लगने वाली रोक। यह कदम क्यों उठाया जा रहा है और इसका कितना असर होगा। आइए विस्तार से जानते हैं।

लखनऊ नगर निगम ने तंदूर भट्ठियों पर लगाई रोक-
 
दरअसल लखनऊ के जायके को मशहूर करने वाले कई होटलों, रेस्टोरेंट्स और ढाबों में तंदूर भट्ठियों का इस्तेमाल कई सालों से किया जा रहा है। लेकिन अब लखनऊ नगर निगम ने एक फैसला लिया है, जिससे इन तंदूर भट्ठियों पर रोक लगाई जा रही है। इसके पीछे का कारण है वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना। वायु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और NGT की सख्ती के बाद, इन तंदूर भट्ठियों को बंद करने की तैयारी की जा रही है। लखनऊ नगर निगम होटल और रेस्टोरेंट्स का सर्वे करा रहा है, ताकि इन तंदूर भट्ठियों की सही स्थिति का पता लगाया जा सके। सर्वे में सामने आया कि पारंपरिक कोयले से चलने वाले तंदूर को अगर गैस तंदूर से बदल दिया जाए तो पीएम 2.5 के Emission में 95% की भारी कमी आ सकती है। जिससे एयर पॉल्यूशन में कमी आएगी। 

भट्ठियों में पकने से आता है स्वाद-
 
लखनऊ के कारीगरों का मानना है कि कोयले की भट्ठियों पर पकने वाले पकवानों का स्वाद बेहतरीन होता है। चाहे वो बिरयानी हो, कबाब हो, कुल्चा हो, या फिर शीरमाल, सभी का स्वाद कोयले पर पकने से खास होता है। गैस या इलेक्ट्रिक भट्ठी से वैसा स्वाद नहीं आ सकता। कारीगरों का कहना है कि कोयले की धीमी आंच में जो सौंधापन आता है, वो गैस या इलेक्ट्रिक तंदूर में संभव नहीं है। 

नगर निगम ने वायु प्रदूषण के चलते लिया फैसला-
 
लखनऊ में कोयले से चलने वाली करीब 3 हजार से अधिक तंदूर भट्ठियां हैं। इन भट्ठियों से निकलने वाला धुआं वायु प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत भी है। ऊर्जा और संसाधन संस्थान (टेरी) की एक स्टडी में यह बात सामने आई है कि होटल और रेस्टोरेंट्स से निकलने वाला धुआं पीएम 10 और पीएम 2.5 की मात्रा को वातावरण में बढ़ा रहा है, जिससे वायु गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ रहा है। इसी कारण से नगर निगम ने तंदूर भट्ठियों को गैस या इलेक्ट्रिक तंदूर में बदलने का निर्णय लिया है। बता दें कि पीएम 10 और पीएम 2.5 ये दोनों ही हवा में मौजूद छोटे-छोटे कण हैं, जिन्हें हम प्रदूषण के रूप में जानते हैं। ये कण इतने छोटे होते हैं कि आप इन्हें आंखों से नहीं देख सकते। ये कण कई तरह से बनते हैं, जैसे कि वाहनों से निकलने वाला धुआं, उद्योगों से निकलने वाला धुआं और जंगलों में लगी आग आदि।

निशुल्क गैस या इलेक्ट्रिक तंदूर किए जा रहे वितरित-

फिलहाल इस फैसले के बाद लखनऊ के लोग और यहां के रेस्टोरेंट मालिक इस बदलाव से चिंतित हैं। उनका मानना है कि इस फैसले से लखनऊ के सैकड़ों साल पुराने जायके पर असर पड़ेगा। लेकिन, वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य के मद्देनजर, इस बदलाव को जरूरी माना जा रहा है। नगर निगम और टेरी के सहयोग से लखनऊ में तंदूर भट्ठियों को बदलने का अभियान शुरू हो चुका है। पहले चरण में 200 होटल और रेस्टोरेंट्स को निशुल्क गैस या इलेक्ट्रिक तंदूर दिए जा रहे हैं। इसके अलावा, नगर निगम जागरूकता अभियान भी चला रहा है, ताकि लोग इस बदलाव के महत्व को समझ सकें।

लखनऊ के जायके का यह बदलाव एक चुनौती
 
लखनऊ की तहजीब और जायके का यह बदलाव एक चुनौती है। यह शहर, जो अपने लजीज पकवानों के लिए दुनियाभर में मशहूर है, उसे अपने जायके के साथ समझौता करना पड़ सकता है। लेकिन, स्वास्थ्य और वायु गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए, यह कदम जरूरी है। लखनऊ के जायके और विरासत को बचाने के लिए यह देखना होगा कि क्या गैस और इलेक्ट्रिक तंदूर से भी वही स्वाद और सौंधापन बरकरार रह सकता है, जो कोयले की भट्ठियों में पकाए जाने से आता है।

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