लखनऊ में आशा वर्कर्स का हल्लाबोल प्रदर्शन सरकार के लिए एक बड़ा संदेश बन गया है। प्रदेश के विभिन्न जिलों से आईं सैकड़ों आशा कार्यकर्ताओं ने चारबाग रेलवे स्टेशन पर इकट्ठा होकर मानदेय बढ़ाने और स्थायी नियुक्ति की मांग की। हजार में दम नहीं 20 हजार से कम नहीं, आज करो..अर्जेंट करो..परमानेंट करो' जैसे नारे लगाते हुए वे विधानसभा घेराव के लिए निकलीं, लेकिन पुलिस ने उन्हें स्टेशन पर ही रोक दिया। प्रदर्शन के बीच 11 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक से मुलाकात की और अपनी समस्याएं रखीं।
भुगतान के वादों पर खरा नहीं उतरा प्रशासन
आशा वर्कर्स ने बताया कि दिसंबर 2019 से 2021 तक कोविड सेवाओं के लिए प्रोत्साहन राशि देने का वादा किया गया था। 2 फरवरी 2024 को शासन ने 750 रुपये की प्रोत्साहन राशि और 24 महीने तक 1000 रुपये प्रतिमाह देने की बात कही थी, जो अब तक पूरी नहीं हुई।
'हमसे गुलामों जैसा बर्ताव किया जा रहा है'
प्रदर्शन में शामिल खरगापुर की सीमा देवी ने कहा, "हम पिछले छह सालों से स्वास्थ्य सेवाएं दे रही हैं। बच्चों के टीकाकरण से लेकर गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी तक हर जिम्मेदारी निभा रहे हैं, फिर भी हमारा वेतन निर्धारित नहीं है। पहले देश अंग्रेजों का गुलाम था, अब भ्रष्ट अधिकारी और नेता हमें गुलाम बना रहे हैं।"
'रीढ़ की हड्डी समझकर हमें तोड़ा जा रहा है'
आशा वर्कर्स ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा, "हमें स्वास्थ्य विभाग की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है, लेकिन इसी हड्डी को पैर से तोड़ा जा रहा है। अगर सरकार कह दे कि आत्महत्या करने पर वेतन मिलेगा, तो सबसे पहले हम जान देने के लिए तैयार हैं।"
कम मानदेय में जीना हुआ मुश्किल
मोहिनी रावत ने कहा, "2000 रुपये में एक महीने का राशन भी नहीं आता। इतने कम पैसों में बच्चों की पढ़ाई तो दूर, परिवार का पेट भरना भी संभव नहीं है। सरकार को जल्द से जल्द हमारा वेतन बढ़ाना चाहिए।"
स्थायी नियुक्ति और सम्मानजनक वेतन
आशा वर्कर्स ने सरकार से अपील की है कि उन्हें स्थायी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए और 20,000 रुपये से कम का वेतन न रखा जाए। उनका कहना है कि स्वास्थ्य सेवाओं में योगदान के लिए उन्हें उचित सम्मान और पारिश्रमिक मिलना चाहिए।