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कभी सर्द रातों में लिहाफ में दुबककर कानों में रस घोलती आवाज़, तो कभी अलसाई दोपहर में ट्रांजिस्टर के पास बैठे गांव-शहर के हर कोने से उठती मीठी धुनें... रेडियो, जो सिर्फ एक उपकरण नहीं, बल्कि यादों का अनमोल ख़ज़ाना है। एक दौर था जब घर की सबसे बड़ी शान हुआ करता था एक छोटा-सा रेडियो, जो शादी-ब्याह में खास उपहार होता। हर सुबह की चाय के साथ समाचारों की चुस्की, तो शाम को सुरों का जादू... रेडियो ने हर दिल की धड़कनों में अपनी जगह बनाई है।![]()
आज भी वो सुरीली धड़कन कायम है-बदलते रूपों में, नई आवाज़ों में, एफएम की तरंगों पर, डिजिटल वेव्स में। उद्घोषक से रेडियो जॉकी तक, आकाशवाणी से पॉडकास्ट तक, जयमाला से मन की बात तक—यह माध्यम वक्त के साथ बदलता रहा, लेकिन इसकी आत्मा वही रही—सुनने वालों के दिलों को छूने वाली। तो चलिए, एक बार फिर ट्यून इन करते हैं उन यादों की फ़्रीक्वेंसी पर, जहां हर धुन में एक कहानी बसती है, हर आवाज़ में एक एहसास जागता है...
वर्ल्ड रेडियो डे: संचार का सदाबहार माध्यम
हर साल 13 फरवरी को वर्ल्ड रेडियो डे मनाया जाता है, जो संचार के इस प्रभावशाली माध्यम की अहमियत को दर्शाता है। इसकी शुरुआत 2011 में हुई थी, जब यूनेस्को ने स्पेन की रेडियो अकादमी के प्रस्ताव को मंजूरी दी। यह तारीख विशेष रूप से इसलिए चुनी गई क्योंकि 13 फरवरी 1946 को संयुक्त राष्ट्र रेडियो (UN Radio) की स्थापना हुई थी। रेडियो, जो सूचना, मनोरंजन और शिक्षा का सशक्त जरिया है, आज भी डिजिटल युग में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है।
1923 से आजादी तक, संचार क्रांति की कहानी
Baten UP Ki Desk
Published : 13 February, 2025, 2:34 pm
Author Info : Baten UP Ki