जब रेडियो बना स्वतंत्रता संग्राम की आवाज़! जानिए 1923 से आजादी तक संचार क्रांति की कहानी...
कभी सर्द रातों में लिहाफ में दुबककर कानों में रस घोलती आवाज़, तो कभी अलसाई दोपहर में ट्रांजिस्टर के पास बैठे गांव-शहर के हर कोने से उठती मीठी धुनें... रेडियो, जो सिर्फ एक उपकरण नहीं, बल्कि यादों का अनमोल ख़ज़ाना है। एक दौर था जब घर की सबसे बड़ी शान हुआ करता था एक छोटा-सा रेडियो, जो शादी-ब्याह में खास उपहार होता। हर सुबह की चाय के साथ समाचारों की चुस्की, तो शाम को सुरों का जादू... रेडियो ने हर दिल की धड़कनों में अपनी जगह बनाई है।

आज भी वो सुरीली धड़कन कायम है-बदलते रूपों में, नई आवाज़ों में, एफएम की तरंगों पर, डिजिटल वेव्स में। उद्घोषक से रेडियो जॉकी तक, आकाशवाणी से पॉडकास्ट तक, जयमाला से मन की बात तक—यह माध्यम वक्त के साथ बदलता रहा, लेकिन इसकी आत्मा वही रही—सुनने वालों के दिलों को छूने वाली। तो चलिए, एक बार फिर ट्यून इन करते हैं उन यादों की फ़्रीक्वेंसी पर, जहां हर धुन में एक कहानी बसती है, हर आवाज़ में एक एहसास जागता है...
वर्ल्ड रेडियो डे: संचार का सदाबहार माध्यम
हर साल 13 फरवरी को वर्ल्ड रेडियो डे मनाया जाता है, जो संचार के इस प्रभावशाली माध्यम की अहमियत को दर्शाता है। इसकी शुरुआत 2011 में हुई थी, जब यूनेस्को ने स्पेन की रेडियो अकादमी के प्रस्ताव को मंजूरी दी। यह तारीख विशेष रूप से इसलिए चुनी गई क्योंकि 13 फरवरी 1946 को संयुक्त राष्ट्र रेडियो (UN Radio) की स्थापना हुई थी। रेडियो, जो सूचना, मनोरंजन और शिक्षा का सशक्त जरिया है, आज भी डिजिटल युग में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है।
1923 से आजादी तक, संचार क्रांति की कहानी
भारत में रेडियो प्रसारण की शुरुआत 1923 में मुंबई के रेडियो क्लब से हुई थी, जिसने संचार के नए युग की नींव रखी। 1927 में इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी बनी, जिसे 1936 में ऑल इंडिया रेडियो (AIR) का नाम दिया गया। आजादी के समय, आकाशवाणी के पास सिर्फ 6 रेडियो स्टेशन थे, लेकिन इसकी आवाज ने स्वतंत्रता संग्राम को मजबूत किया। 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी की ऐतिहासिक घोषणा भी रेडियो पर हुई थी। आज, आकाशवाणी के 223 से अधिक स्टेशन हैं, जो करोड़ों लोगों तक सूचना और मनोरंजन पहुंचा रहे हैं।

जब रेडियो बना स्वतंत्रता संग्राम की आवाज
देश की आजादी में रेडियो ने अहम भूमिका निभाई, जब 1941 में सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी से प्रसारण कर "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" का जोश भरने वाला नारा दिया। 14-15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ऐतिहासिक "ट्रिस्ट विद डेस्टिनी" भाषण भी रेडियो पर दिया, जो आज भी ऑल इंडिया रेडियो के अभिलेखों में सुरक्षित है। विभाजन के दौरान जब देश सांप्रदायिक तनाव से जूझ रहा था, तब महात्मा गांधी ने भी रेडियो के जरिए देशवासियों को शांति और एकता का संदेश दिया था।
रेडियो से उठेगी जलवायु परिवर्तन के खिलाफ आवाज़-
रेडियो की अहमियत बनाए रखने के लिए हर साल वर्ल्ड रेडियो डे पर एक खास थीम तय की जाती है। इस बार की थीम "रेडियो एंड क्लाइमेट चेंज" है, जो रेडियो की भूमिका को जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता बढ़ाने और समाधान सुझाने के दृष्टिकोण से उजागर करेगी। इस विषय पर गुवाहाटी यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर अबानी कुमार भागाबती एक विशेष सत्र का संचालन करेंगे, जिसमें बताया जाएगा कि कैसे रेडियो अपनी व्यापक पहुंच के जरिए पर्यावरण संरक्षण के संदेश को हर घर तक पहुंचा सकता है।