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शोषण के खिलाफ सुरक्षा से लेकर मातृत्व अवकाश तक...महिलाओं को मिले ये अहम संवैधानिक अधिकार!

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कल्पना कीजिए, यदि यह संसार बिना स्त्री के होता तो क्या होता? वह जो जन्म देती है, वह जो हर दर्द को मुस्कान में बदल देती है, वह जो परिवार की धुरी होती है-उसके बिना जीवन अधूरा नहीं, बल्कि असंभव होता। माँ के रूप में ममता, बहन के रूप में विश्वास, बेटी के रूप में स्नेह और बहू के रूप में अपनापन-हर रूप में नारी जीवन का आधार है। इसीलिए महिलाओं को सम्मानित करने के लिए हर साल 8 मार्च के दिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस केवल एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि नारी शक्ति, संघर्ष और सफलता की अनगिनत कहानियों को सलाम करने का अवसर है। यह दिन उन सभी महिलाओं को समर्पित है, जिन्होंने अपनी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों से दुनिया को नया आकार दिया। तो आइए, इस खास दिन पर नारीत्व का उत्सव मनाएँ और उनके योगदान की सराहना करें।

देश की असली ताकत – नारी शक्ति

अगर किसी देश को सशक्त और समृद्ध बनना है, तो उसकी असली ताकत क्या होनी चाहिए?
सेना? धन-दौलत? टेक्नोलॉजी? नहीं! उसकी असली ताकत होती है – महिलाएँ! स्त्रियाँ केवल समाज की आधारशिला नहीं, बल्कि विकास और प्रगति की वाहक भी हैं। हमारी संस्कृति भी यही कहती है—

"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः।" (जहाँ महिलाओं का सम्मान होता है, वहाँ देवताओं का वास होता है।)

नारी सिर्फ शक्ति नहीं, बल्कि स्नेह, सहनशीलता, साहस और सृजन की प्रतीक है। एक सशक्त महिला, एक सशक्त परिवार बनाती है, और एक सशक्त परिवार ही एक मजबूत राष्ट्र की नींव रखता है। इसलिए, अगर हमें अपने देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाना है, तो हमें नारी सम्मान और सशक्तिकरण को प्राथमिकता देनी होगी। क्योंकि जब एक महिला आगे बढ़ती है, तो पूरा समाज आगे बढ़ता है। केवल हमारे शास्त्रों में ही नहीं हमारे संविधान में भी उचित अधिकार दिए गए हैं। 

महिलाओं को मिले संवैधानिक अधिकार

महिला सशक्तिकरण की दिशा में हमारा संविधान महिलाओं को कई महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान करता है, जिससे वे स्वतंत्र, सुरक्षित और समान रूप से आगे बढ़ सकें। लेकिन, आज भी कई महिलाएं अपने संवैधानिक अधिकारों से अनजान हैं। इस महिला दिवस पर आइए जानते हैं वे विशेष प्रावधान, जो हर महिला को जानने और अपनाने चाहिए।

समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18) – कोई भेदभाव नहीं!

संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार देता है, चाहे वह महिला हो या पुरुष। किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। खास बात यह है कि अनुच्छेद 15(3) के तहत महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष कानून बनाए जा सकते हैं, ताकि वे समाज में समान अवसर पा सकें।

स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22) – अपनी शर्तों पर जिएं!

हर महिला को स्वतंत्रता का अधिकार है—अपनी बात रखने, कहीं भी आने-जाने, अपने पसंदीदा पेशे को अपनाने और अपनी शर्तों पर जीवन जीने का। अगर कोई उनकी स्वतंत्रता छीनने की कोशिश करता है या धमकाता है, तो वे कानूनी कार्रवाई कर सकती हैं।

शोषण के खिलाफ अधिकार (अनुच्छेद 23-24) – जबरन मजदूरी और तस्करी पर रोक!

महिलाओं के खिलाफ किसी भी प्रकार के शोषण, जबरन मजदूरी या मानव तस्करी को संविधान गैरकानूनी मानता है। 14 साल से कम उम्र की लड़कियों से मजदूरी कराना पूरी तरह अवैध है।

सम्मान और गरिमा का अधिकार (अनुच्छेद 21) – सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन!

हर महिला को सम्मान और गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार है। यदि कोई उनके शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है, तो वे कानूनी मदद ले सकती हैं। यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और दहेज प्रताड़ना जैसे अपराधों पर सख्त कानून हैं।

मातृत्व और श्रम अधिकार (अनुच्छेद 42) – मातृत्व का सम्मान!

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को विशेष सुविधाएं मिलनी चाहिए। नौकरी करने वाली महिलाओं को मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) और सुरक्षित कार्यस्थल का अधिकार है, ताकि वे बिना किसी भय के काम कर सकें।

मतदान और राजनीतिक अधिकार (अनुच्छेद 243D और 243T) – राजनीति में भागीदारी!

महिलाओं को न केवल मतदान का अधिकार है, बल्कि वे चुनाव लड़कर भी नेतृत्व कर सकती हैं। पंचायतों और नगर पालिकाओं में 33% आरक्षण का प्रावधान है, जिससे महिलाएं राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा सकें।

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