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क्या जज देंगे अपनी संपत्ति का ब्यौरा? लेकिन ज़रूरी नहीं! आखिर जनता पूछे तो किससे...

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सुप्रीम कोर्ट में देश के सभी न्यायाधीशों की एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित हुई, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि हर जज यदि चाहें, तो अपनी संपत्ति का विवरण सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर डाल सकते हैं। इस फैसले के बाद अब कोई भी नागरिक https://www.sci.gov.in/hi वेबसाइट पर जाकर “न्यायाधीश” सेक्शन में “संपत्ति का विवरण” लिंक पर क्लिक करके देख सकता है कि किन-किन जजों ने अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक की है।

फैसला ऐच्छिक, अनिवार्य नहीं

यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि यह कदम अनिवार्य नहीं, बल्कि पूरी तरह स्वैच्छिक (Optional) है। यानी अगर कोई जज अपनी संपत्ति की जानकारी नहीं देना चाहते, तो उनसे इसे साझा करने की ज़रूरत नहीं है। सवाल उठता है कि अगर यही नियम नेताओं या IAS अफसरों पर लागू हों, तो क्या जनता इसे स्वीकार करेगी?

पहले भी उठ चुकी है पारदर्शिता की माँग

यह कोई पहली बार नहीं है जब जजों की संपत्ति को सार्वजनिक करने का मुद्दा सामने आया हो।

  • 1997 में उस समय के मुख्य न्यायाधीश जे एस वर्मा ने कहा था कि जजों को अपनी संपत्ति की जानकारी देनी चाहिए, लेकिन यह जानकारी सिर्फ मुख्य न्यायाधीश के पास रहेगी, आम जनता के लिए नहीं।

  • 2009 में सरकार ने “न्यायाधीश संपत्ति विधेयक” पेश किया, जिसमें यही प्रस्ताव था कि जज अपनी संपत्ति घोषित करेंगे, लेकिन उसे सार्वजनिक नहीं किया जाएगा

  • इस प्रस्ताव पर RTI कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज ने कड़ा विरोध जताया, जिसके चलते यह बिल रद्द हो गया।

  • इसके बाद, उसी साल RTI के दबाव में कुछ जजों ने अपनी संपत्ति स्वेच्छा से घोषित करनी शुरू की, लेकिन इसका कोई तय फॉर्मेट या नियमितता नहीं रही।

RTI से भी नहीं मिल सकती जानकारी

सबसे बड़ा सवाल ये है कि जब यह जानकारी देना अनिवार्य नहीं है, और न्यायपालिका अभी तक RTI (सूचना का अधिकार) के दायरे में नहीं आती, तो फिर जनता इसे जान भी कैसे पाएगी?
यानी अगर कोई जज अपनी संपत्ति की जानकारी वेबसाइट पर डालता है तो ठीक, लेकिन अगर नहीं डालता, तो RTI लगाकर भी आम नागरिक वो जानकारी हासिल नहीं कर सकता।

तो क्या यही है पारदर्शिता?

आज जब सरकार, प्रशासन और नौकरशाही से पारदर्शिता की उम्मीद की जाती है, तो न्यायपालिका को उससे अलग कैसे रखा जा सकता है? क्या "चुनिंदा पारदर्शिता" ही जवाब है? और सबसे अहम बात – अगर जवाबदेही जनता के प्रति है, तो फिर छूट सिर्फ मर्जी से जानकारी देने की क्यों? नज़र रखने वाली बात यह होगी कि कितने जज इस फैसले के तहत अपनी संपत्ति सार्वजनिक करते हैं और यह पहल कितनी व्यापक और नियमित बन पाती है।

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