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जम्मू-कश्मीर को मिल जायेगा पूर्ण राज्य का दर्जा?

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जम्मू-कश्मीर में नई सरकार बन चुकी है और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। ये खास इसलिए है क्योंकि जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद उमर अब्दुल्ला पहले मुख्यमंत्री बने हैं। उमर अब्दुल्ला की कैबिनेट ने जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। शपथ ग्रहण समारोह के एक दिन बाद, गुरुवार को श्रीनगर के सिविल सचिवालय में कैबिनेट की पहली बैठक हुई, जहां यह महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किया गया। बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला जल्द ही दिल्ली जाकर यह मसौदा पीएम मोदी को सौंपेंगे, जिसमें जम्मू-कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा देने का आग्रह किया जाएगा।

उमर अब्दुल्ला इससे पहले रह चुके हैं मुख्यमंत्री-

इससे पहले वो 2009 से 2015 तक भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं। ये कहानी सिर्फ एक सरकार के बनने की नहीं है, बल्कि जम्मू-कश्मीर के भविष्य की दिशा तय करने की भी है। आइए जानते हैं इस नई सरकार की चुनौतियों, वादों और उम्मीदों के बारे में।

नेशनल कॉन्फ्रेंस की वापसी: वादों से मिली बड़ी जीत-

नेशनल कॉन्फ्रेंस, जो 2014 के चुनाव में केवल 15 सीटों पर सिमट गई थी, इस बार 42 सीटें जीतने में कामयाब रही। इस जीत का सबसे बड़ा कारण उनका वादा था-जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा वापस दिलाने और अनुच्छेद 370 की बहाली करने का। 

चुनौतियों का सामना: फारूक अब्दुल्ला का 'कांटो भरा ताज'-

उमर अब्दुल्ला के पिता, पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने शपथ ग्रहण के बाद कहा कि ये 'कांटो भरा ताज' है, यानी यह सफर आसान नहीं होने वाला। वहीं, उमर अब्दुल्ला के बेटे जाहिर ने साफ कहा कि उनकी सरकार की पहली प्राथमिकता पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करना होगा। इसके बाद ही अनुच्छेद 370 की बहाली की कोशिशें तेज होंगी।

पूर्ण राज्य का दर्जा और अनुच्छेद 370 की बहाली-

अब सवाल ये उठता है कि क्या उमर अब्दुल्ला सरकार वास्तव में जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करवा पाएगी? सरकार ने पहली कैबिनेट मीटिंग में इस पर प्रस्ताव पास करने की बात कही है, लेकिन यह पूरा मामला केंद्र सरकार पर निर्भर करता है । उमर अब्दुल्ला अगर पहली कैबिनेट मीटिंग में राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग को लेकर प्रस्ताव पास कर भी देती है तो ये सिर्फ और सिर्फ केंद्र पर दबाव बनाने की कोशिश होगी, लेकिन इससे कुछ खास फर्क नहीं पड़ेगा। इस तरह का प्रस्ताव पास होने के बाद उसे केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा। ये सबकुछ केंद्र पर निर्भर करेगा कि वो जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा अभी बहाल करती है या नहीं। बता दें कि 2019 में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून के तहत राज्य का दर्जा हटाया गया था , और इसे वापस पाने के लिए संसद में कानून में बदलाव करना होगा।

पूर्ण राज्य का दर्जा क्यों जरूरी है?

अगर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा वापस मिलता है, तो वहां की विधानसभा को और भी अधिकार मिल जाएंगे। पुलिस और कानून-व्यवस्था को छोड़कर बाकी सभी मामलों में राज्य सरकार कानून बना सकेगी, और उपराज्यपाल की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी। साथ ही, सरकार को मंत्रियों की संख्या बढ़ाने का मौका मिलेगा ।

केंद्र सरकार की भूमिका: कब मिलेगी मंजूरी?

केंद्र सरकार ने कई बार कहा है कि सही समय आने पर जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने अपने चुनावी रैलियों में इस वादे को दोहराया भी है। लेकिन ये कब होगा, इसका जवाब केंद्र के पास है। इस बीच, सुप्रीम कोर्ट में इस पर याचिकाएँ दायर की जा चुकी हैं और अदालत ने इस पर जल्द फैसला लेने की बात भी कही है।

वादों और उम्मीदों का सफर: नई सरकार की जिम्मेदारी-

उमर अब्दुल्ला की नई सरकार के सामने चुनौतियाँ तो बहुत हैं, लेकिन उनके वादे भी बड़े हैं। जम्मू-कश्मीर के लोगों को उम्मीद है कि जल्द ही राज्य का दर्जा बहाल होगा और उनकी समस्याओं का समाधान निकलेगा। अब देखना ये है कि नई सरकार इन वादों को कैसे पूरा करती है और केंद्र सरकार कब इस पर अपनी मुहर लगाती है।

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