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कैथोलिक चर्च में काम करने वाले पादरी और ननों पर इनकम टैक्स नहीं लगता है। हालांकि, यह प्रश्न उठता है कि आखिर ऐसा क्यों है? इस विषय में गहराई से जानते हैं कि कैसे यह परंपरा शुरू हुई और आज के समय में इसका क्या महत्व है। दरअसल, पादरियों और ननों को टैक्स छूट का यह सिलसिला 1940 के दशक में ब्रिटिश शासनकाल से शुरू हुआ। ब्रिटिश सरकार ने इस दौरान घोषणा की थी कि चूंकि पादरी और नन समाज सेवा में कार्यरत हैं, इसलिए उन पर टैक्स नहीं लगाया जाएगा। स्वतंत्रता के बाद भारतीय सरकार ने भी इस छूट को जारी रखा और इसे औपचारिक रूप से मान्यता दे दी गई।
साल 2014 में आया नया मोड़-
साल 2014 में इस मामले ने एक नया मोड़ लिया, जब केंद्र सरकार ने चर्च में काम करने वाले लोगों के वेतन पर टैक्स लगाने का निर्णय किया। इसका कई धार्मिक संस्थाओं ने विरोध किया और तर्क दिया कि पादरी और नन 'सिविल डेथ' की शपथ लेते हैं। इसका अर्थ यह है कि वे न तो निजी संपत्ति रखते हैं, न ही शादी करते हैं और अपनी आय भी धर्मार्थ संस्थाओं को दान कर देते हैं ताकि समाज की भलाई हो सके। ऐसे में वे इनकम टैक्स से छूट की मांग कर रहे थे। इस निर्णय का विरोध करते हुए कई धार्मिक संगठनों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। उनका कहना था कि पादरी और नन गरीबी की शपथ लेते हैं और व्यक्तिगत संपत्ति का त्याग कर समाज सेवा में अपना जीवन समर्पित करते हैं, इसलिए उन्हें टैक्स में छूट मिलनी चाहिए। उनका यह भी तर्क था कि उन्होंने अपनी व्यक्तिगत पहचान छोड़ दी है और वे न तो संपत्ति बना सकते हैं और न ही उनके परिवार के किसी सदस्य का उन पर कोई अधिकार हो सकता है।
क्या है केरल हाई कोर्ट का फैसला?
लगभग दस साल पहले यह मामला केरल हाई कोर्ट में भी पहुंचा था, जहां अदालत ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया कि चाहे धार्मिक संस्थाओं का अपने सदस्यों पर अधिकार हो, लेकिन यह सिविल कानून से ऊपर नहीं हो सकता। अदालत ने माना कि जो व्यक्ति सिविल डेथ की शपथ लेता है, उसे नौकरी करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। कोर्ट के इस फैसले के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का निर्णय?
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने, जिसमें जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ भी शामिल थे, इस विवाद का निपटारा करते हुए कहा कि पादरी और नन को इनकम टैक्स से छूट नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहा कि चाहे पादरी और नन अपनी तनख्वाह खुद उपयोग में न लें, पर वे वेतन तो प्राप्त करते ही हैं। इसलिए उन्हें टैक्स के दायरे में रखा जाएगा और टीडीएस (टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स) काटा जाएगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चाहे उनकी आय सीधे उनके पास न पहुंचे, फिर भी भारतीय कानून के अनुसार इनकम टैक्स सभी पर लागू होता है।
अन्य देशों में क्या हैं नियम?
यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि दूसरे देशों में इस तरह के मामलों में क्या नियम लागू होते हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका में चर्च और धार्मिक संगठनों को टैक्स में छूट प्रदान की जाती है। यूरोप के कई देशों में चर्च के सदस्यों पर भी टैक्स लगाया जाता है, जबकि स्पेन जैसे देशों में चैरिटी कार्य को नॉन-प्रॉफिट माना जाता है और इस पर एक विशेष कर लगाया जाता है।
Baten UP Ki Desk
Published : 14 November, 2024, 8:33 pm
Author Info : Baten UP Ki