ब्रेकिंग न्यूज़
35 साल पहले कोलकाता में एक खौ़फनाक हत्याकांड हुआ था, जिसने पूरे समाज को झकझोर दिया था। आज उसी शहर में आरजी कर अस्पताल में एक प्रशिक्षु महिला डॉक्टर के साथ हुई दरिंदगी की घटना ने उसी दर्दनाक हत्याकांड की यादें ताजा कर दी हैं। इन दोनों घटनाओं में एक अनोखी समानता है: वे अपराधी, जिनपर खुद पीड़ितों की सुरक्षा की जिम्मेदार थी, वही सुरक्षा करने के बजाय अपराधी बन गए। दरअसल, इनमें से हर एक अपराध उस रक्षक के हाथों हुआ, जिसे सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी।
1990 की घटित घटना की समानताएँ और आज भी उठते सवाल:
हेतल पारेख हत्याकांड: सुरक्षा कर्मी का घिनौना कृत्य
हेतल पारेख की हत्या का आरोपी धनंजय चटर्जी, जो कोलकाता के भवानीपुर क्षेत्र के एक आवासीय कॉम्प्लेक्स में सुरक्षा कर्मी था, 14 वर्षीय हेतल की सुरक्षा का जिम्मा निभा रहा था। वहीं, आरजी कर कांड के आरोपी संजय रॉय, जो कोलकाता पुलिस का सिविक वालंटियर था, भी उसी अस्पताल की सुरक्षा का जिम्मा उठाए हुए था, जहाँ महिला डॉक्टर काम करती थी। दोनों घटनाओं ने सुरक्षा की परिभाषा को ही सवालों के घेरे में डाल दिया।
जनाक्रोश और न्याय की आवाज
दोनों ही घटनाओं ने नागरिक समाज को चौंका दिया। 1990 में हुए हेतल पारेख कांड के खिलाफ वही जनाक्रोश था जो आरजी कर कांड में देखने को मिला। जहां आरजी कर कांड में डॉक्टर समुदाय ने आक्रोशित होकर आंदोलन किया, वहीं हेतल के मामले में शिक्षकों ने न्याय की आवाज उठाई। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आरजी कर कांड में सड़कों पर उतरकर न्याय की मांग की, वहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की पत्नी मीरा भट्टाचार्य ने हेतल के लिए न्याय की आवाज उठाई।
जांच पर सवाल: क्या अपराधियों का नेटवर्क था?
आरजी कर कांड में दोषी ठहराए गए संजय रॉय को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, लेकिन मृतका के माता-पिता और आंदोलनकारी जूनियर डॉक्टर इससे संतुष्ट नहीं हैं। उनका मानना है कि कई और लोग इस अपराध में शामिल थे, और उन्होंने कोलकाता पुलिस व बाद में सीबीआई जांच पर सवाल उठाए। ठीक इसी तरह, हेतल पारेख हत्याकांड की जांच पर भी सवाल उठाए गए थे। यह माना गया कि जांच में खामियों की वजह से धनंजय को फांसी दी गई थी।
बेकसूर बताने वाला आरोपी: धनंजय का विरोधाभासी दावा
धनंजय चटर्जी ने हमेशा खुद को बेकसूर बताया। हालांकि, उसे फांसी देने से पहले, अदालत के सभी फैसलों के बावजूद, वह अपनी दोषी स्थिति को स्वीकार नहीं कर सका। 14 अगस्त 2004 को उसे अलीपुर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई, और यह वही दिन था जब उसका 42वां जन्मदिन भी था।
मृत्यु के पर्दे के पीछे: दोनों घटनाएँ
1990 में 5 मार्च को हेतल पारेख की लाश उसके फ्लैट में मिली थी। पोस्टमार्टम में दुष्कर्म के बाद हत्या की पुष्टि हुई। वहीं, 9 अगस्त 2024 को आरजी कर अस्पताल से महिला डॉक्टर का शव मिला, और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी यही पाया गया कि महिला के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या की गई थी।
आखिरकार, जांच और न्याय पर सवाल
अब सवाल उठना लाज़मी बनता है, क्या जांच सही तरीके से हुई? क्या दोषियों तक पहुँचने में कोई कमी रह गई? और क्या इन अपराधों के पीछे एक बड़ा नेटवर्क था, जिस तक पुलिस और जांच एजेंसियाँ नहीं पहुँच पाईं? इन घटनाओं ने यह साबित कर दिया कि अपराध और सुरक्षा के सवालों को लेकर सामाजिक चेतना हमेशा जागरूक रहनी चाहिए।
Baten UP Ki Desk
Published : 20 January, 2025, 7:02 pm
Author Info : Baten UP Ki