दुनिया का सबसे प्रभावशाली राष्ट्रपति, जिसे नहीं चुनती जनता! जानिए कैसे ज्यादा वोट पाकर भी कैंडिडेट हार जाते हैं चुनाव
(Special Story)
आज यानी मंगलवार, 5 नवंबर को अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इस बार रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप, जो 78 साल के हैं, और डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रत्याशी कमला हैरिस, जिनकी उम्र 60 साल है, के बीच जोरदार मुकाबला देखने को मिल रहा है। करीब 16 करोड़ अमेरिकी मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए यह तय करेंगे कि देश की अगली राजनीतिक दिशा कौन तय करेगा। मतदान समाप्त होते ही मतगणना शुरू हो जाएगी और कल तक इस दिलचस्प मुकाबले के नतीजे आने की भी संभावना है।
पूरी दुनिया की राजनीति को करता है प्रभावित-
अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव न सिर्फ अमेरिका बल्कि पूरी दुनिया की राजनीति को प्रभावित करता है। इस चुनाव में कुछ छोटी पार्टियाँ, जैसे कि ग्रीन पार्टी से जिल स्टाइन, भी चर्चाओं में हैं। हालांकि, अब तक कोई तीसरी पार्टी राष्ट्रपति चुनाव नहीं जीत पाई है। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हर चार साल में नवंबर के पहले मंगलवार को होता है। लेकिन चुनाव की तैयारी बहुत पहले से शुरू हो जाती है। एक उम्मीदवार को राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए कुछ शर्तें पूरी करनी होती हैं।
उम्मीदवार को राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए क्या हैं शर्तें?
एक उम्मीदवार को राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए कुछ शर्तें पूरी करनी होती हैं। जैसे अमेरिकी संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार का अमेरिका में जन्म होना चाहिए , उसकी उम्र कम से कम 35 साल होनी चाहिए और उसे पिछले 14 साल से अमेरिका में रहना चाहिए । जब कोई उम्मीदवार अपने चुनाव अभियान में $5,000 से ज्यादा खर्च या इकट्ठा कर लेता है, तो उसे Federal Election Commission (FEC) के साथ पंजीकरण करना होता है। इसके बाद उनका आधिकारिक चुनाव प्रचार शुरू हो जाता है।
प्राइमरी और कॉकस क्या हैं?
अब आइए जानते हैं कि प्राइमरी और कॉकस क्या हैं? Actually जब उम्मीदवार अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करते हैं, तब प्राइमरी और कॉकस की प्रक्रिया शुरू होती है। प्राइमरी राज्य-स्तरीय चुनाव होते हैं , जिसमें राजनीतिक पार्टियाँ अपने राष्ट्रपति उम्मीदवार चुनती हैं। प्राइमरी में लोग गुप्त मतदान करते हैं और अपने पसंदीदा उम्मीदवार को चुनते हैं। वहीं, कॉकस में चर्चा और बहस के बाद उम्मीदवारों को समर्थन दिया जाता है ।
कॉकस और प्राइमरी तीन प्रकार के होते हैं-
- ओपन प्राइमरी जहां कोई भी वोट कर सकता है ।
- क्लोज़्ड प्राइमरी जहां सिर्फ पार्टी से जुड़े सदस्य वोट कर सकते हैं ।
- सेमी-क्लोज़्ड जिसमें ओपन और क्लोज़्ड दोनों का मिश्रण होता है ।
प्राइमरी और कॉकस के बाद चुने गए प्रतिनिधि राष्ट्रीय सम्मेलनों में अपने उम्मीदवार को समर्थन देते हैं। राष्ट्रीय सम्मेलन वह जगह है जहाँ पार्टियाँ अपने राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति उम्मीदवारों का चुनाव करती हैं। यहाँ चुने गए प्रतिनिधि वोट देकर राष्ट्रपति उम्मीदवार का चयन करते हैं। अगर किसी को बहुमत नहीं मिलता, तो अतिरिक्त वोटिंग राउंड होते हैं। राष्ट्रपति उम्मीदवार फिर अपने उप-राष्ट्रपति का भी चयन करता है।
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया कैसी होती है?
अब आता है चुनाव का दिन। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का दिन आता है नवंबर के पहले मंगलवार को। वोटर्स किसी भी पार्टी के उम्मीदवार को वोट कर सकते हैं, चाहे उन्होंने प्राइमरी में वोट किया हो या नहीं। कुछ लोग पहले से ही मेल या अनुपस्थित मतदान ( absentee voting ) के माध्यम से वोट कर सकते हैं, जो राज्यों के नियमों के अनुसार होता है।
क्या होता है इलेक्टोरल कॉलेज?
अब आता है सबसे दिलचस्प हिस्सा – इलेक्टोरल कॉलेज। अमेरिका में राष्ट्रपति को सीधे जनता के वोट से नहीं चुना जाता, बल्कि इलेक्टोरल कॉलेज के 538 सदस्य उन्हें चुनते हैं । हर राज्य को अपनी जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व मिलता है । जनता अपने राज्य में वोट करती है, लेकिन वो असल में इलेक्टर्स को चुन रही होती है, जो बाद में राष्ट्रपति चुनते हैं।
अधिक वोट पाकर भी कैसे हार जाते हैं चुनाव
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों में इलेक्टोरल कॉलेज की भूमिका बेहद अहम होती है। इस प्रणाली के कारण, कई बार ऐसा होता है कि जिस उम्मीदवार को अधिक ‘पॉपुलर वोट’ मिले हों, वह राष्ट्रपति नहीं बन पाता। अमेरिकी चुनाव में यह अनोखी व्यवस्था क्यों अपनाई गई है, इसका इतिहास क्या है, और कैसे यह चुनाव परिणामों को प्रभावित करती है? आइए, जानते हैं विस्तार से।
कैसे काम करती है यह अनोखी प्रणाली?
इलेक्टोरल कॉलेज अमेरिकी चुनाव प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अमेरिकी नागरिक सीधे राष्ट्रपति के लिए वोट नहीं डालते, बल्कि अपने राज्यों के निर्वाचकों (इलेक्टर्स) को चुनते हैं। ये इलेक्टर्स बाद में मिलकर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चयन करते हैं। अमेरिका में कुल 538 इलेक्टर्स हैं और इनमें से 270 इलेक्टोरल वोट हासिल करना किसी भी उम्मीदवार की जीत के लिए जरूरी होता है।
इलेक्टोरल कॉलेज का इतिहास: क्यों चुनी गई यह प्रणाली?
अमेरिका के संस्थापकों ने 1787 में संविधान में इस प्रणाली को शामिल किया था ताकि राष्ट्रपति का चयन राज्यों की शक्ति को संतुलित करते हुए हो। यह ‘विनर-टेक्स-ऑल’ प्रणाली पर आधारित है, जिसमें ज्यादातर राज्यों में जो उम्मीदवार अधिक वोट पाता है, वह उस राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट प्राप्त करता है।
'पॉपुलर वोट' और 'इलेक्टोरल वोट' में अंतर-
अमेरिकी चुनावों में पॉपुलर वोट, यानी जनता द्वारा सीधे डाले गए वोट, और इलेक्टोरल वोट अलग होते हैं। इलेक्टोरल कॉलेज के तहत, कई बार ऐसा होता है कि पॉपुलर वोट जीतने के बावजूद उम्मीदवार इलेक्टोरल वोट में पीछे रह जाता है। 2016 के चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने ऐसा ही करके राष्ट्रपति पद हासिल किया था, जबकि हिलेरी क्लिंटन ने उनसे ज्यादा पॉपुलर वोट हासिल किए थे।
प्रत्येक राज्य को कितने इलेक्टोरल वोट मिलते हैं?
अमेरिका में कुल 538 इलेक्टोरल वोट हैं। प्रत्येक राज्य में इलेक्टोरल वोटों की संख्या उसकी जनसंख्या के अनुसार निर्धारित होती है। सबसे अधिक वोट वाले राज्यों में कैलिफोर्निया (54 वोट) और टेक्सास (40 वोट) शामिल हैं। छोटे राज्यों में, जैसे वायोमिंग, डेलावेयर आदि में, न्यूनतम तीन इलेक्टोरल वोट होते हैं।
इलेक्टर्स का चुनाव: कौन होते हैं ये निर्वाचक?
इलेक्टर्स को चुनाव से पहले उनके जुड़े राजनीतिक दल द्वारा चुना जाता है। ये निर्वाचक राज्यों में निर्धारित नियमों के अनुसार अपने वोट डालते हैं, और आमतौर पर उन्हीं उम्मीदवारों को समर्थन करते हैं जिन्हें पार्टी ने तय किया है। फेथफुल इलेक्टर्स के रूप में जाने जाने वाले ये निर्वाचक किसी भी पार्टी के लिए वोट कर सकते हैं, हालांकि ज्यादातर अपने पार्टी उम्मीदवारों के पक्ष में वोट डालते हैं।
अगर इलेक्टोरल वोट बराबर हों, तो क्या होता है?
यदि किसी भी उम्मीदवार को 270 इलेक्टोरल वोट नहीं मिलते हैं, तो प्रतिनिधि सभा (हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव) द्वारा राष्ट्रपति का चुनाव किया जाता है। पूरे अमेरिकी इतिहास में ऐसा केवल तीन बार हुआ है।
'विनर-टेक्स-ऑल' प्रणाली: कैसे बदलती है चुनाव की दिशा?
‘विनर-टेक्स-ऑल’ प्रणाली के तहत जिस भी उम्मीदवार को किसी राज्य में सबसे अधिक वोट मिलते हैं, वह उस राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट हासिल कर लेता है। हालांकि, मेन और नेब्रास्का दो ऐसे राज्य हैं जहां इलेक्टोरल वोट को पॉपुलर वोट के आधार पर बांटा जाता है। यह प्रणाली चुनाव के परिणामों को एकतरफा बना सकती है, जैसे 2020 में बाइडन ने कैलिफोर्निया में सभी 55 इलेक्टोरल वोट प्राप्त किए थे।
क्यों महत्वपूर्ण है इलेक्टोरल कॉलेज?
इलेक्टोरल कॉलेज का मुख्य उद्देश्य यह है कि उम्मीदवारों को केवल बड़े शहरों या जनसंख्या-घनत्व वाले राज्यों पर ही निर्भर न रहना पड़े। यह प्रणाली पूरे देश में सभी राज्यों को समान महत्व देती है, जिससे चुनाव में एक राष्ट्रीय संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है।
क्या भविष्य में इलेक्टोरल कॉलेज को बदला जा सकता है?
अमेरिकी राजनीतिक इतिहास में कई बार इस प्रणाली पर सवाल उठाए गए हैं। वर्तमान में भी कई लोग इसे समाप्त करने के पक्ष में हैं ताकि हर नागरिक का वोट सीधे राष्ट्रपति पद की ओर निर्णायक साबित हो। लेकिन, इलेक्टोरल कॉलेज को समाप्त करना आसान नहीं है क्योंकि इसके लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी। अमेरिका में इलेक्टोरल कॉलेज ने राष्ट्रपति चुनावों की दिशा को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि इसके समर्थक और विरोधी दोनों ही पक्ष मौजूद हैं, लेकिन यह तय है कि इलेक्टोरल कॉलेज प्रणाली अमेरिका के लोकतंत्र का एक अनिवार्य हिस्सा बना हुआ है।
By Ankit Verma