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आज की जनरेशन और गांधीजी की विरासत, युवाओं के लिए कितने जरूरी हैं उनके ये आदर्श...

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गाँधी जयन्ती केवल एक तिथि नहीं, बल्कि एक विचारधारा का प्रतीक है। एक ऐसा पथ, जिसे सत्य और अहिंसा की नींव पर महात्मा गांधी ने स्वयं अपने जीवन में जिया और दुनिया को दिखाया। आज के युवाओं की दुनिया तकनीक, प्रतिस्पर्धा और तेजी से बदलते सामाजिक परिवेश में उलझी हुई है, जहां हर कदम पर एक नई चुनौती खड़ी है। ऐसे में गांधी जी के विचारों की प्रासंगिकता और भी अधिक हो जाती है। सवाल यह है कि क्या हम उनकी सादगी, आत्मनिर्भरता, और नैतिकता जैसे आदर्शों को सही मायने में समझ पा रहे हैं? क्या उनके बताए सत्य और अहिंसा के सिद्धांत आज के युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बन पा रहे हैं? आइए, इस गांधी जयन्ती पर उनकी शिक्षा और उनके आदर्शों को युवाओं के संदर्भ में पुनः खोजें, और देखें कि कैसे उनके विचार आज के समय में मार्गदर्शन कर सकते हैं।

इसमें पहला है गांधीवादी मूल्य और आधुनिक चुनौतियाँ-

महात्मा गांधी ने हमेशा अहिंसा, सत्य, और एकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने जातिवाद, सांप्रदायिकता, और क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर सोचना सिखाया। लेकिन आज के दौर में, जहां आधुनिकीकरण और वैश्वीकरण ने हमारी ज़िंदगी को तेज़ी से बदल दिया है, युवाओं के सामने कई नई चुनौतियाँ आ खड़ी हुई हैं। बढ़ती बेरोजगारी, शिक्षा में विषमता, और समाज में बढ़ती असहिष्णुता, ये सब हमारे युवाओं के लिए बड़े सवाल हैं।

दूसरा बिंदु है असहिष्णुता और हिंसा से कैसे निपटें?

आजकल के युवा जल्दी से गुस्सा हो जाते हैं और कई बार असहिष्णुता की वजह से हिंसा का रास्ता चुन लेते हैं। गांधीजी ने हमें सिखाया कि अहिंसा ही सबसे बड़ा हथियार है। मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला जैसे बड़े नेता भी गांधीजी से प्रेरणा लेकर आगे बढ़े। इसलिए, हमें भी शांति और सहनशीलता से समस्याओं का हल निकालना चाहिए।

तीसरा बिंदु है भौतिकवाद और सुखवाद से कैसे बचें?

आज की दुनिया में लोग ज्यादा से ज्यादा भौतिक चीज़ों के पीछे भाग रहे हैं। हमें हर चीज़ चाहिए, लेकिन गांधीजी ने कहा था कि ज़रूरत से ज़्यादा चीज़ों का संग्रह करना भी एक प्रकार की चोरी है। भौतिक सुखों के पीछे भागने से ज़िंदगी का असली सुख छिन जाता है। गांधीजी का साध्य और साधन का सिद्धांत बताता है कि हमें अपने लक्ष्यों तक पहुँचने का सही तरीका अपनाना चाहिए, न कि कोई भी रास्ता चुन लेना।

चौथा बिंदु है शिक्षा में बदलाव और आत्मनिर्भरता-

आज की शिक्षा प्रणाली में विषमता बढ़ गई है। सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में बड़ा फर्क है, जिससे युवाओं में असमानता फैल रही है। गांधीजी का मानना था कि शिक्षा सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि हमें ऐसी शिक्षा चाहिए जो हमें आत्मनिर्भर बनाए। उन्होंने व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास पर ज़ोर दिया था, ताकि हर युवा अपने दम पर रोज़गार पा सके और देश के विकास में योगदान दे सके।

पांचवा बिंदु है निस्वार्थ राष्ट्रवाद और 'वोकल फॉर लोकल'-

गांधीजी का एक और अहम संदेश था - निस्वार्थ राष्ट्रवाद। उन्होंने कहा था कि "स्वयं को खोजने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप दूसरों की सेवा में स्वयं को खो दें।" आज के युवाओं को भी यही करना चाहिए। अपने देश के लिए कुछ करना ही सच्चा राष्ट्रवाद है। हमें ‘वोकल फॉर लोकल’ को अपनाकर अपने स्थानीय उत्पादों और कौशल को बढ़ावा देना चाहिए।

बापू की सीख और उनके आदर्श-

महात्मा गांधी ने हमें सिखाया कि हमारी सोच, हमारे शब्द, और हमारे काम हमारी ज़िंदगी को आकार देते हैं। अगर हम गांधीजी के विचारों को अपनाएं, तो हम अपने जीवन और देश को बेहतर बना सकते हैं। तो दोस्तों, आइए हम सब मिलकर उनके आदर्शों को अपनाएं और भारत को और भी मज़बूत बनाएं।

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