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ओबीसी से निकलकर एससी में क्यों जाना चाहती है यह जाति?

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यूपी के गोरखपुर के एक गांव में राहुल नाम का एक युवक रहता है। वो और उनका परिवार डोली उठाने, पानी भरने, सिंघाड़े की खेती और मछली पालन जैसे काम करते हैं। जो की कहार समुदाय से आते हैं। जिन्हें ओबीसी कैटेगरी में रखा जाता है। लेकिन उनकी आर्थिक और समाजिक स्थिति कुछ ठीक नहीं है। अगर उनका नाम एससी-एसटी की लिस्ट में शामिल हो जाए तो उन्हें सरकारी योजनाओं का अधिक लाभ मिल सकता है और उनकी आर्थिक स्थिति भी सुधर सकती है। लेकिन अब सवाल यह है कि वो एससी-एसटी की लिस्ट में आएंगे कैसे?

उत्तर भारतीय संविधान और केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा निर्धारित मानदंडों पर आधारित है।
 
1.जातियों की श्रेणी तय करने का काम जाति आयोग करता है, जो सामाजिक और आर्थिक स्थितियों का विश्लेषण करके विभिन्न जातियों के लिए आरक्षण की श्रेणी तय करता है। यह आयोग राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करता है और अनुसूचित जातियों और जनजातियों की सूची तैयार करता है।
 
2. भारतीय संविधान के तहत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। एससी और एसटी की सूची में शामिल जातियों को विशेष सुविधाएं और आरक्षण मिलता है, जबकि ओबीसी को भी आरक्षण मिलता है लेकिन वे एससी-एसटी की सूची में शामिल नहीं होते।

क्या है मामला ?

गोरखपुर के धूरिया जनजाति सेवा संस्थान के अध्यक्ष राम अवध गोंड ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है। इस याचिका में उन्होंने कहा है कि कहार समुदाय को ओबीसी सूची से हटा कर एससी या एसटी सूची में शामिल किया जाए। याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि कहार एक जाति नहीं बल्कि एक पेशेगत समूह है। अलग-अलग जातियों और जनजातियों के लोग परंपरागत रूप से कहार के काम को करते चले आ रहे हैं।
 

हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब-

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्य सरकार से जवाब मांगा है। न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए दोनों सरकारों से स्पष्ट जवाब की मांग की है। इस आदेश का महत्व इसलिए भी है क्योंकि इससे केवल कहार समुदाय की स्थिति ही प्रभावित नहीं होगी, बल्कि समाज के अन्य वर्गों की स्थिति पर भी इसका असर पड़ेगा।

कहार समुदाय यह है मांग 

कहार समुदाय के लोग चाहते हैं कि उन्हें ओबीसी सूची से हटा कर एससी या एसटी की सूची में शामिल किया जाए। उनका कहना है कि उनकी पारंपरिक पेशेगत भूमिका के कारण उन्हें उचित जाति प्रमाणपत्र नहीं मिल पा रहा है। अगर उन्हें एससी या एसटी का प्रमाणपत्र मिले, तो उन्हें सरकारी योजनाओं और सुविधाओं का अधिक लाभ मिलेगा। इसके अलावा, सरकारी नौकरियों और अन्य अवसरों में आरक्षण का लाभ भी मिलेगा।

अधिकारों और सामाजिक न्याय पर असर-

याचिका के अधिवक्ता राकेश कुमार गुप्ता के अनुसार, कहार समुदाय के लोग 11 प्रमुख जनजातियों से जुड़े हुए हैं, जिनमें भोई, धीमर, धुरिया, गुरिया, गोंड, कलेनी, कमलेथर, हुर्का, मछेरा, महारा, पनभरा और सिंघाड़िया शामिल हैं। इन जनजातियों को कहीं एससी कैटेगरी में रखा गया है, तो कहीं एसटी में। कहार समुदाय की मांग का असर उनके अधिकारों और सामाजिक न्याय पर पड़ सकता है। अगर उन्हें एससी या एसटी का प्रमाणपत्र मिलता है, तो उन्हें सरकारी योजनाओं का अधिक लाभ मिलेगा। इसके अलावा, उनके लिए सरकारी नौकरियों और अन्य अवसरों में आरक्षण का लाभ भी बढ़ेगा। हाईकोर्ट का आदेश और केंद्र-राज्य सरकारों की प्रतिक्रिया इस पूरे मुद्दे की दिशा तय करेगी। कहार समुदाय की यह मांग उनके अधिकारों और सामाजिक न्याय के लिए है, और इसके निवारण से उनके भविष्य के लिए महत्वपूर्ण बदलाव आ सकते हैं।

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