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बच्चों पर स्मार्टफोन का बढ़ता असर! ये खतरे की घंटी है या विकास की नई राह?

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डिजिटल युग में जहां स्मार्टफोन और इंटरनेट हमारी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा बन चुके हैं, वहीं बच्चों पर इसके नकारात्मक प्रभाव भी तेजी से बढ़ रहे हैं। हाल ही में रिलीज़ हुई वेब सीरीज ‘एडोलसेंस’ में दिखाया गया कि कैसे एक टीनएजर सोशल मीडिया की वजह से साइबर बुलिंग का शिकार होता है और गुस्से में आकर एक लड़की की हत्या कर देता है। यह केवल एक कहानी नहीं, बल्कि हमारे समाज में बढ़ रही एक गंभीर समस्या का संकेत है।

बच्चों के दिमाग पर डिजिटल दुनिया का प्रभाव

विशेषज्ञों के अनुसार, एक बच्चे का दिमाग 25 साल की उम्र तक लगातार विकसित होता रहता है। इस विकास की प्रक्रिया में उम्र के अलग-अलग चरणों का विशेष महत्व होता है:

  • 0-1 वर्ष: देखने, सुनने और महसूस करने की क्षमता विकसित होती है।

  • 1-3 वर्ष: भाषा सीखने और खुद को पहचानने की प्रक्रिया शुरू होती है।

  • 3-6 वर्ष: तर्कशक्ति और याददाश्त तेज होती है।

  • 6-12 वर्ष: पढ़ाई में ध्यान केंद्रित करने और सामाजिक ज़िम्मेदारियाँ समझने की क्षमता बढ़ती है।

  • 12-18 वर्ष: आत्मनिर्भरता और जोखिम लेने की प्रवृत्ति बढ़ती है, लेकिन तर्क शक्ति पूरी तरह विकसित नहीं होती।

  • 18-25 वर्ष: मस्तिष्क पूरी तरह विकसित होता है और व्यक्ति लॉन्ग-टर्म प्लानिंग और सही फैसले लेने में सक्षम होता है।

हालांकि, स्मार्टफोन और सोशल मीडिया ने इस विकास प्रक्रिया को गहराई से प्रभावित किया है।

डिजिटल लत से बढ़ती मानसिक समस्याएं

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की एक स्टडी बताती है कि ज़्यादा स्क्रीन टाइम के कारण बच्चों में मानसिक समस्याएं बढ़ रही हैं:

  • नींद की समस्या: स्क्रीन एक्सपोजर से नींद की गुणवत्ता खराब हो रही है, जिससे डिप्रेशन और एंग्जाइटी बढ़ रही है।

  • ध्यान भटकने की समस्या: पहले इंसान बिना ध्यान भटके औसतन 2.5 मिनट तक किसी कार्य पर फोकस कर सकता था, अब यह घटकर मात्र 47 सेकंड रह गया है।

  • याददाश्त और क्रिएटिविटी पर असर: बच्चे छोटी-छोटी चीजें भी याद नहीं रख पाते और उनकी रचनात्मक सोचने की क्षमता कम हो रही है।

इमोशनल और सामाजिक प्रभाव

  • सोशल मीडिया और आत्मविश्वास: लाइक्स, फॉलोअर्स और ऑनलाइन कॉम्पिटिशन के कारण बच्चे असुरक्षा महसूस करने लगे हैं। साइबर बुलिंग की वजह से आत्मविश्वास पर बुरा असर पड़ रहा है।

  • अश्लील कंटेंट का असर: बार-बार अश्लील कंटेंट देखने से बच्चों का नज़रिया बदल रहा है और वे दूसरों को केवल एक ऑब्जेक्ट की तरह देखने लगते हैं।

  • हिंसक कंटेंट और आक्रामकता: मार्च 2024 में ‘रिसर्चगेट’ पर प्रकाशित स्टडी के अनुसार, ज़्यादा हिंसक कंटेंट देखने से बच्चे आक्रामक हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि हर समस्या का हल हिंसा ही है।

बच्चों को डिजिटल खतरों से कैसे बचाएं?

स्क्रीन टाइम को सीमित करें: बच्चों के लिए स्क्रीन पर बिताने के समय की सीमा तय करें।
सही कंटेंट दिखाएं: उनके लिए एजुकेशनल और प्रेरणादायक सामग्री चुनें।
बातचीत करें: बच्चों से खुलकर चर्चा करें और उन्हें समझाएं कि इंटरनेट पर दिखने वाली हर चीज़ सच नहीं होती।
साइबर सेफ्टी सिखाएं: बच्चों को साइबर खतरों के बारे में जागरूक करें और बताएं कि वे साइबर बुलिंग से कैसे बच सकते हैं।
फैमिली टाइम बढ़ाएं: बच्चों को डिजिटल दुनिया से निकालकर वास्तविक दुनिया से जोड़ें। उनके साथ बाहर जाएं, खेलें और समय बिताएं।

बच्चों पर डिजिटल दुनिया का असर: सतर्क रहने की जरूरत

सोशल मीडिया और इंटरनेट पूरी तरह गलत नहीं हैं, लेकिन इनका अनियंत्रित उपयोग बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास को बिगाड़ सकता है। अगर हम अभी से सतर्क नहीं हुए, तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। बच्चों को डिजिटल दुनिया का जिम्मेदारी से उपयोग सिखाना आज की सबसे बड़ी ज़रूरत बन गई है।

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