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वो साल जब अमेरिका देता रहा पाकिस्तान को हथियार...और भारत लड़ता रहा अकेला युद्ध!

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भारत और अमेरिका के बीच हालिया कूटनीतिक तनाव अब खुलकर सामने आने लगा है। रूस से कच्चा तेल खरीदने को लेकर अमेरिका और यूरोपीय संघ की बार-बार आलोचना का सामना कर रहे भारत ने सोमवार को दो मोर्चों पर जवाब दिया—एक कड़ा कूटनीतिक वक्तव्य और दूसरा ऐतिहासिक दस्तावेज का हवाला।

जब अमेरिका पाकिस्तान को दे रहा था हथियार

भारतीय सेना की ईस्टर्न कमान ने अपने आधिकारिक X (पूर्व ट्विटर) अकाउंट पर 5 अगस्त 1971 की एक पुरानी खबर साझा की है, जिसमें यह बताया गया था कि अमेरिका ने 1954 से लेकर 1971 तक पाकिस्तान को करीब 2 अरब डॉलर के हथियार सप्लाई किए थे। यह खबर ऐसे समय की है जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति बन रही थी—जो अंततः बांग्लादेश की स्वतंत्रता के साथ समाप्त हुआ।

सेना ने क्या कहा?

भारतीय सेना ने यह ऐतिहासिक खबर साझा करते हुए लिखा—
‘इस दिन उस वर्ष | युद्ध की तैयारी - 05 अगस्त 1971’ खबर में उल्लेख था कि उस समय के रक्षा उत्पादन मंत्री वी.सी. शुक्ला ने राज्यसभा में बताया था कि अमेरिका 1954 से पाकिस्तान को लगातार सैन्य मदद दे रहा है, जिसमें भारी संख्या में हथियार और गोला-बारूद शामिल थे।

दोहरा मापदंड? अमेरिका की आलोचना पर भारत का सीधा पलटवार

इसी के समानांतर, भारत सरकार ने अमेरिका और यूरोपीय संघ की आलोचनाओं पर सीधा और तीखा जवाब दिया।
भारत के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट कहा कि:

"भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा और रणनीतिक हितों से समझौता नहीं करेगा। रूस से तेल खरीद जारी रहेगी।"

मंत्रालय ने अमेरिका और यूरोप पर 'पक्षपातपूर्ण व्यवहार' और 'दोहरे मापदंड' अपनाने का आरोप लगाया।

भारत ने गिनाए अमेरिका-रूस व्यापार के आंकड़े

भारत ने यह भी उजागर किया कि अमेरिका खुद रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, पैलेडियम, उर्वरक, रसायन, मशीनरी और ऊर्जा उत्पाद लगातार खरीदता है।
भारत के अनुसार,

"जब अमेरिका खुद रूस से व्यापार कर रहा है, तो भारत को नैतिकता के नाम पर घेरना न केवल अनुचित है, बल्कि तर्कहीन भी।"

भारत का संदेश: रणनीतिक स्वतंत्रता से कोई समझौता नहीं

इस पूरे घटनाक्रम से साफ है कि भारत अब वैश्विक मंच पर साफ, मुखर और आत्मनिर्भर रणनीति के साथ खड़ा है। अमेरिका की आलोचना के जवाब में सेना द्वारा साझा की गई 1971 की खबर न सिर्फ एक ऐतिहासिक उदाहरण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत अपनी विदेश नीति और रक्षा रणनीति पर किसी बाहरी दबाव को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। यह मामला केवल भारत-अमेरिका संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि वैश्विक राजनीति में भारत की मजबूत होती स्थिति और स्वतंत्र रणनीतिक सोच का प्रतीक बनता जा रहा है।

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