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सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में जातिगत भेदभाव को बताया गंभीर अपराध, अनुच्छेद 15 के तहत कार्रवाई के दिए संकेत

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सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में जातिगत भेदभाव से जुड़े एक मामले में आज एक अहम फैसला सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि निचली जातियों को सफाई और झाड़ू लगाने का काम सौंपना और उच्च जातियों को खाना पकाने का काम देना सीधे तौर पर अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है। यह फैसला न केवल जेल मैनुअल के भेदभावपूर्ण प्रावधानों को खारिज करता है, बल्कि जेलों में कैदियों के साथ किए जाने वाले जातिगत भेदभाव की पुरजोर निंदा भी करता है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कई राज्यों से जवाब मांगते हुए निर्देश जारी किए कि इस प्रकार की प्रथाओं को तुरंत रोका जाए।

क्या है मामले की पृष्ठभूमि?

यह मामला तब चर्चा में आया जब एक याचिका में आरोप लगाया गया कि कुछ राज्यों के जेल मैनुअल जाति के आधार पर काम का बंटवारा करते हैं। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि कैदियों को उनकी जाति के आधार पर सफाई और खाना बनाने जैसे काम दिए जाते हैं, जो उनके मौलिक अधिकारों का हनन है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु सहित 17 राज्यों से इस मुद्दे पर जवाब मांगा था, लेकिन केवल पांच राज्यों ने ही समय पर अपना जवाब दाखिल किया।

जातिगत श्रम विभाजन नहीं होगा स्वीकार-

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने साफ कहा कि जेलों में जाति के आधार पर श्रम का विभाजन अस्वीकार्य है। इस प्रकार के भेदभाव से न केवल काम का असमान वितरण होता है, बल्कि यह कैदियों के अधिकारों का उल्लंघन भी है। अदालत ने निर्देश दिया कि सभी कैदियों को मानवीय दृष्टिकोण से समान रूप से काम का अवसर दिया जाना चाहिए।

जातिगत भेदभाव पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती-

अदालत ने राज्य की जेल नियमावली के उन प्रावधानों की कड़ी आलोचना की जो कैदियों के साथ जातिगत भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें जेल मैनुअल के इन आपत्तिजनक प्रावधानों में बदलाव करें और तीन महीने के भीतर संशोधित नियम लागू करें। यह सुनिश्चित किया जाए कि किसी विशेष जाति के कैदियों को केवल उनकी जाति के आधार पर सफाईकर्मी या अन्य काम सौंपने की प्रथा बंद की जाए।

खतरनाक कामों से कैदियों को बचाने की हिदायत-

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कैदियों को खतरनाक परिस्थितियों में जैसे सीवर टैंकों की सफाई करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। पीठ ने पुलिस और जेल प्रशासन को इस प्रकार के मामलों को गंभीरता से लेने और जातिगत भेदभाव को रोकने के लिए ईमानदारी से काम करने का निर्देश दिया।

याचिका में उठाए गए मुद्दे क्या हैं?

इस मामले की सुनवाई के दौरान, अदालत ने महाराष्ट्र के कल्याण की निवासी सुकन्या शांता द्वारा दायर याचिका पर विचार किया। याचिका में आरोप लगाया गया था कि कई राज्यों की जेलों में जाति के आधार पर श्रम का आवंटन किया जाता है, जो संविधान के अनुच्छेद 15 के विपरीत है। याचिकाकर्ता ने केरल और पश्चिम बंगाल के जेल नियमों का हवाला देते हुए बताया कि इन राज्यों की जेल संहिताएं स्पष्ट रूप से जाति आधारित भेदभाव को बढ़ावा देती हैं।

अदालत ने जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के लिए दिए स्पष्ट निर्देश-

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने देश की जेल व्यवस्थाओं में सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। अदालत ने जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के लिए स्पष्ट निर्देश दिए हैं और राज्य सरकारों को उनके जेल मैनुअल में आवश्यक संशोधन करने का आदेश दिया है। अब देखना होगा कि राज्य सरकारें इन निर्देशों का पालन कैसे करती हैं और जेलों में कैदियों के साथ समानता और सम्मान का व्यवहार सुनिश्चित करती हैं।

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