बड़ी खबरें
ताइवान से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है। उनके देश के उत्तर-पश्चिमी समुद्री क्षेत्र में एक चीनी गुब्बारा देखा गया है। यह घटना अप्रैल के बाद पहली बार हुई है और यह गुब्बारा ताइवान के कीलुंग पोर्ट से 111 किलोमीटर दूर देखा गया। ताइवान के रक्षा मंत्रालय के अनुसार, यह गुब्बारा उनके एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन ज़ोन (ADIZ) में दाखिल हुआ था।
गुब्बारों का उपयोग: शोध से लेकर जासूसी तक-
गुब्बारे देखने में साधारण लग सकते हैं, लेकिन इनके उपयोग अत्यंत व्यापक हैं। ये वैज्ञानिक शोध, मौसम अध्ययन, और आपदा राहत जैसे कार्यों के लिए उपयोग में लाए जाते हैं। बड़े गुब्बारे 40-50 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं और भारी उपकरणों को लेकर उड़ सकते हैं। इनमें अक्सर हीलियम गैस भरी जाती है और इन्हें हल्के, मजबूत प्लास्टिक से बनाया जाता है।
जासूसी में गुब्बारों का उपयोग क्यों?
गुब्बारे सैटेलाइट का सस्ता विकल्प साबित होते हैं। इनके माध्यम से जासूसी करना इसलिए आसान होता है:
ताइवान-चीन विवाद: गुब्बारे की भूमिका-
ताइवान में दिखे इस गुब्बारे को लेकर आरोप है कि चीन ताइवान की जासूसी कर रहा है। ताइवान खुद को स्वतंत्र देश मानता है, लेकिन चीन उसे अपना हिस्सा बताता है। ऐसे में इस तरह की गतिविधियां ताइवान पर दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर देखी जा रही हैं।
भारत में गुब्बारों का इतिहास-
भारत में वैज्ञानिक गुब्बारों का उपयोग 1948 में शुरू हुआ, जब महान वैज्ञानिक होमी भाभा ने इसे कॉस्मिक रे रिसर्च के लिए इस्तेमाल किया। 1969 में हैदराबाद स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च ने एक विशेष बैलून फैसिलिटी शुरू की। तब से अब तक 500 से अधिक गुब्बारे लॉन्च किए जा चुके हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान (IMD), और अन्य संस्थान इन गुब्बारों का व्यापक रूप से उपयोग करते हैं।
भारत को क्या सिखाती है ये घटना?
ताइवान में हुई इस घटना से भारत को सतर्क रहना चाहिए। जासूसी के लिए गुब्बारों का उपयोग आधुनिक रणनीतियों का हिस्सा बन गया है। चीन के साथ भारत की सीमा पर भी सतर्क निगरानी और तकनीकी तैयारियां आवश्यक हैं। यह घटना न केवल ताइवान-चीन तनाव को बढ़ा सकती है, बल्कि वैश्विक सुरक्षा के लिए भी नई चुनौतियां पेश कर रही है।
Baten UP Ki Desk
Published : 26 November, 2024, 4:55 pm
Author Info : Baten UP Ki