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नहीं रहे सीताराम येचुरी, कुछ ऐसा रहा एक छात्र नेता से भारतीय वामपंथ की धुरी बनने तक का सफर

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सीताराम येचुरी, भारतीय राजनीति के प्रमुख वामपंथी चेहरों में से एक, का 72 वर्ष की आयु में आज निधन हो गया। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, उन्हें दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था, जहां निमोनिया के इलाज के दौरान उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था। डॉक्टरों की मल्टीडिसिप्लिनरी टीम उनके इलाज में जुटी हुई थी, लेकिन 19 अगस्त से भर्ती येचुरी ने आखिरकार आज दोपहर 3.05 बजे अंतिम सांस ली।

लंबे समय से चल रहा था निमोनिया का इलाज-

माकपा (मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी) के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी पिछले कुछ समय से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे। हाल ही में उनकी मोतियाबिंद की सर्जरी भी हुई थी। निमोनिया के कारण उन्हें 19 अगस्त को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके निधन से भारतीय वामपंथ और राष्ट्रीय राजनीति को एक गहरा झटका लगा है।

राजनीतिक और सामाजिक जगत में शोक की लहर-

सीताराम येचुरी के निधन पर देशभर के प्रमुख नेताओं ने गहरा शोक व्यक्त किया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, "सीताराम येचुरी जी मेरे मित्र थे। उनका निधन भारतीय राजनीति के लिए एक बड़ी क्षति है। उनकी विद्वता और विचारशीलता को मैं हमेशा याद रखूंगा। उनके परिवार और समर्थकों के प्रति मेरी संवेदनाएं।"पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी येचुरी के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा, "वे एक अनुभवी नेता थे। उनका जाना राजनीति में एक बड़ी क्षति है। उनके परिवार और सहकर्मियों के प्रति मेरी संवेदनाएं।"

सीताराम येचुरी का प्रारंभिक जीवन-

12 अगस्त 1952 को मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में जन्मे सीताराम येचुरी का प्रारंभिक जीवन तमिलनाडु में बीता, हालांकि उनकी जड़ें आंध्र प्रदेश में थीं। उनके पिता सर्वेश्वर सोमयाजुला येचुरी आंध्र प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम में इंजीनियर थे, जबकि मां कल्पकम येचुरी सरकारी अधिकारी थीं। परिवार का बैकग्राउंड शैक्षिक और साधारण था, और उन्होंने हैदराबाद में अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली का रुख करते हुए उन्होंने प्रेसिडेंट्स एस्टेट स्कूल से दसवीं पास की और फिर सेंट स्टीफन कॉलेज से बीए (ऑनर्स) अर्थशास्त्र में डिग्री हासिल की। बाद में उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से एमए अर्थशास्त्र किया। जेएनयू में पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने छात्र राजनीति में कदम रखा और यहीं से उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई।

छात्र राजनीति से वामपंथी धुरी तक-

सीताराम येचुरी की राजनीतिक यात्रा 1974 में उस वक्त शुरू हुई, जब वे स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) में शामिल हुए। 1975 में इमरजेंसी के खिलाफ आंदोलन करते हुए वे जेल भी गए। जेएनयू में 1977-78 के दौरान वे तीन बार छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए। यह उनकी संगठनात्मक क्षमता का प्रमाण था कि उन्होंने जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में छात्र राजनीति में अपना दबदबा कायम किया। वामपंथी राजनीति में उनका कद लगातार बढ़ता गया। 1978 में उन्हें एसएफआई का अखिल भारतीय संयुक्त सचिव बनाया गया और बाद में वे एसएफआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। उनके नेतृत्व में वामपंथी छात्र संगठन ने नई ऊंचाइयों को छुआ।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) का चेहरा-

1975 में सीपीआई (एम) से जुड़े येचुरी 1984 में पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्य बने। 1992 में वे पोलित ब्यूरो के सदस्य बने। वामपंथ की विचारधारा को मजबूती से बढ़ाने और उसकी प्रासंगिकता को बरकरार रखने में उनका अहम योगदान रहा। 2005 में उन्हें पश्चिम बंगाल से राज्यसभा के लिए चुना गया, जहां उन्होंने लंबे समय तक वामपंथी विचारधारा को मजबूती से प्रस्तुत किया। 19 अप्रैल 2015 को वे सीपीआई (एम) के महासचिव बने और 2022 तक इस पद पर बने रहे।

गठबंधन राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका-

1996 के लोकसभा चुनावों के बाद भारतीय राजनीति में गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ। इस दौर में सीताराम येचुरी ने संयुक्‍त मोर्चा की सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी राजनीतिक कुशलता और सूझबूझ ने उन्हें सियासत के ‘बाजीगर’ का खिताब दिलाया। उस समय लेफ्ट के 50 से ज्यादा सांसदों के चुने जाने के बाद सीताराम येचुरी ने गठबंधन की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

तीन बार सीपीआई (एम) के महासचिव-

सीताराम येचुरी के नेतृत्व में पार्टी ने कई महत्वपूर्ण चुनावी मोर्चों पर काम किया। उनकी विश्लेषणात्मक सोच, रणनीतिक कौशल और विचारधारा के प्रति दृढ़ता ने उन्हें एक प्रभावशाली नेता बनाया। यही कारण था कि उन्हें लगातार तीन बार पार्टी का महासचिव चुना गया। उनका नेतृत्व वामपंथी राजनीति में एक मजबूत स्तंभ के रूप में देखा जाता था। सीताराम येचुरी की राजनीतिक यात्रा संघर्ष, धैर्य और साहस की मिसाल है। एक छात्र नेता से लेकर राष्ट्रीय राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाने तक का उनका सफर प्रेरणादायक रहा। उनके निधन से भारतीय राजनीति ने एक विचारशील और निडर नेता को खो दिया है।

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