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पानी अब ज़िंदगी नहीं, ज़हर भी बहा रहा है। दुनियाभर की नदियों में पारे की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी है – यह वही पारा है जो इंसानी दिमाग, किडनी और भ्रूण को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। एक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक अध्ययन में यह चिंताजनक खुलासा हुआ है।
1850 के मुकाबले दोगुना ज़हरीला हुआ नदी जल
अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थानों और अमेरिका के तुलाने विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने मोसार्ट-एचजी नामक एक विशेष कंप्यूटर मॉडल की मदद से नदियों में पारे की मात्रा का अध्ययन किया। शोध के अनुसार, औद्योगिक युग (1850) से पहले नदियों के जरिये हर साल लगभग 390 मीट्रिक टन पारा समुद्रों तक पहुंचता था। आज यह आंकड़ा बढ़कर 1,000 मीट्रिक टन तक जा पहुंचा है — यानी दोगुना से भी अधिक।
पक्षियों और वन्यजीवों के लिए अदृश्य मौत
नदी जल में बढ़ता पारा सबसे पहले जल में रहने वाले सूक्ष्म जीवों को प्रभावित करता है। ये जीव मछलियों में प्रवेश कर जाते हैं और जब पक्षी या जानवर इन मछलियों को खाते हैं, तो पारा सीधे उनके शरीर में पहुंचता है। इसका सबसे गंभीर असर उनके तंत्रिका तंत्र पर होता है, जिससे उनकी प्रजनन क्षमता और जीवनचक्र प्रभावित होता है।
मानव स्वास्थ्य के लिए 'धीमा ज़हर'
पारा एक ऐसा जहरीला धातु है, जो धीरे-धीरे शरीर को खोखला कर देता है। यह तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाता है, जिससे याददाश्त, सोचने की क्षमता, भाषा कौशल और मोटर स्किल्स पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। गर्भवती महिलाओं में यह भ्रूण के मस्तिष्क और अंग विकास को भी बाधित कर सकता है। साथ ही, हृदय और किडनी रोगों का खतरा भी बढ़ जाता है।
अमरीका सबसे बड़ा प्रदूषक, एशिया भी पीछे नहीं
रिपोर्ट के अनुसार, 1850 के बाद से अब तक पारे के वैश्विक उत्सर्जन में सबसे अधिक (41%) योगदान अमेरिका और दक्षिण अमेरिका का रहा है। इसके बाद दक्षिण-पूर्व एशिया 22% और दक्षिण एशिया 19% के साथ पीछे हैं।
अमेजन और यांग्त्जी नदी में स्थिति बेहद गंभीर
विशेष रूप से अमेजन नदी में सालाना 200 मीट्रिक टन से अधिक पारा बह रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि इसमें से 75% मानवीय गतिविधियों – जैसे जंगलों की कटाई और अवैध सोने की खनन – से आ रहा है।
वहीं चीन की यांग्त्जी नदी में औद्योगिक गतिविधियों के चलते पारे का स्तर दोगुना हो चुका है और यह नदी अब क्षेत्रीय पारे के प्रदूषण का 70% तक वहन कर रही है।
पारे से ज़हरीली होती नदियां
यह रिपोर्ट केवल वैज्ञानिक चेतावनी नहीं, बल्कि पर्यावरण और मानवता के लिए एक स्पष्ट खतरे की घंटी है। यदि जल्द ही वैश्विक स्तर पर सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो नदियों का यह ज़हर हमारी आने वाली पीढ़ियों के जीवन को गंभीर संकट में डाल सकता है।
Baten UP Ki Desk
Published : 17 June, 2025, 1:14 pm
Author Info : Baten UP Ki