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हर मिनट बिकती हैं 10 लाख प्लास्टिक बोतलें! क्या रीसाइक्लिंग के प्रयास हो रहे हैं विफल?

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प्लास्टिक संकट अब सिर्फ पर्यावरण का मुद्दा नहीं, बल्कि वैश्विक मानव अस्तित्व और स्वास्थ्य का भी एक गंभीर खतरा बन चुका है। कम्युनिकेशन्स अर्थ एंड एनवायरनमेंट जर्नल में प्रकाशित एक नई रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में प्लास्टिक का उत्पादन हर साल 8.4% की दर से बढ़ रहा है, जबकि रीसाइक्लिंग दर मात्र 9.5% तक सीमित है। यह खतरनाक असंतुलन न केवल धरती पर कचरे का पहाड़ खड़ा कर रहा है, बल्कि इंसानों और जीव-जंतुओं की सेहत पर भी भारी असर डाल रहा है।

2050 तक 80 करोड़ टन उत्पादन की आशंका

रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर 40 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन हुआ, जिसमें से केवल 3.8 करोड़ टन ही रीसाइकल किया गया। अनुमान है कि मौजूदा रफ्तार जारी रही तो 2050 तक यह आंकड़ा दोगुना होकर 80 करोड़ टन तक पहुंच सकता है।

पुनर्चक्रण व्यवस्था में भारी खामियां

2022 में 26.8 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा हुआ। इस कचरे में से सिर्फ 27.9% को रीसाइक्लिंग की प्रक्रिया के लिए छांटा गया, लेकिन उसमें से भी महज आधे हिस्से को ही दोबारा उपयोग के लायक बनाया जा सका। शेष में से 41% को जला दिया गया, और 8.4% लैंडफिल में दबा दिया गया, जिससे मिट्टी और जल स्रोतों में प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या और बढ़ गई।

माइक्रोप्लास्टिक बना मानव युग की पहचान

वर्तमान में माइक्रोप्लास्टिक कण धरती के हर कोने में पाए जा रहे हैं— समुद्रों से लेकर पर्वतों तक, यहां तक कि मानव रक्त और अंगों में भी इनकी उपस्थिति दर्ज की जा चुकी है। वैज्ञानिकों ने इसे “एंथ्रोपोसीन” (मानव युग) की नई भूवैज्ञानिक पहचान बताया है, जिसमें मानव की गतिविधियां अब पृथ्वी की रचना को प्रभावित कर रही हैं।

सिंगल यूज प्लास्टिक बना सबसे बड़ा दोषी

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हर मिनट 10 लाख प्लास्टिक बोतलें खरीदी जाती हैं और हर साल 5 लाख करोड़ प्लास्टिक बैग्स का उपयोग होता है। प्लास्टिक उत्पादन का लगभग 50% हिस्सा सिंगल यूज आइटम्स में जाता है, जो इस्तेमाल के तुरंत बाद फेंक दिए जाते हैं। यही वस्तुएं कचरे के ढेर और प्रदूषण का बड़ा कारण बन रही हैं।

वैश्विक असमानता भी है कारण

प्लास्टिक की खपत और उत्पादन में अमीर और विकासशील देशों के बीच भारी असमानता है। अमेरिका में प्रति व्यक्ति खपत 216 किलो सालाना है, जापान में 129 किलो, और यूरोप में 86.6 किलो। वहीं, भारत में यह आंकड़ा महज 6% वैश्विक खपत के बराबर है। चीन 20%, अमेरिका 18%, और यूरोपियन यूनियन 16% वैश्विक खपत के लिए जिम्मेदार हैं।

जैविक ईंधनों पर निर्भरता बनी प्लास्टिक संकट की जड़

यह रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि जब तक प्लास्टिक का उत्पादन तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों पर निर्भर रहेगा, तब तक रीसाइक्लिंग और पर्यावरण संरक्षण की बात अधूरी ही रहेगी। ऐसे में न केवल प्रभावी नीति निर्माण, बल्कि वैश्विक सहयोग, तकनीकी नवाचार और जनभागीदारी की भी आवश्यकता है। वरना वह दिन दूर नहीं जब प्लास्टिक का जहर हमारी अगली पीढ़ियों की सांसों तक पहुंच जाएगा।

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