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अगली महामारी साबित हो सकती है ये बीमारी, बच्चों पर मड़राएगा ज्यादा खतरा

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आँखें, भगवान का अनमोल उपहार हैं, जिनके माध्यम से हम इस सुंदर संसार को देख सकते हैं। अक्सर हम सुबह उठकर अपने झरोखे से बगीचे में हरे-भरे पेड़ों के साथ चहचहाती हुई चिड़ियों को निहारते हैं और नीले आसमानों की हल्की रोशनी को आंखो में भरते हैं। हालांकि इसके इतर दुनिया में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनकी सुबह धुंधली आंखों से शुरू होती है उनके सपने भले ही चमकदार हैं लेकिन उनकी दुनिया ब्लर है। नींद खुलते ही इनको अपना चश्मा ढूंढना पड़ता है जिसकी वजह एक ऐसी बीमारी है जो हमारी आंखों की देखने की क्षमता को प्रभावित करती है जिसे मायोपिया कहा जाता है। 

हमारी आँखें हमें दुनिया को देखने में मदद करती हैं, और मायोपिया की समस्या से निपटना महत्वपूर्ण है। इसलिए बेहतर है कि मायोपिया को ठीक तरह से समझें। अगर इसकी शिकायत है तो तुरंत इलाज करवाएं। अगर अभी तक इस बीमारी से बचे हुए हैं तो अपनी आंखों की देखभाल करें।

आँखों की संरचना-

आँखें जटिल संरचना वाली होती हैं, जिसमें कई महत्वपूर्ण भाग होते हैं।

कॉर्निया:

यह आँख का सबसे बाहरी पारदर्शी हिस्सा है, जो प्रकाश को अंदर प्रवेश करने देता है।

लेंस: 

यह प्रकाश को फोकस करने में मदद करता है, ताकि हम स्पष्ट रूप से देख सकें।

रेटिना:

यह वह सतह है जहाँ प्रकाश की किरणें केंद्रित होती हैं और दृष्टि का निर्माण होता है।

आईरिस:

यह आँख के रंगीन हिस्से को बनाता है और पुतली के आकार को नियंत्रित करता है।

ऑप्टिक नर्व:

यह दृष्टि संबंधी सूचना को मस्तिष्क तक पहुँचाता है।

आखिर किसे कहते हैं मायोपिया?

मायोपिया यानी निकट दृष्टि दोष यह एक ऐसी आई कंडीशन है, जिसमें रिफरेक्टिव एरर के कारण व्यक्ति को दूर की चीजें ब्लर दिखने लगती हैं। जबकि निकट दृष्टि दोष से जूझ रहे लोग पास की चीजें बिना चश्मे के भी स्पष्ट देख और पढ़ सकते हैं। यह समस्या उस समय होती है जब आँख के रेटिना की लंबाई, यानी फोकस करने की क्षमता, आँख के लंबे हिस्से के माप से अधिक होती है। इसके कारण, दूर की चीजें धुंधली दिखाई देती हैं।

क्या कहती है स्टडी ?

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के अनुसार साल 2050 तक इस दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी ऐसे ही ब्लर मोड में चली जाएगी। इसका मतलब हुआ कि दुनिया के 50 फीसदी  से ज्यादा लोग मायोपिया से पीड़ित होंगे।

बच्चों में ज्यादा होता है मायोपिया का खतरा

ऐसे तो मायोपिया किसी को भी हो सकता है लेकिन बच्चों और टीनएजर्स को ज्यादा कतरा रहता है क्योंकि उनकी आंखें डेवलपिंग स्टेज में होती हैं। नेशनल आई इंस्टीट्यूट के मुताबिक, मायोपिया अक्सर 6 से 14 साल की उम्र के बीच शुरू होता है और 20 साल की उम्र तक इसके लक्षण बदतर हो सकते हैं। असल में इस उम्र में हमारी आंखें बढ़ रही होती हैं। इसलिए आंखों का आकार भी बदल सकता है, जो रिफरेक्टिव एरर का कारण बनता है।

क्या हैं मायोपिया के लक्षण 

मायोपिया के लक्षण में आम तौर पर दूर की चीज़ें धुंधली दिखाई देती हैं,आंखों में चुभती होई मांसपेशियों की कमजोरी हो सकती है और लगातार आंखें पीछे की ओर मोड़ने की आदत हो सकती है।

  • दूर की वस्तुओं को देखने पर धुंधली दृष्टि
  • लगातार सिर दर्द बने रहना
  • आंखों में तनाव या आंखों में थकान होना

यदि मायोपिया के लक्षण नजर आते हैं , तो डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें और सलाह लें।

क्या है मायोपिया के कारण?

मायोपिया की संख्या लगातार बढ़ रही है, इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। लंबे समय तक कंप्यूटर या मोबाइल फोन का इस्तेमाल, कम आउटडोर एक्टिविटी, और जेनेटिक अंश मायोपिया के बढ़ने में भूमिका निभाते हैं। उम्र के साथ जैसे हमारे पूरे शरीर का क्षरण होता है, वैसे ही आंखों की देखने की शक्ति भी कमजोर होती है। लेकिन अगर 5 साल, 8 साल और 10 साल के बच्चों की नजर कमजोर होने लगे तो यह बिलकुल स्वाभाविक नहीं है। इसका कारण है डिजिटल स्क्रीन टाइम का बढ़ना और बाहर घूमने, खेलने, कूदने जैसी एक्टिविटीज का कम होना।

किस प्रकार से है बच्चों में मायोपिया का खतरा-

नेशनल आई इंस्टीट्यूट के मुताबिक, जो बच्चे घर के बाहर बहुत कम समय बिताते हैं, उनमें मायोपिया विकसित होने की आशंका अधिक होती है। इसी प्रकार साल 2017 में दिल्ली के बच्चों पर हुई एक स्टडी के मुताबिक, जिन स्कूली बच्चों का स्क्रीन टाइम हर हफ्ते 7 घंटे या उससे अधिक है, उनमें मायोपिया विकसित होने का खतरा तीन गुना ज्यादा हो सकता है।

मायोपिया से पीड़ित लोगों को होती है ये दिक्कत-

मायोपिया से पीड़ित लोगों को टीवी देखने, रास्ते में साइन बोर्ड देखने या ड्राइविंग करने में दिक्कत आती है। अगर किसी बच्चे या किशोर को मायोपिया है तो उसे स्कूल में ब्लैक या ग्रीन बोर्ड देखने में दिक्कत आती है।

मायोपिया को कम करने के उपाय-

  • लंबे समय तक कंप्यूटर या मोबाइल फोन का इस्तेमाल कम करें
  • आउटडोर एक्टिविटी करें
  • नियमित रूप से आंखों की व्यायाम करें
  • कंप्यूटर पर काम करते समय या कोई किताब पढ़ते समय 12 इंच की दूरी रखने की कोशिश करें।
  • आंखों की नियमित रूप से जांच करवाएं।
  • अगर पहले से मायोपिया की शिकायत है तो नेत्र चिकित्सक द्वारा बताए गए करेक्टिव लेंस पहनें।
  • धूप में पराबैंगनी (UV) किरणों से सुरक्षा के लिए धूप का चश्मा पहनें।

मायोपिया हो सकती है अगली एपिडेमिक 

मायोपिया बेहद आम बीमारी है। दुनियाभर के करीब 30 फीसदी लोग मायोपिया से पीड़ित हैं। इंटरनेशनल मायोपिया इंस्टीट्यूट के मुताबिक करीब 40 फीसदी अमेरिकन मायोपिया से जूझ रहे हैं। इसके मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इसीलिए मायोपिया को अगला एपिडेमिक माना जा रहा है।

मायोपिया को पता लगाने के लिए कराए जाते हैं ये टेस्ट

  • मेडिकल हिस्ट्री
  • विजुअल एक्युटी
  • रिफरैक्शन टेस्ट
  • प्युपिल एग्जाम
  • आई मूवमेंट टेस्ट
  • आई प्रेशर टेस्ट

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