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अब लोकसभा और विधानसभा चुनाव होगें एक साथ? अलग-अलग चुनावों में क्या आती हैं समस्याएं...

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संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया। केंद्रीय कैबिनेट ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक को मंजूरी देकर देश के लोकतांत्रिक ढांचे में एक बड़ी सुधारवादी पहल की दिशा में कदम बढ़ाया है। माना जा रहा है कि इस विधेयक को जल्द ही संसद के पटल पर प्रस्तुत किया जाएगा, जिससे भारत के चुनावी परिदृश्य में एक नई शुरुआत हो सकती है।

क्या है 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' का विचार?

'एक राष्ट्र, एक चुनाव' का मतलब है कि देशभर में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। फिलहाल, लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। यह विचार पहली बार 2019 में प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर रखा था। उन्होंने इसे राष्ट्रीय एकता और विकास को गति देने वाला कदम बताया था। हाल ही में, 2024 के स्वतंत्रता दिवस पर उन्होंने इसे और मजबूती से जनता के सामने प्रस्तुत किया।

अलग-अलग चुनावों से क्यों है समस्या?

भारत में वर्तमान में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं।

  • विधानसभाओं के भिन्न कार्यकाल: विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल अलग-अलग समय पर समाप्त होता है, जिससे चुनाव लगातार चलते रहते हैं।
  • प्रशासनिक बोझ: बार-बार चुनाव कराने से प्रशासनिक और आर्थिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है।
  • चुनावी माहौल का प्रभाव: लगातार चुनावी माहौल से नीतिगत निर्णयों में देरी होती है और विकास कार्य बाधित होते हैं।

किन राज्यों में अभी होते हैं एक साथ चुनाव?

कुछ राज्यों में विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होते हैं, जैसे:

  • अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, और सिक्किम
    इसके विपरीत, अन्य राज्यों जैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं।

कोविंद समिति की अहम सिफारिशें-

रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इसकी मुख्य सिफारिशें इस प्रकार हैं:

  1. दो चरणों में कार्यान्वयन:
    • पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएंगे।
    • दूसरे चरण में स्थानीय निकायों (पंचायत और नगर पालिका) के चुनाव, आम चुनाव के 100 दिनों के भीतर कराए जाएंगे।
  2. समान मतदाता सूची: सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची का उपयोग किया जाएगा।
  3. व्यापक परामर्श प्रक्रिया: राजनीतिक दलों, विशेषज्ञों, और जनता से सुझाव लिए गए हैं।
  4. इतिहास और सुझाव:
  • 1951 से 1967 तक भारत में एक साथ चुनाव हुए।
  • 1999 की विधि आयोग की रिपोर्ट और 2015 की संसदीय समिति ने भी इसे लागू करने का सुझाव दिया था।

एक साथ चुनाव से होने वाले संभावित लाभ-

  1. समय और संसाधनों की बचत: बार-बार चुनाव कराने की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे आर्थिक और प्रशासनिक संसाधन बचेंगे।
  2. स्थिरता में सुधार: एक साथ चुनाव से नीतिगत स्थिरता आएगी, क्योंकि सरकारें अपने पूरे कार्यकाल पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।
  3. जनता की भागीदारी बढ़ेगी: मतदाता एक साथ चुनाव में ज्यादा उत्साह से भाग ले सकते हैं।

चुनौतियां और समाधान-

हालांकि 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' का विचार आकर्षक है, लेकिन इसे लागू करना आसान नहीं है।

  • संवैधानिक संशोधन: इसके लिए संविधान के अनुच्छेदों में संशोधन आवश्यक होगा।
  • सहमति की आवश्यकता: सभी राजनीतिक दलों और राज्यों की सहमति प्राप्त करना जरूरी है।
  • समयबद्धता: इसे लागू करने के लिए चुनाव आयोग, प्रशासनिक इकाइयों, और न्यायपालिका के बीच समन्वय की जरूरत होगी।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ और जनता?

विशेषज्ञों का मानना है कि 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' देश की चुनावी प्रणाली में बड़े सुधार का संकेत है। यह न केवल संसाधनों की बचत करेगा, बल्कि नीति निर्माण और विकास कार्यों को भी गति देगा। जनता और विभिन्न हितधारकों ने भी इस विचार का व्यापक समर्थन किया है। onoe.gov.in पर उपलब्ध है।

सरकार की मंशा क्या है?

'एक राष्ट्र, एक चुनाव' भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली में बदलाव का एक बड़ा कदम साबित हो सकता है। हालांकि, इसे लागू करने में चुनौतियां हैं, लेकिन सरकार की मंशा और व्यापक समर्थन इसे संभव बना सकता है। अब सभी की नजरें संसद के शीतकालीन सत्र पर टिकी हैं, जहां यह विधेयक पेश किया जाएगा।

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