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ब्यूरोक्रेसी से लेकर देश के पीएम तक,5 दशक का अविस्मरणीय सफर,और आया 26 दिसंबर फिर देश का महान अर्थशास्त्री...

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आर्थिक सुधारों के जनक और देश की बागडोर दस वर्षों तक संभालने वाले पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 26 दिसंबर गुरुवार को 92 वर्ष की उम्र में दिल्ली एम्स में अंतिम सांस ली।। उनका जीवन सादगी, विद्वता और अदम्य साहस का परिचायक था। भारतीय राजनीति की इस शांत और दृढ़ शख्सियत ने कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी समाधान खोजने की क्षमता से सभी को प्रेरित किया।

आर्थिक क्रांति की शुरुआत

1991 में जब भारत गहरे आर्थिक संकट से जूझ रहा था, उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को वैश्विक निवेशकों के लिए खोलकर एक नई आर्थिक क्रांति की शुरुआत की। उनकी खामोशी में गहरी सोच और उनके हर शब्द में मजबूती थी। वे ऐसे नेता थे जिन्होंने अपनी नीतियों और कार्यों से भारत का भविष्य तय किया।

आर्थिक सुधारों की रखी नींव-

डॉ. मनमोहन सिंह ने न केवल आर्थिक सुधारों की नींव रखी, बल्कि असैन्य परमाणु समझौते जैसे साहसिक निर्णय लेकर अपनी सरकार तक दांव पर लगा दी। उनकी जीवन यात्रा नौकरशाही से लेकर प्रधानमंत्री तक, एक प्रेरणादायक दास्तां है। आइए, इस महान नेता के पांच दशकों के अविस्मरणीय करियर पर एक नजर डालें।

एक महान यात्रा का प्रारंभ

डॉ. सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब में हुआ। शिक्षा के प्रति उनकी रुचि और गहरी समझ ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री बनाया।

  • 1954: पंजाब विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि।
  • 1957: कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से इकॉनमिक्स ट्रिपोस (तीन वर्षीय डिग्री प्रोग्राम)।
  • 1962: ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डी.फिल।

भारत की सेवा में प्रारंभिक कार्यकाल

डॉ. सिंह ने अपने करियर की शुरुआत भारत सरकार में वाणिज्य मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार के रूप में की। इसके बाद उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर सेवा दी:

  • 1971: भारत सरकार में आर्थिक सलाहकार।
  • 1972: वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार।
  • 1980-82: योजना आयोग के सदस्य।
  • 1982-85: भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर।
  • 1985-87: योजना आयोग के उपाध्यक्ष।
  • 1987-90: जिनेवा में दक्षिण आयोग के महासचिव।

1991: आर्थिक सुधारों का युग

1991 में, जब भारत अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना कर रहा था, डॉ. मनमोहन सिंह को पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री बनाया गया।

  • उन्होंने साहसी आर्थिक सुधार किए, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था का उदारीकरण हुआ।
  • उनके नेतृत्व में भारत ने विदेशी निवेश के द्वार खोले और देश को आर्थिक विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
  • उनकी नीतियों ने भारतीय उद्योग को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार किया।

राजनीति में एक लंबा सफर

डॉ. सिंह का राजनीतिक करियर पांच दशकों से अधिक समय तक चला।

  • 1991: असम से राज्यसभा सदस्य बने।
  • 1991-96: वित्त मंत्री।
  • 1998-2004: राज्यसभा में विपक्ष के नेता।
  • 2004-2014: भारत के प्रधानमंत्री।

प्रधानमंत्री के रूप में एक दशक का कार्यकाल

प्रधानमंत्री के रूप में डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत को आर्थिक और कूटनीतिक रूप से मजबूत किया।

  • उन्होंने भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता किया, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा और वैश्विक संबंधों के लिए मील का पत्थर साबित हुआ।
  • उनके नेतृत्व में भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) से मंजूरी मिली।
  • भारत को एक जिम्मेदार परमाणु संपन्न देश के रूप में स्थापित किया।

विदेश नीति में अमूल्य योगदान

हालांकि डॉ. सिंह की विशेषज्ञता वित्त और अर्थशास्त्र थी, लेकिन विदेश नीति में भी उनका योगदान ऐतिहासिक था।

  • आर्थिक उदारीकरण (1991): भारत की विदेश नीति को नया आकार दिया।
  • अमेरिका के साथ परमाणु समझौता (2008): राजनीतिक विरोध के बावजूद, डॉ. सिंह ने इसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया।
  • विश्वस्तरीय सहयोग: उनके कार्यकाल में भारत ने फ्रांस, रूस, यूके, जापान, कनाडा सहित कई देशों के साथ असैन्य परमाणु समझौते किए।

एस. जयशंकर की श्रद्धांजलि

विदेश मंत्री एस. जयशंकर, जो डॉ. सिंह के कार्यकाल के दौरान अमेरिका मामलों के संयुक्त सचिव थे, ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा,
"वे न केवल आर्थिक सुधारों के जनक थे, बल्कि भारत की विदेश नीति में रणनीतिक सुधारों के लिए भी समान रूप से जिम्मेदार थे। उनके साथ काम करना मेरे लिए सौभाग्य की बात थी।"

अंतिम विदाई

डॉ. सिंह को 26 दिसंबर की रात गंभीर स्थिति में एम्स लाया गया, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका। रात 9:51 बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। उनका पार्थिव शरीर मोतीलाल नेहरू मार्ग स्थित उनके आवास पर ले जाया गया। उनके परिवार में पत्नी गुरशरण कौर और तीन बेटियां हैं।

एक युग का अंत

डॉ. मनमोहन सिंह की खामोशी में जो ताकत थी, वह अब सदा के लिए मौन हो गई। उनका योगदान और उनकी नीतियां भारतीय राजनीति, अर्थव्यवस्था और विदेश नीति में हमेशा प्रेरणा बनी रहेंगी। "वे शब्दों से नहीं, कार्यों से बोले। उनका जीवन सादगी और सेवा का प्रतीक था।"

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