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कांवड़ यात्रा भारत में भगवान शिव के भक्तों का एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है, जिसमें भक्त गंगा जल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए लंबी यात्रा करते हैं। उत्तर प्रदेश में यह यात्रा बड़े पैमाने पर आयोजित होती है, और राज्य सरकार ने यात्रियों को सुगम व सुरक्षित मार्ग प्रदान करने की जिम्मेदारी उठाई है। इसी उद्देश्य से यात्रा मार्ग को चौड़ा करने के लिए कई पेड़ों की कटाई का निर्णय लिया गया है, लेकिन इस फैसले ने एक बड़ी पर्यावरणीय बहस को जन्म दे दिया है।
पेड़ों की कटाई का विवाद और NGT का हस्तक्षेप-
गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर के तीन वन क्षेत्रों में 17,600 से अधिक पेड़ काटे गए हैं, जिससे धार्मिक आस्था और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन का मुद्दा उठ खड़ा हुआ है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए पर्यावरण पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों की जांच के लिए एक फैक्ट-फाइंडिंग पैनल गठित किया। पैनल ने अपनी रिपोर्ट में चिंता जताई है कि इतनी बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई से जैव-विविधता, वायु की गुणवत्ता और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इस मामले में NGT ने यात्रा मार्ग की सैटेलाइट इमेजरी और ड्रोन सर्वेक्षण करने का निर्देश भी दिया है, ताकि कटाई के वास्तविक प्रभाव का उचित आकलन किया जा सके।
पर्यावरणीय असर: पेड़ों की अहमियत-
पेड़ हमारे वातावरण के संतुलन के लिए आवश्यक हैं। वे न केवल कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, बल्कि वायुमंडल में ऑक्सीजन का संचार करते हैं और जैव-विविधता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इतनी बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई से क्षेत्र में हवा की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है और गर्मी व सूखे जैसी जलवायु समस्याओं को बढ़ावा मिल सकता है। पेड़ों का हटना वन्यजीवों के आवास पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, जो पर्यावरणीय दृष्टिकोण से चिंता का विषय है।
आस्था और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन कैसे?
कांवड़ यात्रा के लिए सुरक्षित मार्ग प्रदान करना जरूरी है, लेकिन इसके साथ ही पर्यावरण को भी बचाना महत्वपूर्ण है। एक संभावित समाधान पेड़ों को काटने के बजाय उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ट्रांसप्लांट करना हो सकता है, जिससे पेड़ों को संरक्षित रखते हुए रास्ता भी बनाया जा सके। इसके अतिरिक्त, जितने पेड़ काटे गए हैं, उससे अधिक संख्या में नए पेड़ लगाने की नीति भी अपनाई जा सकती है। यह न केवल पर्यावरणीय प्रभाव को कम करेगा, बल्कि स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने में भी मददगार साबित हो सकता है।
सरकार और जनता की भूमिका-
इस मुद्दे पर सरकार, जनता और धार्मिक संगठनों को मिलकर पहल करनी होगी। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि आस्था का सम्मान करते हुए पर्यावरण की सुरक्षा पर भी ध्यान दिया जाए। धार्मिक संगठनों और श्रद्धालुओं से अपील की जा सकती है कि वे इस यात्रा के दौरान पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाएं और जितना संभव हो, पर्यावरण को नुकसान से बचाएं।
आस्था और जिम्मेदारी का सामंजस्य-
भारत जैसे देश में जहां आस्था और धार्मिक आयोजनों का गहरा महत्व है, वहां पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाना जरूरी है। जिम्मेदार समाज का यही दायित्व है कि वह आस्था का सम्मान करते हुए पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्ध रहे। ऐसे मुद्दों पर जन संवाद बढ़ाकर हम समाधान की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं, जिसमें दोनों पक्षों की भावना का आदर हो।
Baten UP Ki Desk
Published : 11 November, 2024, 6:53 pm
Author Info : Baten UP Ki