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SCO की मीटिंग में चीनी विदेश मंत्री से जयशंकर ने की मुलाकात, भारत के लिए क्यों जरूरी है एससीओ?

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शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की 24वीं बैठक का आयोजन तीन से चार जुलाई तक है, जो कज़ाख़िस्तान की राजधानी अस्ताना में चल रही है। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर भी अस्ताना पहुंचे हैं जहां उन्होंने गुरुवार को चीनी समकक्ष वांग यी से मुलाकात की। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच विभिन्न मुद्दों पर बातचीत हुई। इससे पहले उन्होंने बुधवार को रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ मुलाकात की थी। 

इन मुद्दों पर हुई बात-चीत-

जयशंकर ने वांग यी के साथ हुई मुलाकात के बारे में बताया है। उन्होंने कहा कि अस्ताना में आज सुबह चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात हुई। इस दौरान सीमा क्षेत्रों में बाकी मुद्दों के शीघ्र समाधान पर चर्चा की। इस दिशा में कूटनीतिक और सेना के जरिए प्रयासों को बढ़ाया जाएगा। एससीओ से इतर जयशंकर की वांग यी से मुलाकात में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) का मुद्दा भी उठा।  इस मुलाकात के दौरान जयशंकर ने सीमावर्ती इलाकों में  में विवादित मुद्दों के जल्द समाधान की जरूरत पर जोर दिया। दोनों नेताओं के बीच सीमावर्ती इलाकों में विवादित मुद्दों के जल्द से जल्द समाधान के लिए राजनयिक और सैन्य माध्यमों से किए जा रहे प्रयासों को दोगुना करने पर बातचीत हुई। 

पीएम मोदी नहीं हो पाए शामिल-

एससीओ में भारत, चीन, पाकिस्तान और रूस समेत नौ देश हैं। विदेश मंत्री जयशंकर इस समिट में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। पीएम नरेंद्र मोदी संसद सत्र की व्यस्तता की वजह से इस समिट में शामिल नहीं हो सके।

कुछ दिनों बाद होगा पीएम मोदी का  रूस दौरा

पीएम मोदी अगले हफ्ते रूस के दौरे पर जाने वाले हैं। मोदी की रूस यात्रा को लेकर कोई आधिकारिक एलान नहीं किया गया है, लेकिन विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि पीएम आठ-नौ जुलाई को रूस और ऑस्ट्रिया जाने की तैयारी में हैं।

क्यों पड़ी SCO को बनाने की जरूरत ?

1991 में सोवियत यूनियन कई हिस्सों में टूट गया। इसके बाद रूस के पड़ोसी देशों के बीच बाउंड्री तय नहीं होने की वजह से सीमा विवाद शुरू हो गया। ये विवाद जंग का रूप न ले, इसके लिए रूस को एक संगठन बनाने की जरूरत महसूस हुई। रूस को यह भी डर था कि चीन अपनी सीमा से लगे सोवियत यूनियन के सदस्य रहे छोटे-छोटे देशों की जमीनों पर कब्जा न कर ले। ऐसे में रूस ने 1996 में चीन और पूर्व सोवियत देशों के साथ मिलकर एक संगठन बनाया। इसका ऐलान चीन के शंघाई शहर में हुआ, इसलिए संगठन का नाम- शंघाई फाइव रखा गया। शुरुआत में इस संगठन के 5 सदस्य देशों में रूस, चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान शामिल थे। जब इन देशों के बीच सीमा विवाद सुलझ गए तो इसे एक अंतरराष्ट्रीय संगठन का रूप दिया गया। 2001 में इन पांच देशों के साथ एक और देश उज्बेकिस्तान ने जुड़ने का ऐलान किया, जिसके बाद इसे शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन यानी SCO नाम दिया गया।

SCO का क्या है काम?

SCO देशों ने जब सीमा विवाद को सुलझा लिया तो इसका उद्देश्य बदल गए। अब इसका मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों को तीन अलगाववाद, आतंकवाद और धार्मिक कट्टरपंथ से बचाना था। रूस को लगता था कि उसके आसपास के देशों में कट्टरपंथी सोच न बढ़े। अफगानिस्तान, सऊदी अरब और ईरान के करीब होने की वजह से ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान में आतंकी संगठन पनपने भी लगे थे, जैसे- IMU यानी इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान और किर्गिस्तान में HUT। ऐसे में SCO के जरिए रूस और चीन ने इन तीन तरह के शैतानों के खिलाफ लड़ाई जारी रखी। इसके अलावा सदस्य देशों के बीच आपसी विश्वास और संबंधों को मजबूत करना भी इस संगठन का मुख्य काम है। सदस्य देशों के बीच ये संगठन राजनीति, व्यापार, इकोनॉमी, साइंस, टेक्नोलॉजी, एनर्जी, पर्यावरण संरक्षण जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का काम कर रहा है।

भारत के लिए क्यों जरूरी है SCO?

SCO बनने के बाद भारत को भी इसमें शामिल होने का न्योता दिया गया था। हालांकि, उस समय भारत ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया था। इस बीच चीन ने पाकिस्तान को इस संगठन का सदस्य बनाने की मुहिम शुरू कर दी। इससे रूस को संगठन में चीन के बढ़ते दबदबे का डर लगने लगा। तब जाकर रूस ने भारत को भी इस संगठन में शामिल होने की सलाह दी। इसके बाद 2017 में भारत इस संगठन का स्थायी सदस्य बना। 

SCO से भारत को क्या मिला?

साल 2022 में चीन की अगुवाई में होने वाले BRICS सम्मेलन में PM मोदी ने हिस्सा नहीं लिया था। जबकि कुछ दिनों बाद वह अमेरिकी अगुआई वाले QUAD देशों की बैठक में हिस्सा लेने टोक्यो चले गए थे। लिहाजा चीन नहीं चाहता था कि SCO सम्मेलन में मोदी की गैर मौजूदगी से इस संगठन के आपसी मनमुटाव का संदेश दुनिया में जाए। BRICS ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका का एक संगठन है। 2017 में भी भारत ने चीन को कह दिया था कि अगर डोकलाम में चीनी सेनाएं अपनी पहले की स्थिति में नहीं लौटेंगी तो प्रधानमंत्री मोदी BRICS समझौते के लिए चीन के शियामेन नहीं जाएंगे। चीन ने भारत की बात मानी और मोदी ने BRICS समझौते के लिए शियामेन की फ्लाइट पकड़ ली।

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