सितंबर 2024 में, इज़राइल और लेबनान के बीच 13 महीने की उग्र हिंसा और बढ़ते तनाव के बाद एक ऐतिहासिक युद्धविराम समझौता हुआ, जिसने वैश्विक राजनीति में हलचल मचा दी है। संयुक्त राज्य अमेरिका और फ्रांस की कूटनीतिक कोशिशों से यह समझौता न केवल सीमा पर शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह क्षेत्रीय स्थिरता, अंतरराष्ट्रीय संबंधों और कूटनीति के जटिल समीकरणों को भी परिभाषित करता है। हिज़्बुल्लाह के साथ चल रही शत्रुता के अंत की ओर बढ़ते हुए, यह समझौता युद्ध और शांति के बीच एक संवेदनशील संतुलन की मिसाल बन सकता है।
2006 से 2024 तक: तनाव की कहानी
इज़राइल और हिज़्बुल्लाह के बीच संघर्ष दशकों से चला आ रहा है। 2006 का युद्ध, जिसे "33 दिनों का युद्ध" भी कहा जाता है, इस संघर्ष का सबसे घातक अध्याय था। हिज़्बुल्लाह के हमले में इज़राइली सैनिकों की हत्या और अपहरण ने इस युद्ध को जन्म दिया, जिसमें 1,000 से अधिक लेबनानी नागरिकों और 170 इज़राइली नागरिकों की जान गई। उस समय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1701 ने युद्ध रोकने में अहम भूमिका निभाई। लेकिन हिज़्बुल्लाह का निरस्त्रीकरण, जो उस प्रस्ताव का केंद्रीय बिंदु था, कभी पूरी तरह लागू नहीं हो सका। अब, 2024 के समझौते में इन्हीं प्रावधानों को दोहराते हुए इसे और सख्त बनाने का प्रयास किया गया है।
2024 युद्धविराम: क्या है नया?
यह समझौता न केवल 1701 के प्रावधानों को दोहराता है, बल्कि कई नई शर्तें भी जोड़ता है।
-
सीमा पर बदलाव:
- हिज़्बुल्लाह के लड़ाकों को इज़राइल-लेबनान सीमा से 40 किलोमीटर पीछे हटना होगा।
- दक्षिणी लेबनान में तैनात इज़राइली सेना को भी अपने स्थानों से हटना पड़ेगा।
-
अंतरराष्ट्रीय निगरानी:
- संयुक्त राष्ट्र शांति सेना (UNIFIL) के अलावा, अमेरिका और फ्रांस भी स्थिति की निगरानी करेंगे।
-
सख्त शर्तें:
- हिज़्बुल्लाह द्वारा युद्धविराम का उल्लंघन करने पर इज़राइल को सैन्य कार्रवाई पुनः शुरू करने का अधिकार दिया गया है।
इज़राइल की सहमति के पीछे क्या है?
प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के इस निर्णय को तीन प्रमुख कारकों से जोड़ा जा सकता है:
-
ईरान पर ध्यान केंद्रित करना:
इज़राइल के लिए हिज़्बुल्लाह केवल एक दुश्मन नहीं, बल्कि ईरान का प्रॉक्सी है। लेबनान में तनाव कम कर, इज़राइल अब सीरिया और इराक में ईरानी प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करना चाहता है।
-
सैन्य संसाधनों की पुनः पूर्ति:
लंबे संघर्ष के बाद, इज़राइल को अपने सैन्य बलों को पुनर्गठित करने और तैयार करने की जरूरत है।
- हमास पर ध्यान:
लेबनान में स्थिरता स्थापित कर, इज़राइल गाजा में हमास पर अपनी ऊर्जा केंद्रित करना चाहता है।
लेबनान के लिए नई चुनौती
लेबनानी सेना और UNIFIL को अब लिटानी नदी के दक्षिण में कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी दी गई है। यह हिज़्बुल्लाह की गतिविधियों को सीमित करने के लिए एक बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि यह समूह न केवल एक सैन्य ताकत है, बल्कि लेबनान में एक राजनीतिक शक्ति भी है।
मध्य पूर्व के लिए व्यापक निहितार्थ
भारत की भूमिका और दृष्टिकोण
भारत ने युद्धविराम का स्वागत किया है और इसे क्षेत्र में शांति स्थापित करने की दिशा में सकारात्मक कदम बताया है। भारत ने हमेशा कूटनीति और संवाद को संघर्ष समाधान के महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में देखा है। गाजा में भी युद्धविराम की मांग करते हुए भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून के पालन पर जोर दिया है।
क्या यह शांति टिकाऊ है?
हालाँकि यह युद्धविराम एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन यह क्षेत्र में स्थायी शांति की गारंटी नहीं देता। हिज़्बुल्लाह का राजनीतिक प्रभाव, ईरान की भूमिका और लेबनान की कमजोर आंतरिक स्थिति इस समझौते की सफलता को प्रभावित कर सकते हैं।
शांति लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम-
2024 का यह युद्धविराम केवल एक समझौता नहीं, बल्कि मध्य पूर्व की जटिल राजनीति और क्षेत्रीय शक्ति संतुलन का प्रतिबिंब है। इज़राइल, लेबनान और हिज़्बुल्लाह के बीच यह अस्थायी शांति एक नई शुरुआत का संकेत देती है, लेकिन दीर्घकालिक स्थिरता के लिए अधिक अंतरराष्ट्रीय सहयोग और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होगी। भारत और अन्य अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की भागीदारी इस क्षेत्र में शांति लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अब यह देखना होगा कि क्या यह युद्धविराम लंबे समय तक चल सकता है या केवल एक नई लड़ाई का अंतराल है।