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सिंधु जल संधि पर भारत का प्रस्ताव...क्या 64 साल पुरानी संधि को नया स्वरूप मिलेगा?

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भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से विवाद की जड़ रही सिंधु जल संधि पर हालिया घटनाक्रम में भारत को बड़ी कूटनीतिक जीत मिली है। विश्व बैंक की तरफ से नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञों ने इस संधि को लेकर भारत के पक्ष में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। यह फैसला सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के पानी के बंटवारे पर लंबे समय से चली आ रही खींचतान में एक अहम मोड़ साबित हो सकता है।

सिंधु जल संधि क्या है?

सिंधु जल संधि 19 सितंबर 1960 को कराची में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई थी। यह संधि सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के जल उपयोग को लेकर एक ऐतिहासिक समझौता है। इस पर भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे।

भारत क्यों चाहता है संधि में बदलाव?

2023 में भारत ने संधि में संशोधन की मांग को लेकर पाकिस्तान को नोटिस भेजा, जिसमें जल प्रबंधन और विवाद निपटान के प्रावधानों की समीक्षा की बात कही गई। भारत का कहना है कि 64 साल पुरानी इस संधि को आज के परिप्रेक्ष्य में सुधार की जरूरत है।

पाकिस्तान का विरोध और भारत का जवाब

भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर में झेलम और चेनाब नदियों पर जल-विद्युत परियोजनाओं की योजना पाकिस्तान के विरोध का केंद्र रही है। हालांकि, भारत ने साफ किया कि ये परियोजनाएं सिंधु जल संधि के नियमों का उल्लंघन नहीं करतीं।

तटस्थ विशेषज्ञों का फैसला: भारत के पक्ष में

पाकिस्तान ने 2015 में तटस्थ विशेषज्ञों की मांग की थी, लेकिन बाद में खुद ही इसे वापस लेकर मामला हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण में ले जाने की कोशिश की। इसके बावजूद भारत ने तटस्थ विशेषज्ञों के माध्यम से समीक्षा प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। विशेषज्ञों ने पाकिस्तान की आपत्तियों को खारिज करते हुए भारत के पक्ष में निर्णय दिया।

क्या है विवाद निपटान का तंत्र?

संधि के अनुच्छेद IX के तहत विवाद निपटान की प्रक्रिया स्पष्ट है। इसे तीन चरणों में हल किया जा सकता है:

  1. स्थायी सिंधु आयोग में बातचीत।
  2. तटस्थ विशेषज्ञों की समीक्षा।
  3. आखिर में न्यायाधिकरण।

पाकिस्तान का सीधा न्यायाधिकरण जाने का कदम इस प्रक्रिया का उल्लंघन माना गया।

क्यों अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण में नहीं ले जाया जा सकता यह विवाद?

भारत का स्पष्ट रुख है कि पाकिस्तान द्वारा इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ले जाने का प्रस्ताव सिंधु जल संधि के अनुच्छेद IX के तहत स्थापित विवाद निपटान तंत्र का उल्लंघन है। इस ऐतिहासिक संधि ने विवाद समाधान के लिए तीन-स्तरीय प्रक्रिया का प्रावधान किया है:

  1. सिंधु आयोग – जहां विवाद को पहले दोनों देशों के बीच हल करने की कोशिश की जाती है।
  2. तटस्थ विशेषज्ञ – अगर आयोग में सहमति न बन पाए, तो विश्व बैंक द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ विवाद की समीक्षा करते हैं।
  3. अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण – यदि तटस्थ विशेषज्ञ भी समाधान नहीं निकाल पाते, तो मामला न्यायाधिकरण तक पहुंचता है।

भारत ने इस संरचित प्रक्रिया का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि एक ही मुद्दे पर दो समानांतर प्रक्रियाएं शुरू करना और अलग-अलग फैसलों के जरिए विवाद को सुलझाने का प्रयास सिंधु जल संधि की मूल भावना के खिलाफ है।

क्या है आगे का रास्ता? 

विशेषज्ञों के समर्थन के बाद भारत को संधि के पुनर्निर्धारण का रास्ता मिल सकता है। हालांकि, यह प्रक्रिया अभी भी आसान नहीं है। पाकिस्तान के असहयोगात्मक रवैये और क्षेत्रीय राजनीतिक माहौल को देखते हुए, भारत को अपने प्रयासों में धैर्य और कुशल रणनीति अपनानी होगी।

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