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ट्रंप के पहले दिन के फैसलों से किस दिशा में मुड़ेगा अमेरिका? और... इनका दुनिया पर क्या होगा असर

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डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति पद की कमान संभाली। शपथ लेने के तुरंत बाद उन्होंने अपने कार्यकाल की धमाकेदार शुरुआत करते हुए 80 से अधिक कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए। इनमें कई आदेश पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन की नीतियों को पलटने से जुड़े थे, तो कुछ ऐसे थे जो अमेरिका की वैश्विक संगठनों से दूरी और घरेलू व्यवस्थाओं में बड़े बदलाव का संकेत देते हैं।

ट्रंप के इस आक्रामक कदम ने अमेरिकी राजनीति और प्रशासन में नई हलचल मचा दी है। ऐसे में सवाल उठता है कि कार्यकारी आदेश होते क्या हैं? इनका महत्व क्या है? कोई राष्ट्रपति इन्हें कब और क्यों जारी करता है? और आखिर ट्रंप के इन आदेशों का अमेरिका और पूरी दुनिया पर क्या असर पड़ सकता है? आइए, इन सभी पहलुओं को विस्तार से समझते हैं।

ट्रंप के पहले दिन के कार्यकारी आदेश: क्या बदला और क्या होंगे असर?

डोनाल्ड ट्रंप ने शपथग्रहण के तुरंत बाद अपने दूसरे कार्यकाल की प्राथमिकताओं का स्पष्ट संकेत दिया। अपने भाषण में रिपब्लिकन एजेंडे की झलक देने के बाद, उन्होंने एक के बाद एक कई महत्वपूर्ण कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए। इनमें कुछ प्रमुख आदेशों में जन्म से नागरिकता के अधिकार को खत्म करने, अमेरिका को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से बाहर निकालने, राष्ट्रीय ऊर्जा आपातकाल लागू करने, और केवल दो लिंगों की पहचान को मान्यता देने जैसे निर्णय शामिल हैं। यह नीतिगत बदलाव सिर्फ अमेरिका के भीतर ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रभाव डालने वाले हैं। आइए, इन आदेशों पर विस्तार से चर्चा करें और समझें कि इनका अमेरिका और दुनिया पर क्या प्रभाव हो सकता है।

  • जन्म से नागरिकता का अधिकार: ट्रंप का अहम आदेश और उसके प्रभाव

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकारी आदेश में एक ऐतिहासिक बदलाव का प्रस्ताव रखा, जो अमेरिकी नागरिकता के नियमों को पूरी तरह से बदल सकता है। इस आदेश के तहत अब अमेरिका में अवैध रूप से आए शरणार्थियों के बच्चों को जन्म के समय अमेरिकी नागरिकता नहीं मिलेगी, जो पहले अमेरिकी संविधान के 14वें संशोधन का हिस्सा था।

ट्रंप का तर्क: अवैध आव्रजन को रोकने की कोशिश

ट्रंप ने इस आदेश के पीछे अपनी आव्रजन नीति को मजबूत करने का तर्क दिया। उनका कहना है कि यदि किसी बच्चे के जन्म के समय उसकी मां अवैध रूप से या अस्थायी तौर पर अमेरिका में थी और उसके पिता के पास नागरिकता या स्थायी निवास का अधिकार नहीं था, तो उस बच्चे को अमेरिकी नागरिकता नहीं मिलनी चाहिए।

आदेश का महत्व: कानूनी बदलाव और संभावित विवाद

पहले, अमेरिका में जन्मे हर बच्चे को जन्म के साथ ही नागरिकता मिल जाती थी, जो संविधान के तहत एक अधिकार था। ट्रंप के इस आदेश से यह अधिकार अब उस बच्चे के माता-पिता के कानूनी स्थिति से जुड़ जाएगा। हालांकि, इस आदेश के लागू होने के बाद इसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, और आने वाले समय में इससे आव्रजन और शरणार्थी नीतियों में बड़ा बदलाव देखा जा सकता है।

  • WHO से अमेरिका का एकतरफा कदम-

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकारी आदेश के तहत एक बड़े कदम का ऐलान किया, जिसके अनुसार अमेरिका 12 महीने के भीतर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से अपनी सदस्यता समाप्त कर देगा। इसके साथ ही, अमेरिका द्वारा WHO को दी जाने वाली आर्थिक सहायता भी रोक दी जाएगी, जो पिछले साल 2022-23 में 128.4 मिलियन डॉलर 

अमेरिका को ठगने का आरोप और WHO पर गंभीर सवाल

अपने आदेश पर हस्ताक्षर करते हुए ट्रंप ने WHO को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा, "विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हमें ठगा है। हर कोई अमेरिका को ठगता है। अब यह और नहीं होगा।" उनका आरोप था कि WHO ने कोरोनावायरस महामारी और अन्य स्वास्थ्य संकटों का सही तरीके से प्रबंधन नहीं किया, जिससे अमेरिका और पूरी दुनिया को नुकसान हुआ। यह कदम अमेरिका के वैश्विक स्वास्थ्य नीतियों में एक महत्वपूर्ण बदलाव को संकेत देता है, जिससे विश्व में स्वास्थ्य सहयोग और अमेरिका की भूमिका पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।

  • मैक्सिको की खाड़ी और माउंट डेनाली के नाम में बदलाव

डोनाल्ड ट्रंप ने एक और विवादित कार्यकारी आदेश जारी करते हुए मैक्सिको की खाड़ी और अलास्का के माउंट डेनाली के नाम बदलने का ऐलान किया। यह कदम ट्रंप प्रशासन की राष्ट्रीय और वैश्विक पहचान पर महत्वपूर्ण असर डाल सकता है।

ट्रंप का तर्क: 'अमेरिका' को प्राथमिकता देना

ट्रंप ने मैक्सिको की खाड़ी का नाम बदलकर 'अमेरिका की खाड़ी' रखने की योजना की घोषणा की। उनका तर्क था कि इस खाड़ी का बड़ा हिस्सा अमेरिका द्वारा नियंत्रित है और यह 'ड्रिल बेबी ड्रिल' योजना के तहत अमेरिकी तेल उत्पादन को बढ़ावा देने में सहायक होगा। इसके साथ ही, उन्होंने माउंट डेनाली का नाम बदलकर फिर से 'माउंट मैकिनली' करने का आदेश दिया, जो अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति विलियम मैकिनली के सम्मान में रखा गया था।

आदेश के प्रभाव: आंतरिक विवाद और वैश्विक असहमति

इस आदेश का असर केवल अमेरिका तक ही सीमित रहेगा, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दुनिया के देशों को इन नामों को मानने की बाध्यता नहीं है। इसके बावजूद, यह बदलाव अलास्का के स्थानीय समुदायों और विश्व पटल पर अमेरिकी साम्राज्यवादी दृष्टिकोण को लेकर विवादों को जन्म दे सकता है।

  • इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण लक्ष्य को खत्म करना

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के निर्माण के लक्ष्य को समाप्त करने का आदेश दिया। उनका तर्क था, "जब चीन खुले तौर पर प्रदूषण फैला रहा है, तब अमेरिका अपने उद्योगों को बर्बाद करके प्रदूषण कम करने के नाम पर ई-वाहनों को बढ़ावा नहीं दे सकता।" ट्रंप का यह बयान पर्यावरण नीतियों पर सवाल उठाता है और अमेरिका की ऊर्जा दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण मोड़ दर्शाता है।

ट्रंप की 'डीप स्टेट' से लड़ाई

इसके साथ ही, ट्रंप ने संघीय कर्मचारियों को वर्गीकृत करने का आदेश जारी किया, जिससे सरकार को छोटे आकार में लाने और गैर-जरूरी खर्चों को कम करने में मदद मिल सके।

क्या है ट्रंप का तर्क?

ट्रंप ने इस प्रक्रिया को और तेज करने के लिए सरकारी दक्षता मंत्रालय (DOGE) की स्थापना की है, जिसकी कमान एलन मस्क के हाथों में है। इस मंत्रालय का लक्ष्य उन कर्मचारियों को निकालना है, जो "डीप स्टेट" से जुड़े हैं और नई सरकार की नीतियों में रुकावट डाल सकते हैं। ट्रंप का यह कदम प्रशासन में बदलाव और सरकारी दक्षता बढ़ाने का हिस्सा है, जिसके तहत हजारों संघीय कर्मचारियों को 'श्रेणी एफ' में रखा जाएगा और छंटनी की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। यह आदेश अमेरिकी प्रशासन की कार्यप्रणाली और संरचना में बड़े बदलावों का संकेत देता है, जो आने वाले समय में नीति निर्धारण और सरकारी गतिविधियों को प्रभावित कर सकता है।

  • ऊर्जा संकट पर ट्रंप का आदेश: राष्ट्रीय ऊर्जा आपातकाल

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल में राष्ट्रीय ऊर्जा आपातकाल लागू करने का आदेश जारी किया, जिसे उन्होंने एक गंभीर संकट के रूप में पेश किया। उनका कहना था, "यह एक आपातकाल की स्थिति है, और अब हमें ऊर्जा समस्या से उबरने के लिए जो कुछ भी करना हो, वह करना होगा।" इस आदेश का उद्देश्य अमेरिका में ऊर्जा संकट का सामना करने के लिए तात्कालिक उपायों को लागू करना था, जिससे देश की ऊर्जा नीति में त्वरित बदलाव की आवश्यकता महसूस हुई।

लैंगिक पहचान पर ट्रंप का विवादास्पद आदेश

ट्रंप ने एक और कार्यकारी आदेश जारी किया, जिसके तहत अमेरिका में संघीय सरकार के सभी संचार, नीतियों और फॉर्म्स से 'लिंग विचारधारा मार्गदर्शन' को हटा दिया गया। इस आदेश के तहत यह आधिकारिक रूप से माना जाएगा कि अमेरिका में केवल दो लिंग हैं—पुरुष और महिला।

लैंगिक पहचान पर स्थिर नीति

ट्रंप ने कहा कि अब अमेरिकी एजेंसियां और संस्थान इस आधार पर लोगों की पहचान नहीं करेंगे कि वे पुरुष के रूप में पैदा हुए हैं, लेकिन खुद को महिला के रूप में पहचानते हैं, या महिला के रूप में पैदा होने वाले व्यक्ति को पुरुष मानते हैं। उनका कहना था कि इस आदेश से लैंगिक भेदभाव को रोकने में मदद मिलेगी, और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सरकारी दस्तावेजों में सिर्फ जन्म के आधार पर लिंग की पहचान की जाएगी। इस आदेश ने बाइडन प्रशासन के उस कदम को पलट दिया, जिसमें लोगों को अपनी लैंगिक पहचान चुनने की स्वतंत्रता दी गई थी, और इसने अमेरिकी समाज में लिंग पर आधारित पहचान की एक स्थिर नीति स्थापित की।

  • मैक्सिको सीमा पर आपातकाल और आव्रजन नीति

डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में एक अहम कार्यकारी आदेश जारी किया, जिसके तहत अमेरिका की दक्षिणी सीमा पर आपातकाल की घोषणा की गई और आव्रजन से जुड़े सख्त नियम लागू कर दिए गए। इस आदेश का मुख्य उद्देश्य अवैध आव्रजन पर लगाम लगाना और सीमा पर सुरक्षा बढ़ाना है।

अवैध घुसपैठ पर कड़ी कार्रवाई

ट्रंप ने इस आदेश के साथ कहा, "हम सभी अवैध प्रवेश को पूरी तरह से रोक देंगे और हम उन अपराधियों को, जिन्हें मैं 'विदेशी नागरिक अपराधी' कहता हूं, उन्हें उनके देशों में वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू करेंगे।" उनका उद्देश्य अमेरिका में अवैध घुसपैठ करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करना था।

 सैनिकों की तैनाती और कड़े नियम

इस आदेश के तहत, अमेरिका अब अपनी दक्षिणी सीमा पर सेना की तैनाती कर सकता है और अवैध आव्रजन को रोकने के लिए कठोर नीतियां लागू करेगा। हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि ट्रंप प्रशासन उन लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई करेगा, जो अवैध रूप से अमेरिका में रह रहे हैं, और इसे लागू करने में कितना खर्च आएगा।इस आदेश के चलते अमेरिका के अप्रवासी समुदाय में चिंता और भय का माहौल है, क्योंकि संघीय एजेंसियां अब अवैध शरणार्थियों का पता लगाने और उन्हें वापस भेजने की प्रक्रिया तेज करने वाली हैं।

  • पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका का बाहर होना

डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से अपने कार्यकारी आदेश से पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका की भागीदारी को समाप्त कर दिया है। यह आदेश संयुक्त राष्ट्र (यूएन) को भी सूचित किया गया, जिससे अमेरिका की वैश्विक जलवायु नीति में बड़ा बदलाव आया है।

"पक्षपाती समझौते से अमेरिका की छुट्टी"

अपने फैसले के बारे में ट्रंप ने कहा, "मैं पक्षपाती और एकतरफा पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका की भागीदारी को तुरंत वापस ले रहा हूं। मैं इस ग्रीन न्यू डील का अंत कर रहा हूं।" ट्रंप का यह कदम उनके द्वारा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को नकारने और अमेरिका के आर्थिक हितों को प्राथमिकता देने की नीति का हिस्सा है।

क्या होंगे इसके प्रभाव?

ट्रंप ने 2017 में भी इसी समझौते से अमेरिका को बाहर कर दिया था, हालांकि बाइडन प्रशासन ने 2021 में इसे फिर से लागू किया था। अब, ट्रंप के आदेश से एक बार फिर अमेरिका की स्थिति स्पष्ट हो गई है, जिससे अमेरिका और चीन के बीच कार्बन उत्सर्जन में मुख्य भूमिका निभाने वाले देशों का द्वंद्व और बढ़ सकता है। ट्रंप का मानना है कि जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को सीमित करने के कारण महंगाई बढ़ी है, और उनका यह निर्णय अमेरिका को जलवायु परिवर्तन से कम प्रभावित कर सकता है।

  • अमेरिका ने पेरिस जलवायु समझौते से फिर वापसी की घोषणा

संघर्ष में बढ़ती अनिश्चितता-

2015 के पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका की भागीदारी को लेकर एक और बड़ा मोड़ आया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश जारी कर अमेरिका को इस महत्वपूर्ण वैश्विक समझौते से फिर बाहर कर दिया है। अब अमेरिका संयुक्त राष्ट्र को इस फैसले की जानकारी भेज चुका है, जिससे पर्यावरण संरक्षण के लिए वैश्विक प्रयासों में और भी अनिश्चितता उत्पन्न हो सकती है।

ट्रंप का कटु बयान: "ग्रीन न्यू डील का अंत

ट्रंप ने इस फैसले को बेहद कठोर शब्दों में बयान किया, कहकर, "मैं पक्षपाती और एकतरफा पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका की भागीदारी को तुरंत वापस ले रहा हूं। मैं इस ग्रीन न्यू डील का अंत कर रहा हूं।" उनका यह कदम न केवल पर्यावरणीय मुद्दों पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि अमेरिका के भीतर ऊर्जा नीति और अर्थव्यवस्था पर भी गहरे प्रभाव डाल सकता है।

क्या है इसके पीछे की सच्चाई?

यह कोई नया कदम नहीं है, क्योंकि 2017 में ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान भी अमेरिका पेरिस समझौते से बाहर हो चुका था। हालांकि, बाइडन ने 2021 में वापसी की, और अब ट्रंप ने इसे फिर से पलट दिया है। दुनिया के सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देशों में शामिल अमेरिका का यह कदम जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक प्रयासों को और कठिन बना सकता है।

साफ ऊर्जा के लिए बढ़ती महंगाई का खतरा

पेरिस जलवायु समझौते के उद्देश्य के तहत कार्बन उत्सर्जन को घटाने के लिए कई उपायों का सुझाव दिया गया था, जिनमें जीवाश्म ईंधन की खपत को घटाना और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना शामिल है। अमेरिका में बढ़ती महंगाई और स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ता कदम इस फैसले से सीधे तौर पर प्रभावित हो सकता है, क्योंकि ट्रंप का मानना है कि जीवाश्म ईंधन की कीमतों में कमी लाने से अमेरिका की अर्थव्यवस्था को फायदा होगा।

क्या ट्रंप का यह कदम जलवायु संकट को और बढ़ा देगा?

ट्रंप का यह फैसला जलवायु परिवर्तन के खतरों को नकारते हुए, अमेरिका के हितों को प्राथमिकता देता है। वहीं, यह सवाल भी उठता है कि क्या यह कदम अमेरिका को दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले और भी पीछे कर देगा, विशेषकर जब कार्बन उत्सर्जन को कम करने की जरूरत वैश्विक स्तर पर पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है।

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