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सुखरू जंगल कैसे बना आतंकियों का अड्डा, क्या है 'ऑपरेशन केलर' जिसके तहत टेररिस्ट किए जा रहे ढेर?

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जम्मू-कश्मीर के शोपियां जिले के घने जंगलों में आतंकियों की बढ़ती गतिविधियों पर नकेल कसने के लिए भारतीय सेना ने 13 मई को 'ऑपरेशन केलर' की शुरुआत की। इस सर्च एंड डिस्ट्रॉय ऑपरेशन में अब तक तीन आतंकियों को मार गिराया गया है। ये आतंकी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े थे।

क्या है ऑपरेशन केलर?

सेना के मुताबिक, ऑपरेशन केलर का नाम उस गांव से लिया गया है, जहां से यह ऑपरेशन शुरू किया गया – शोपियां का शोकल केलरयह गांव घने सुखरू जंगलों से घिरा हुआ है और आतंकियों के लिए एक सुरक्षित ठिकाने के रूप में उभरा है। सेना की राष्ट्रीय राइफल्स विंग को खुफिया सूचना मिली थी कि इस इलाके में आतंकी छिपे हुए हैं, जिसके बाद यह ऑपरेशन लॉन्च किया गया।

शोपियां – आतंकियों का नया गढ़ क्यों?

शोपियां जिला पीर पंजाल की पहाड़ियों के पास स्थित है, जहां से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से आतंकी आसानी से घुसपैठ कर सकते हैं। घने जंगलों और इलाके की भौगोलिक बनावट की वजह से यह क्षेत्र आतंकियों के लिए आदर्श छिपने की जगह बन गया है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, कुपवाड़ा, उरी, तंगधार, पुंछ और राजौरी जैसे सीमावर्ती इलाकों से घुसपैठ के बाद आतंकी मुगल रोड के जरिए शोपियां पहुंचते हैं। यहां के स्थानीय बागानों और जंगलों में वे आसानी से छिप सकते हैं और कुछ स्थानीय लोगों से मदद भी मिलती है।

आतंकियों को कैसे मिलता है लोकल सपोर्ट?

स्थानीय पत्रकार जुनैद हाशमी बताते हैं कि कुछ अलगाववादी सोच वाले स्थानीय लोग आतंकियों को आश्रय और लॉजिस्टिक सपोर्ट देते हैं। वहीं रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी के मुताबिक, घने जंगल, सेब के बागान और अच्छी कनेक्टिविटी आतंकियों के लिए इसे एक सेफजोन बनाते हैं। हालांकि, शोपियां में ऐसे लोग भी हैं जो आतंकवाद के खिलाफ खड़े हैं। निर्दलीय विधायक शब्बीर अहमद कुल्ले की जीत इसका उदाहरण है।

सीमापार घुसपैठ के पीछे क्या कारण हैं?

  • सीमा पर लगातार बाड़ेबंदी बनाए रखना संभव नहीं:

बर्फबारी और भूस्खलन के कारण हर साल करीब 400 किमी बाड़ क्षतिग्रस्त हो जाती है, जिसका फायदा आतंकी उठाते हैं।

  • स्थानीय सपोर्ट:

कुछ स्थानीय लोग आतंकियों को शुरुआती ठिकाने बनाने में मदद करते हैं। जंगलों में मौजूद गुफाएं भी उनके छिपने का ठिकाना बनती हैं।

ऑपरेशन सिंदूर से क्या है इसका संबंध?

हाल ही में शुरू हुए ऑपरेशन सिंदूर और ऑपरेशन केलर दोनों अलग-अलग रणनीतिक अभियानों का हिस्सा हैं। जहां ऑपरेशन सिंदूर का मकसद सीमा पार मौजूद आतंकी ठिकानों पर स्ट्राइक करना है, वहीं ऑपरेशन केलर का लक्ष्य दक्षिण कश्मीर के जंगलों में छिपे आतंकियों को खत्म करना है।

क्या अब ऐसे ऑपरेशन रूटीन बन जाएंगे?

रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि आतंकवाद के खिलाफ भारत का रुख अब और सख्त हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को राष्ट्र के नाम संबोधन में साफ कहा कि ऑपरेशन सिंदूर "न्याय की अखंड प्रतिज्ञा" है। यानी भारत अब आतंकवाद के खिलाफ किसी भी स्तर तक जाने से नहीं हिचकिचाएगा। नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजरी बोर्ड के सदस्य पंकज सरन ने भी इसे भारत की सुरक्षा नीति में एक 'नया सामान्य' बताया है। आने वाले दिनों में इस तरह के ऑपरेशन और तेज़ होने की संभावना है।

ऑपरेशन केलर से सेना का सख्त संदेश

शोपियां के जंगल अब सिर्फ खूबसूरती का प्रतीक नहीं रहे, बल्कि वे आतंकियों के छिपने की जगह बन चुके हैं। ऐसे में ऑपरेशन केलर जैसे सख्त अभियान आतंकवाद पर लगाम लगाने की दिशा में एक निर्णायक कदम हैं। सेना की सर्च एंड डिस्ट्रॉय रणनीति साफ संकेत देती है – अब कोई भी आतंकी सुरक्षित नहीं।

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