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रंगों से सराबोर यह त्यौहार, होली... जिसे भारत समेत पूरी दुनिया में उल्लास के साथ मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस महापर्व की जड़ें उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले से जुड़ी हुई हैं? जी हां, एक ऐसी पौराणिक गाथा जो हमें हजारों साल पीछे ले जाती है…
होली का ऐतिहासिक केंद्र
पौराणिक कथाओं के अनुसार, उत्तर प्रदेश के हरदोई को पहले हरिद्रोही के नाम से जाना जाता था। यह वही स्थान था, जहाँ हिरण्यकश्यप का शासन था—एक असुर राजा जिसने खुद को भगवान घोषित कर दिया था। लेकिन उसका अपना पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का परम भक्त था। यह बात हिरण्यकश्यप को सहन नहीं हुई, और उसने अपने ही बेटे को मारने की अनेक कोशिशें कीं।
इस कोशिश में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलाया, जिसे वरदान था कि आग उसे जला नहीं सकती थी। योजना बनी कि होलिका, प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठेगी, जिससे प्रह्लाद जलकर भस्म हो जाएगा। लेकिन हुआ ठीक उल्टा। होलिका जलकर राख हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गया। यहीं से शुरू हुई होली की परंपरा—बुराई पर अच्छाई की विजय का उत्सव। और हरदोई के लोगों ने इस विजय को रंगों से मनाया, जो आज तक जारी है।
हरदोई की ऐतिहासिक विशेषता
हालाँकि कहानी यहीं खत्म नहीं होती। हिरण्यकश्यप की क्रूरता अपने चरम पर थी। उसने नगरवासियों पर कई प्रतिबंध लगाए थे, यहाँ तक कि 'र' अक्षर के उच्चारण पर भी रोक लगा दी थी। आज भी यहाँ के बुजुर्ग हरदोई को 'हद्दोई' और मिर्चा को 'मिच्चा' कहते हैं। यह लोकमान्यता है कि यह प्रभाव हिरण्यकश्यप के काल से ही चला आ रहा है।
अंततः भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार धारण किया और हिरण्यकश्यप का अंत कर दिया। कहा जाता है कि यह ऐतिहासिक घटना हरदोई के ककेड़ी गांव में घटी थी। आज भी वहाँ 5000 वर्ष पुराना नृसिंह मंदिर, प्रह्लाद घाट, और हिरण्यकश्यप के महल के खंडहर इस कथा के साक्षी हैं।
हमारी सांस्कृतिक विरासत
तमाम कथाओं में हरदोई को होली का जन्मस्थान बताया गया है। हरदोई गजेटियर में भी इस कथा का उल्लेख मिलता है। हर वर्ष, होली के अवसर पर यहाँ हजारों श्रद्धालु जुटते हैं। यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि हमारी पौराणिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।
Baten UP Ki Desk
Published : 14 March, 2025, 12:00 pm
Author Info : Baten UP Ki