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18 साल में गर्मी और ठंड के कहर से गईं 35 हजार जानें, भारत में हर दिन होती हैं इतनी मौतें!

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भारत में 2001 से 2019 के बीच अत्यधिक गर्मी और कड़ाके की ठंड ने करीब 35,000 लोगों की जान ले ली। यह चौंकाने वाला आंकड़ा 'टेंपरेचर' नामक वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में सामने आया है। अध्ययन के अनुसार, अकेले 2015 में ही 1,907 लोगों की मौत लू से और 1,147 लोगों की मौत ठंड की वजह से हुई थी।

हीट स्ट्रोक और ठंड से बढ़ती मौतें बनीं चिंता का विषय

यह अध्ययन भारत मौसम विज्ञान विभाग और राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) सहित कई सरकारी स्रोतों से जुटाए गए आंकड़ों पर आधारित है। अध्ययन ने स्पष्ट किया है कि देश में हीट स्ट्रोक और अत्यधिक ठंड जैसे चरम तापमान के संपर्क में आने से होने वाली मौतों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

कामकाजी पुरुषों पर सबसे बड़ा असर

रिपोर्ट में बताया गया है कि अत्यधिक गर्मी खासतौर पर कामकाजी उम्र के पुरुषों के लिए सबसे घातक साबित हो रही है। अध्ययन के अनुसार, 2001 से 2019 के बीच महिलाओं की तुलना में पुरुषों की मृत्यु दर गर्मी में तीन से पांच गुना और ठंड में चार से सात गुना अधिक रही।

राज्यवार आंकड़े: कहां कितनी मौतें?

  • लू से मौतें सबसे ज्यादा आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पंजाब में हुईं।

  • ठंड से मौतें उत्तर प्रदेश, पंजाब और बिहार में सबसे अधिक दर्ज की गईं।
    कुल मिलाकर, इस अवधि में 19,693 मौतें लू से और 15,197 मौतें ठंड से हुईं।

गर्मी से बचाव के लिए वक्त कम

अध्ययन के मुख्य लेखक, ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी (हरियाणा) के प्रदीप गुइन ने चेतावनी दी है कि 2025 में देश के अधिकांश हिस्सों में भीषण गर्मी पड़ने की आशंका है। उन्होंने कहा कि देश में कुछ सहायता प्रणालियां मौजूद हैं, लेकिन उन्हें और मजबूत करने की जरूरत है ताकि अत्यधिक तापमान के खतरों को कम किया जा सके।

वैश्विक स्तर पर भी दिख रहा अस

एक अन्य वैश्विक अध्ययन, जो नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित हुआ है, से पता चला है कि पिछले 60 वर्षों में दुनिया के लगभग 60 फीसदी हिस्सों में तापमान में अचानक उतार-चढ़ाव—जैसे तेज गर्मी के बाद अचानक ठंड या इसके उलट—की घटनाएं बढ़ी हैं।

सरकार और जनता को मिलकर उठाने होंगे कदम

भारत जैसे मध्यम-आय वाले देश में, जहां जनसंख्या घनत्व अधिक है और संसाधनों की कमी है, चरम मौसमी घटनाओं से निपटने के लिए नीति-निर्माताओं, स्वास्थ्य एजेंसियों और आम नागरिकों को मिलकर सक्रिय कदम उठाने की जरूरत है।

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