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डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम-एक ऐसा नाम जो विज्ञान, समर्पण और असाधारण साहस का पर्याय बन गया। उन्हें 'मिसाइल मैन' के रूप में जाना जाता है, लेकिन यह सिर्फ एक उपाधि नहीं, बल्कि उनके अदम्य संकल्प और महान उपलब्धियों का प्रतीक था। हर रॉकेट जो आसमान में पहुंचा, हर असफलता जो उन्होंने झेली, उनके भीतर न केवल एक वैज्ञानिक, बल्कि एक सपनों का शिल्पकार गढ़ती गई। असफलताओं को उन्होंने मार्गदर्शक बनाया और अपने हर कदम से साबित किया कि अगर हौसले बुलंद हों तो आसमान भी छोटा पड़ जाता है। उनका जीवन सिर्फ विज्ञान की परिभाषा नहीं, बल्कि साहस और उम्मीद की अनंत उड़ान थी, जो आज भी अनगिनत लोगों को प्रेरित करती है।
पूरी दुनिया हर साल मनाती है वर्ल्ड स्टूडेंट डे-
हर साल 15 अक्टूबर को 'वर्ल्ड स्टूडेंट डे' मनाने की परंपरा सिर्फ एक विशेष दिन नहीं, बल्कि डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के महान व्यक्तित्व और उनके छात्रों के प्रति समर्पण को सम्मानित करने का अनोखा तरीका है। डॉ. कलाम ने अपने पूरे जीवन में छात्रों को प्रेरित करने और उन्हें भविष्य के निर्माण के लिए सक्षम बनाने का कार्य किया। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उनकी असाधारण उपलब्धियों से परे, उनका असली योगदान युवाओं को सपने देखने, उन सपनों का पीछा करने, और उन्हें हकीकत में बदलने के लिए प्रेरित करना था।
वर्ल्ड स्टूडेंट डे का उद्देश्य केवल छात्रों को सम्मानित करना नहीं, बल्कि शिक्षा की महत्ता को समाज के सभी स्तरों पर पुनः स्थापित करना भी है। डॉ. कलाम का मानना था कि युवा किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी शक्ति होते हैं, और उनके सही मार्गदर्शन से ही एक प्रगति और समृद्धि की दिशा में कदम बढ़ाए जा सकते हैं। उनका विचार था कि छात्रों को न केवल ज्ञान के माध्यम से सशक्त किया जाना चाहिए, बल्कि उनके नैतिक मूल्यों और आदर्शों को भी मजबूत किया जाना चाहिए।
नाकामी से सीखने का दृढ़ संकल्प-
डॉ. कलाम के जीवन में कई ऐसे मोड़ आए जब विफलता ने उनकी कामयाबी के सपनों पर अस्थायी रूप से विराम लगाया। उन्होंने लिखा, "मैं SLV-3 और 'अग्नि' मिसाइल परियोजना का नेतृत्व कर रहा था। दोनों ही प्रयास शुरू में असफल रहे, जिससे सरकार और जनता का विश्वास कमजोर हुआ। उस समय हम भारी दबाव में थे।" लेकिन इस दबाव के बावजूद, कलाम और उनकी टीम ने खुद की कमियों का विश्लेषण किया और अंततः सफलता हासिल की।
सुधाकर का बलिदान और पसीने की बूंद से हादसा-
1960 के दशक में थुंबा में ध्वनि रॉकेट के परीक्षण के दौरान, डॉक्टर कलाम और उनके सहयोगी सुधाकर एक बड़े हादसे का शिकार होते-होते बचे। पेलोड को रॉकेट से जोड़ते समय सुधाकर के माथे की पसीने की कुछ बूंदें मिश्रण पर गिर गईं, जिससे बड़ा विस्फोट हुआ और पूरी प्रयोगशाला आग की चपेट में आ गई। सुधाकर ने जान पर खेलकर डॉक्टर कलाम को बचाया, लेकिन खुद बुरी तरह घायल हो गए। इस हादसे ने डॉक्टर कलाम के दिल पर गहरा असर डाला और उन्होंने इसे कभी नहीं भुलाया।
आठ मौतें और खाली ताबूत-
डॉ. कलाम के जीवन का एक और दुखद अध्याय 11 जनवरी 1999 को सामने आया, जब एक वैज्ञानिक मिशन के दौरान आठ लोगों की जान चली गई। यह हादसा तब हुआ जब मोटोडोम नामक निगरानी प्रणाली के साथ एवरो विमान उड़ान भर रहा था और कुछ ही देर बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया। हादसे में सभी लोग मारे गए, और मृत शरीर तक नहीं मिल सके। पीड़ित परिवारों को केवल खाली ताबूत सौंपे गए, जिससे उनकी पीड़ा और बढ़ गई। कलाम ने लिखा कि विधवाओं की चीखें और परिवारों की पीड़ा उन्हें हमेशा याद रही।
सेवा भाव और बलिदान का महत्व-
कलाम का मानना था कि देश का निर्माण सिर्फ राजनीति से नहीं होता, बल्कि बलिदान, परिश्रम और निस्वार्थ सेवा से होता है। उन्होंने लिखा, "खुद को मोमबत्ती नहीं, पतंगा मानो। सेवा भाव की शक्ति को समझो।" उनकी यह सोच उन्हें एक महान वैज्ञानिक से भी बढ़कर, एक प्रेरणादायक नेता बनाती है, जिसने देश के विकास के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया।
जनता के राष्ट्रपति का सफर-
2002 में राष्ट्रपति बनने के बाद, कलाम ने भारत को गहराई से समझने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने पांच साल के कार्यकाल में सड़क, रेल और हवाई मार्ग से पूरे देश की यात्रा की, सिवाय लक्षद्वीप के, जो उनका हमेशा से एक अधूरा सपना रहा। वे लाखों लोगों से मिले और खासतौर पर युवाओं से जुड़े। उनकी सादगी, भाषणों और लेखों ने लोगों को प्रेरित किया। इसी कारण, वे "जनता के राष्ट्रपति" कहलाए। उनकी लोकप्रियता ने उन्हें आम जनता के दिलों में एक स्थायी स्थान दिलाया, और उनकी सक्रियता कभी सरकार से टकराव का कारण नहीं बनी।
विज्ञान और बलिदान का अमिट योगदान-
डॉ. कलाम के जीवन के अनुभव हमें यह सिखाते हैं कि सफलता सिर्फ परिणाम नहीं है, बल्कि उसमें छिपी हुई मेहनत और बलिदान भी महत्वपूर्ण है। चाहे वह सुधाकर का त्याग हो या वैज्ञानिक मिशनों में जान गंवाने वाले आठ लोगों का बलिदान, ये घटनाएं हमें यह याद दिलाती हैं कि देश की उन्नति के पीछे कई अनकहे संघर्ष छिपे होते हैं। कलाम का कहना था, "जब विज्ञान और रक्षा तकनीक की बात होती है, तो हमें उन बलिदानों को याद रखना चाहिए, जिन्होंने हमारे किलों को मजबूत किया है।" डॉ. कलाम के जीवन की इन कहानियों से हमें यह सीख मिलती है कि चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, अपने उद्देश्य के प्रति समर्पण और सेवा भाव हमें हर कठिनाई से उबार सकता है।
By Ankit Verma
Baten UP Ki Desk
Published : 15 October, 2024, 12:36 pm
Author Info : Baten UP Ki