पिछले छह दशकों में वैश्विक कृषि उत्पादन ने अभूतपूर्व प्रगति दर्ज की है, जिसकी पुष्टि विश्व बैंक और अमेरिका के इडाहो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने की है। लेकिन अब इस निरंतर वृद्धि पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन का बढ़ता प्रभाव न केवल फसल उत्पादन को धीमा कर सकता है, बल्कि कृषि स्थिरता के लिए भी गंभीर चुनौती बन सकता है। शोध से स्पष्ट होता है कि अगर इस संकट को रोका नहीं गया, तो आने वाले समय में पानी की कमी एक विकराल समस्या के रूप में उभरेगी, जो खाद्य सुरक्षा को सीधे तौर पर प्रभावित करेगी।
तकनीकी विकास ने दी उपज को रफ्तार-
शोधकर्ताओं ने बताया कि पिछले छह दशकों में खाद्य उत्पादन में बढ़ोतरी का श्रेय मुख्य रूप से तकनीकी प्रगति को जाता है। उन्नत फसल किस्मों का विकास और उनका व्यापक उपयोग इस सफलता के अहम कारण रहे हैं। शोध में 144 फसलों के उत्पादन और उपज का अध्ययन किया गया। इसके लिए कैलोरी-आधारित सूचकांक का इस्तेमाल किया गया, जिसने दुनिया के कृषि क्षेत्र का 98% हिस्सा कवर किया। इस कैलोरिक उपयुक्तता सूचकांक (सीएसआई) के जरिए यह समझने में मदद मिली कि कृषि उत्पादकता वैश्विक खाद्य सुरक्षा का महत्वपूर्ण संकेतक है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण इस बढ़ोतरी की गति धीमी पड़ने की आशंका है।
पानी की कमी बढ़ाएगी चुनौती-
हर साल पृथ्वी की सतह पर करीब 1 लाख 10 हजार क्यूबिक किलोमीटर बारिश होती है। इसमें से लगभग 40 हजार क्यूबिक किलोमीटर पानी नदियों और भूजल में पहुंचता है। शेष पानी मिट्टी से वाष्पित हो जाता है। वैश्विक स्तर पर शहरों, उद्योगों और कृषि के लिए कुल 3,700 क्यूबिक किलोमीटर पानी का उपयोग किया जाता है। इसमें से 70% यानी लगभग 2,600 क्यूबिक किलोमीटर पानी कृषि सिंचाई में खर्च होता है।
जलवायु परिवर्तन का असर बारिश के वितरण पर-
बारिश, जो कृषि के लिए पानी का मुख्य स्रोत है, जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित हो गई है। कई बार बारिश सही समय और सही जगह नहीं होती, जिससे फसलों की उत्पादकता प्रभावित होती है।
पानी संचय के लिए नई तकनीकों की जरूरत-
आने वाले समय में पानी की उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौती बनने वाली है। इसके लिए जरूरी है कि दुनिया भर में पानी संचयन और प्रबंधन की नई और प्रभावी तकनीकें विकसित की जाएं। पानी को सही समय और सही स्थान पर संरक्षित करना ही इस संकट का समाधान हो सकता है। जलवायु परिवर्तन के इस गंभीर प्रभाव से निपटने के लिए सतर्कता और सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है, ताकि फसलों की उत्पादकता और जल संसाधनों को सुरक्षित रखा जा सके।