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छठ महापर्व है सच्चा फेमिनिज्म और सस्टेनेबल डेवलपमेंट का प्रतीक!

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इक्कीसवीं सदी में "नालेज इज पावर" कहा जाता है, लेकिन जब बिहार और पूर्वांचल की बात आती है, तो यहां पारंपरिक ज्ञान और मूल्य पंडित की पोथियों से अधिक, पण्डिताइन के आँचल में बसे होते हैं। इसका सबसे सजीव उदाहरण है छठ महापर्व, एक ऐसा त्योहार जिसमें समाज की संस्कृति, नारी का सम्मान, पर्यावरण संरक्षण, और परिवार का संगम देखने को मिलता है। यह पर्व न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण है।

छठ पूजा: स्त्री सशक्तिकरण का प्रतीक-

छठ पूजा बिहार, झारखंड और पूर्वांचल के कई हिस्सों में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाई जाती है। इसमें व्रत करने वाली महिलाएँ सूर्य देवता को अर्घ्य देकर पूरे परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। आधुनिक युग में "फेमिनिज्म" की चर्चा चाहे कितनी भी हो, लेकिन इस पर्व में स्त्री सशक्तिकरण का गहरा संदेश समाहित है। छठ पर्व में महिलाएँ अपने सामर्थ्य और आस्था से तपस्या करती हैं, जो उन्हें और उनके परिवार को शक्ति प्रदान करता है। फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास 'परती परिकथा' के पात्र के अनुसार, "लोकगीतों के माध्यम से लोकमन को समझा जा सकता है," और छठ के लोकगीतों में स्त्री का समर्पण और शक्ति हमें नजर आती है। यह पर्व वास्तव में एक फेमिनिस्ट त्यौहार है, जहाँ महिलाएँ अपने सामर्थ्य और आस्था से परिवार और समाज की सुरक्षा करती हैं।

प्रकृति से जुड़ाव और परंपरा-

छठ महापर्व एक इको-फ्रेंडली त्योहार है। इसमें बांस की टोकरी, मिट्टी के दीये, और प्राकृतिक सामग्री का उपयोग होता है। प्लास्टिक या कृत्रिम सजावट का बिल्कुल भी प्रयोग नहीं किया जाता, जिससे यह पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। घाटों की सफाई और प्राकृतिक वस्तुओं के उपयोग के माध्यम से यह पर्व सिखाता है कि हम अपनी परंपराओं को पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए मना सकते हैं। छठ के गीतों में छिपे संदेश जैसे "कोपि-कोपि बोलेली छठी माई, सूनि ए सेवका लोगवा हमरी घाटे दुबिया उपज गईले मकरी बसेरा लेले" में भी पर्यावरण-संरक्षण का संदेश मिलता है।

सस्टेनेबल डेवलपमेंट का संदेश-

छठ पूजा के गीत जैसे "केरवा जे फरेला घवद से ओहपे सुग्गा मेड़राय" और "कांचहि बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाए" बायोडायवर्सिटी के संरक्षण और सस्टेनेबल डेवलपमेंट का महत्व बताते हैं। ये गीत ग्रामीण जीवन के श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक हैं और आज के दौर में भी ये संदेश अत्यंत प्रासंगिक हैं।

क्या है छठी मैया का महत्व?

इस पर्व में छठी मैया की पूजा की जाती है, जो जीवन की संरक्षिका मानी जाती हैं। लोककथाओं के अनुसार, छठी मैया भक्तों के कष्ट दूर करती हैं। स्कंदमाता के रूप में कार्तिकेय के पालन की कथा भी उनके महत्व को दर्शाती है। सूर्य देव और छठी मैया की संयुक्त पूजा हमें परिवार और समाज में संतुलन का प्रतीक प्रदान करती है। गीत "ससुरा में मांगिले अन्न धन लक्ष्मी, नैहर सहोदर जेठ भाय हे छठी मइया" पारिवारिक एकता और समृद्धि को दर्शाता है।

धार्मिक संदर्भ और अर्घ्य का महत्व-

छठ पूजा को "विवस्वत् षष्ठी" भी कहा जाता है और इस दिन सूर्य देवता, जिन्हें "जगत की आत्मा" माना गया है, की पूजा होती है। यह परंपरा गहड़वाल राजा गोविंदचंद्र के काल से चली आ रही है, और पुराणों में भी छठ पूजा की कथाएँ मिलती हैं। स्कंदपुराण के अनुसार, छठ व्रत से दुखों और रोगों का नाश होता है। व्रतधारी षष्ठी तिथि को नदी के किनारे सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। अर्घ्य देने की यह परंपरा हमें प्रकृति के प्रति आस्था का भाव सिखाती है और समाज को एकजुट करती है।

श्रद्धा से भरा है छठ पूजा का अर्घ्य मंत्र:

"नमोऽस्तु सूर्याय सहस्रभानवे नमोऽस्तु वैश्वानर जातवेदसे। त्वमेव चाघर्य प्रतिगृह्ण गृह्ण देवाधिदेवाय नमो नमस्ते।"

छठ पर्व: समाज और पर्यावरण के संतुलन का सन्देश-

छठ महापर्व नारी शक्ति, प्रकृति का सम्मान, और आस्था के मेल से एक संतुलित समाज का संदेश देता है। सूर्य और छठी मैया की पूजा के माध्यम से यह पर्व हमारी परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर को संजोने का अवसर है, जो हमें एक स्वस्थ और संतुलित समाज की ओर ले जाता है। इस वर्ष, आइए हम सब छठ पर्व के इन संदेशों को अपने जीवन में अपनाएँ और अपने समाज, पर्यावरण, और परंपराओं का सम्मान करें।

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