1765 से 1947 के बीच ब्रिटिश शासन ने भारत की संपत्ति को निचोड़ कर अपनी तिजोरियां भरीं। इस दौर में अंग्रेजों ने भारत से लगभग 64.82 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अकूत संपत्ति लूटी। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस विशाल धनराशि का आधे से अधिक, यानी 33.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर, का सीधा फायदा ब्रिटेन के सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोगों को हुआ। इतनी बड़ी रकम थी कि इससे लंदन को ब्रिटिश पाउंड के 50 के नोटों से चार बार ढंका जा सकता था। यह आंकड़े इस लूट की भयावह स्थिति को उजागर करते हैं, जो भारतीय इतिहास में एक गहरे घाव की तरह आज भी कायम है।
ऑक्सफैम की रिपोर्ट में असमानता पर गहरी नजर
यह आंकड़े ऑक्सफैम इंटरनेशनल की नवीनतम वैश्विक असमानता रिपोर्ट 'टेकर्स, नॉट मेकर्स' में सामने आए हैं। यह रिपोर्ट हर साल विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक बैठक से पहले जारी की जाती है। इस बार यह रिपोर्ट दावोस में पेश की गई, जिसमें उपनिवेशवाद के समय की असमानता और शोषण की विकृतियों पर जोर दिया गया है।
वैश्विक दक्षिण का शोषण और उत्तर की समृद्धि
रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक दक्षिण के लोगों का शोषण कर वैश्विक उत्तर के अमीरों ने अपनी संपत्ति बढ़ाई। यह असमानता नस्लवाद पर आधारित विभाजन को और गहरा करती है। अध्ययन से पता चलता है कि ब्रिटेन के सबसे धनी 10 प्रतिशत लोगों ने 1765 और 1900 के बीच भारत से आज के हिसाब से 33.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की संपत्ति निकाली।
गुलामी और उपनिवेशवाद से मिली संपत्ति
रिपोर्ट यह भी उजागर करती है कि ब्रिटेन के कई अमीर परिवार अपनी संपत्ति का श्रेय उपनिवेशवाद और गुलामी को देते हैं। जब गुलामी समाप्त हुई, तो गुलाम मालिकों को मुआवजे के रूप में बड़ी धनराशि मिली, जिससे उनकी संपत्ति बढ़ी।
आधुनिक कंपनियों की जड़ें उपनिवेशवाद में
ऑक्सफैम ने आधुनिक बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भी उपनिवेशवाद की देन बताया है। ईस्ट इंडिया कंपनी जैसे निगमों ने अपने कानून बनाए और कई औपनिवेशिक अपराधों के लिए जिम्मेदार थे। आज भी ये कंपनियां एकाधिकार की स्थिति में हैं और वैश्विक उत्तर के धनी शेयरधारकों के लिए लाभ कमाने के लिए वैश्विक दक्षिण के श्रमिकों, खासकर महिला श्रमिकों, का शोषण करती हैं। इस रिपोर्ट से यह स्पष्ट होता है कि ब्रिटेन की समृद्धि का एक बड़ा हिस्सा भारतीय उपनिवेश और वहां के लोगों के शोषण से आया है। आधुनिक समय में भी यह असमानता और शोषण जारी है, जिससे वैश्विक उत्तर और दक्षिण के बीच खाई बढ़ती जा रही है।