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ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका (ब्रिक्स) के प्रमुख नेता इस बार रूस के ऐतिहासिक शहर कज़ान में एक ऐसी बैठक के लिए एकत्रित हुए हैं, जो न केवल ब्रिक्स के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ रही है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन को भी पुनः परिभाषित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। 2024 का यह शिखर सम्मेलन इसलिए भी विशेष बन गया है क्योंकि पहली बार मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे पांच नए प्रभावशाली देश इस समूह में शामिल हुए हैं। रूस की अध्यक्षता में यह मंच अब एक नए आकार और शक्ति के साथ उभर रहा है, जिससे वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक समीकरणों में गहरा बदलाव आने की संभावना है। यह शिखर सम्मेलन ब्रिक्स के बढ़ते प्रभाव और उसकी महत्वाकांक्षाओं का स्पष्ट संकेत है, जो आने वाले समय में दुनिया की आर्थिक धारा को एक नए मोड़ पर ले जा सकता है।

कितना महत्वपूर्ण है भारत के लिए ब्रिक्स 2024?

ब्रिक्स 2024 शिखर सम्मेलन में भारत की भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति और उनके नेतृत्व में भारत एक अहम खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है। रूस और भारत के बीच गहरे ऐतिहासिक और रणनीतिक संबंधों को देखते हुए, पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच संभावित मुलाकात पर सबकी नजरें हैं। हालाँकि, यूक्रेन संघर्ष पर भारत की तटस्थता की नीति को बनाए रखने की संभावना है, फिर भी रूस के साथ ऊर्जा सुरक्षा और रक्षा साझेदारी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत की उम्मीद की जा रही है।

भारत की भूमिका: वैश्विक मंच पर अहम रणनीतिक मोर्चे-

भारत-रूस के बीच द्विपक्षीय वार्ता के अलावा, ब्रिक्स मंच पर भारत के लिए चीन के साथ संबंधों में सुधार की संभावना पर भी चर्चा हो रही है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव के बाद हुए समझौते ने दोनों देशों के बीच संवाद का मार्ग प्रशस्त किया है। हालांकि, शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन व्यापार असंतुलन और आर्थिक सहयोग को लेकर चर्चा होने की संभावना बनी हुई है।

ब्रिक्स विस्तार: एक नई वैश्विक व्यवस्था की नींव?

ब्रिक्स समूह का विस्तार, जिसमें मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को शामिल किया गया है, वैश्विक राजनीति के बदलते परिदृश्य की एक महत्वपूर्ण झलक है। इससे न केवल ब्रिक्स का दायरा बढ़ा है, बल्कि इसका वैश्विक प्रभाव भी व्यापक हुआ है। ब्रिक्स का यह नया स्वरूप एक बहुपक्षीय वैश्विक व्यवस्था के रूप में उभर रहा है, जो पश्चिमी प्रभाव को चुनौती देने की क्षमता रखता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह समूह आने वाले समय में वैश्विक अर्थव्यवस्था और कूटनीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।

अमेरिकी डॉलर के लिए चुनौती: क्या ब्रिक्स नई मुद्रा बनाएगा?

ब्रिक्स देशों के बीच अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने की चर्चाएं काफी समय से चल रही हैं। ब्रिक्स में प्रस्तावित नई मुद्रा की बात ने इस चर्चा को और हवा दी है। हालांकि, एक स्थिर और स्वीकार्य मुद्रा बनाना किसी भी देश के लिए चुनौतीपूर्ण होता है। अमेरिका की मजबूत अर्थव्यवस्था और डॉलर की स्थिरता को देखते हुए ब्रिक्स देशों के लिए इस दिशा में आगे बढ़ना आसान नहीं होगा। फिर भी, ब्रिक्स देशों के बीच व्यापार में स्थानीय मुद्राओं के उपयोग को बढ़ावा देने के फैसले से यह स्पष्ट है कि ये देश डॉलर पर निर्भरता को कम करना चाहते हैं।

रूस के लिए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन: वैश्विक मंच पर शक्ति का प्रदर्शन-

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए यह शिखर सम्मेलन एक बड़ा मंच है, जहां वह यह दिखाना चाहते हैं कि यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी देशों द्वारा रूस को अलग-थलग करने के प्रयास विफल रहे हैं। पुतिन ब्रिक्स के विस्तार और इसके माध्यम से वैश्विक सुरक्षा और आर्थिक ढांचे में पश्चिमी प्रभुत्व को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं। उनका मानना है कि ब्रिक्स का बढ़ता प्रभाव न केवल रूस के लिए बल्कि वैश्विक राजनीति में एक संतुलन पैदा करेगा, जो पश्चिमी प्रभाव को कम करेगा।

ब्रिक्स की बढ़ती लोकप्रियता: सदस्यता के लिए होड़-

ब्रिक्स में शामिल होने के लिए अब तक 30 से अधिक देशों ने आवेदन किया है, जिसमें थाईलैंड, मलेशिया, वियतनाम, तुर्की, अल्जीरिया, इंडोनेशिया और नाइजीरिया जैसे महत्वपूर्ण देश शामिल हैं। इन देशों की रुचि ब्रिक्स के बढ़ते वैश्विक प्रभाव और आर्थिक लाभ से प्रेरित है। ब्रिक्स न केवल एक राजनीतिक मंच है, बल्कि आर्थिक अवसरों का भी बड़ा स्रोत बनता जा रहा है।

G7 बनाम BRICS: एक नए वैश्विक संतुलन की ओर-

जी7 और ब्रिक्स के बीच आर्थिक संतुलन तेजी से बदल रहा है। 1992 में जहां जी7 देशों की वैश्विक जीडीपी में हिस्सेदारी 45.5% थी, वहीं 2023 में ब्रिक्स की हिस्सेदारी 37.4% तक पहुंच गई है और जी7 की हिस्सेदारी घटकर 29.3% हो गई है। यह परिवर्तन इस बात का संकेत है कि उभरती अर्थव्यवस्थाएं तेजी से वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में अपनी जगह बना रही हैं। ब्रिक्स देशों का संयुक्त आर्थिक विकास दर 4% तक पहुंचने का अनुमान है, जो जी7 के 1.7% से काफी अधिक है।

वैश्विक व्यापार और ब्रिक्स का प्रभुत्व-

रूस के राष्ट्रपति पुतिन के अनुसार, ब्रिक्स दुनिया के 25% निर्यात का प्रतिनिधित्व करता है। इसके साथ ही, ब्रिक्स देश ऊर्जा, धातु और खाद्य जैसे क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यह समूह वैश्विक अर्थव्यवस्था के विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा है, जो इसके सदस्यों को आर्थिक स्थिरता और विकास के अवसर प्रदान करता है।

क्या ब्रिक्स वैश्विक व्यवस्था में बदलाव ला सकता है?

ब्रिक्स 2024 शिखर सम्मेलन के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि यह समूह अब केवल एक आर्थिक मंच नहीं है, बल्कि वैश्विक राजनीति और कूटनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। ब्रिक्स का विस्तार और इसके भीतर बढ़ते सहयोग से यह संभावना बनती है कि आने वाले समय में यह पश्चिमी देशों द्वारा नियंत्रित वैश्विक व्यवस्था को चुनौती दे सकता है। भारत के लिए यह एक महत्वपूर्ण अवसर है, जहां वह अपने आर्थिक और रणनीतिक हितों को आगे बढ़ा सकता है, साथ ही वैश्विक राजनीति में अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करवा सकता है।

By Ankit Verma 

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