साल 1984 की 2-3 दिसंबर की दरमियानी वह काली रात थी, जिसे भारत का इतिहास कभी नहीं भुला सकता। भोपाल शहर की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से लीक हुई मीथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस ने हजारों जिंदगियां लील लीं और लाखों लोगों को हमेशा के लिए पीड़ा के साये में धकेल दिया। 5,000 से ज्यादा लोगों की जान गई, हजारों बच्चे विकलांग हुए, और पीड़ितों की पीढ़ियां अब तक इसका असर झेल रही हैं।
आज भी जारी है त्रासदी का असर-
चार दशक बाद भी, गैस त्रासदी के पीड़ित और उनके परिवार गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। स्किन डिजीज, प्रजनन स्वास्थ्य की समस्याएं, और जन्मजात विकृतियां आज भी आम हैं। सिर्फ मानव जीवन ही नहीं, बल्कि पर्यावरण भी इस त्रासदी से प्रभावित हुआ। फैक्ट्री के आसपास के जलस्रोत जहरीले हो गए, जिसके कारण कई हैंडपंप सील कर दिए गए।
समस्या के समाधान में देरी-
त्रासदी के बाद राहत और निस्तारण कार्यों की शुरुआत बेहद धीमी रही। फैक्ट्री में बचा जहरीला कचरा अब भी समस्या बना हुआ है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, फैक्ट्री परिसर में आज भी 11 लाख टन जहरीली मिट्टी, 1 टन पारा और 150 टन भूमिगत कचरा मौजूद है।
समस्या को हल करने की समयरेखा:
- 2004: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में PIL दाखिल कर Dow Chemicals को जिम्मेदार ठहराने और कचरा निस्तारण की मांग की गई।
- 2005: गुजरात के एक वर्ल्ड-क्लास इंसीनरेटर को इस कार्य के लिए चुना गया, लेकिन 2007 में स्थानीय प्रदर्शन के कारण काम रुक गया।
- 2010: सुप्रीम कोर्ट ने पिथमपुर में कचरा जलाने की अनुमति दी, पर 2012 में राज्य सरकार ने फैसले का विरोध किया।
- 2015: पिथमपुर में एक ट्रायल रन हुआ, लेकिन स्थानीय निवासियों के विरोध के चलते प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकी।
सरकार की हालिया पहल-
2023 में, सरकार ने 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे के निस्तारण के लिए ₹126 करोड़ का बजट जारी किया। यह कचरा 2005 में फैक्ट्री परिसर से एकत्र किया गया था। हालांकि, अभी तक इसके निस्तारण का कार्य शुरू नहीं हो पाया है।
समस्या का समाधान: जटिल लेकिन जरूरी
विशेषज्ञों का मानना है कि कचरे का निस्तारण कोई आसान काम नहीं है। इसमें अत्यधिक खतरनाक रसायन हैं, और थोड़ी भी चूक से बड़ी आपदा हो सकती है। हालांकि, पर्यावरणविदों और स्थानीय निवासियों में इस फैसले को लेकर असहमति है।
सपोर्टर्स का तर्क:
उनका कहना है कि यह एक जरूरी कदम है। लंबे समय से जमा यह कचरा पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है और इसे नष्ट करना बेहद आवश्यक है।
क्रिटिक्स का तर्क:
आलोचकों का मानना है कि कचरा जलाने से वायु प्रदूषण का खतरा हो सकता है। पिथमपुर के निवासी इसे अपने स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए जोखिमपूर्ण मानते हैं।
क्या सीखने की जरूरत है?
भोपाल गैस त्रासदी भारतीय औद्योगिक प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण की विफलता का एक काला अध्याय है। इसे केवल एक घटना नहीं, बल्कि सतर्कता और जिम्मेदारी की आवश्यकता की चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए। आज जब हम 40 साल पीछे देखते हैं, तो सवाल उठता है—क्या इतने दशकों में हम पीड़ितों को न्याय दिला पाए? क्या हमने पर्यावरण को सुरक्षित करने के लिए पर्याप्त कदम उठाए? भोपाल गैस त्रासदी का जहर अभी भी जिंदा है, और यह हमें हर दिन हमारे कार्यों की जवाबदेही की याद दिलाता है।