पंजाब की राजनीति और सिख धर्म में गहरी पहचान रखने वाले नेताओं के लिए एक अनोखी सजा का मामला सामने आया है। हाल ही में अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में एक विशेष दृश्य देखने को मिला, जब पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल व्हीलचेयर पर बैठे हुए शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख पद से हटाए जाने के बाद अपनी सजा पूरी करने के लिए स्वर्ण मंदिर में सेवा करने पहुंचे। यह सजा कोई आम अदालत नहीं, बल्कि सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था अकाल तख्त ने उन्हें सुनाई थी।
क्या है अकाल तख्त की सजा?
अकाल तख्त सिख धर्म की सर्वोच्च संस्था है, जिसे गुरु हरगोबिंद साहिब ने 1609 में स्थापित किया था। इसका मुख्य कार्य सिख धर्म के अनुयायियों के लिए सामाजिक और धार्मिक दिशा-निर्देश तय करना है। अकाल तख्त का निर्णय किसी भी सिख के लिए अंतिम होता है, और इसे हर सिख को मानना अनिवार्य होता है। जब कोई व्यक्ति सिख धर्म के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, तो उसे तनखैया घोषित किया जाता है। इसके बाद उसे अपनी गलतियों का प्रायश्चित्त करने और सिख संगत से माफी मांगने का आदेश दिया जाता है।
सुखबीर सिंह बादल पर लगे आरोप-
सुखबीर सिंह बादल पर आरोप है कि उन्होंने पंजाब में डिप्टी सीएम रहते हुए कई ऐसे फैसले लिए जो सिख धर्म की भावनाओं के खिलाफ थे। इनमें प्रमुख रूप से डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम के प्रति नरम रुख, बरगड़ी बेअदबी कांड, जिसमें सिख युवाओं की हत्या हुई और पीड़ितों को न्याय नहीं मिला, और 2012 में सुमेध सिंह सैनी को पंजाब पुलिस का डीजीपी बनाना शामिल है। इन आरोपों के आधार पर अकाल तख्त ने उन्हें तनखैया करार दिया और शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष पद से हटाने का आदेश दिया।
सेवा के रूप में सजा
सजा के तौर पर सुखबीर सिंह बादल को स्वर्ण मंदिर में टॉयलेट की सफाई करने का आदेश दिया गया था। हालांकि, उनकी खराब सेहत को देखते हुए इस सजा में बदलाव किया गया और उन्हें दो दिनों तक स्वर्ण मंदिर के मुख्य द्वार पर सेवादार के रूप में तैनात करने का आदेश दिया गया। सजा पूरी होने के बाद वे तनखैया नहीं रहेंगे, और यह उनके धार्मिक और सामाजिक जीवन में वापसी की प्रक्रिया होगी। ऐसा नहीं है कि सुखबीर सिंह बादल पहले नेता हैं जिने अकाल तख्त से सजा मिली हो। इससे पहले भी कई बड़े नेताओं को तनखैया करार दिया जा चुका है, जिनमें महाराजा रणजीत सिंह, पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व गृह मंत्री बूटा सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह शामिल हैं।
सजा का सामाजिक प्रभाव
अकाल तख्त द्वारा दी गई सजा को पंजाब की राजनीति में गहरे असर के रूप में देखा जाता है। हालांकि इस सजा में शारीरिक तकलीफ या जेल जैसी कोई सजा नहीं होती, फिर भी धार्मिक और सामाजिक बहिष्कार का प्रभाव नेताओं के कोर वोटर्स पर पड़ता है। तनखैया करार दिए जाने से एक नेता की प्रतिष्ठा को गहरी चोट पहुंचती है और उनकी राजनीतिक छवि पर नकारात्मक असर पड़ता है। इस मामले ने यह साबित कर दिया है कि सिख धर्म की सर्वोच्च संस्था अकाल तख्त न केवल धार्मिक मामलों में, बल्कि राजनीति में भी अपनी भूमिका निभाती है, और इसके निर्णय किसी भी नेता के लिए उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं जितने कि अदालत के फैसले।