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भारतीय पत्रकारिता की सामाजिक बदलाव में रही अहम भूमिका... जानिए 245 साल की बुलंद आवाज का इतिहास

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आज भारतीय पत्रकारिता अपनी 245 वर्षों की यात्रा पूरी कर चुकी है। 29 जनवरी 1780 को जब जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने “बंगाल गैजेट” का प्रकाशन किया, तब भारतीय पत्रकारिता का सूरज उगा था। यह न केवल भारत का पहला समाचार पत्र था, बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आवाज उठाने का भी प्रतीक बना। हिक्की की निर्भीकता के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा, लेकिन उन्होंने पत्रकारिता को जनहित का माध्यम बना दिया। आज यानी 29 जनवरी को पूरे देश में 'भारतीय समाचार पत्र दिवस' मनाया जाता है। भारत में समाचार पत्रों के इतिहास के बारे में आइए विस्तार से जानते हैं।

आरंभिक पत्रकारिता और समाज सुधार की दिशा-

जेम्स ऑगस्टस हिक्की के बाद जेम्स बकिंघम ने “कलकत्ता जनरल” का प्रकाशन किया, जो ब्रिटिश नीतियों का कड़ा आलोचक था। बकिंघम को अपनी निर्भीकता के चलते देश निकाला दिया गया। भारतीय समाज सुधार के क्षेत्र में पत्रकारिता का योगदान भी उल्लेखनीय रहा। राजा राममोहन राय ने “संवाद कौमुदी” (1821) और “मिरातुल अखबार” (1822) जैसे समाचार पत्रों के माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों के खिलाफ मुहिम चलाई। उन्होंने सती प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जागरूकता फैलाने का कार्य किया।

भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता का उदय-

भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता की शुरुआत “उदन्त मार्तंड” से हुई, जिसका प्रकाशन जुगल किशोर शुक्ल ने 30 मई 1826 को किया। हिंदी की खड़ी बोली और ब्रज भाषा के मिश्रण में प्रकाशित यह समाचार पत्र ब्रिटिश प्रशासन की कठोर नीतियों के कारण 1827 में बंद हो गया। इसके बाद “बनारस अखबार” और “समाचार सुधावर्षण” जैसे पत्रों ने हिंदी पत्रकारिता को मजबूती प्रदान की। “समाचार सुधावर्षण” का प्रकाशन 1854 में बाबू श्याम सुन्दर सेन के संपादन में कलकत्ता से शुरू हुआ।

ब्रिटिश शासन और पत्रकारिता का संघर्ष-

ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय पत्रकारिता ने हमेशा जनहित की बात की और ब्रिटिश शासन की नीतियों का विरोध किया। इस दौरान “टाइम्स ऑफ इंडिया” (1861), “द स्टेट्समेन” और “मराठा” जैसे प्रमुख समाचार पत्र प्रकाशित हुए। “केसरी” और “मराठा” के संपादक लोकमान्य तिलक को ब्रिटिश सरकार के विरोध के कारण जेल भेजा गया। पत्रकारों को धमकाया गया और कई बार समाचार पत्रों को बंद भी कर दिया गया, लेकिन जनहित के लिए इनका प्रकाशन निरंतर जारी रहा।

आपातकाल: पत्रकारिता पर कड़ा नियंत्रण-

1975 में आपातकाल के दौरान भारतीय पत्रकारिता पर कड़ा नियंत्रण था। मीडिया को दबाने के लिए सरकारी अधिकारियों ने संपादकों को धमकाया, और कई समाचार पत्रों को बंद कर दिया गया। इस समय मीडिया की स्वतंत्रता पर एक गंभीर संकट उत्पन्न हो गया था। लेकिन इसके बावजूद पत्रकारिता ने सच्चाई और जनहित के प्रति अपनी प्रतिबद्धता नहीं छोड़ी।

तीन महत्वपूर्ण दौर: ब्रिटिश काल, आपातकाल और वर्तमान-

अगर भारतीय पत्रकारिता की यात्रा को संकट के लिहाज से देखें तो इसे तीन प्रमुख भागों में बांटा जा सकता है — ब्रिटिश शासन का दौर, आपातकाल का दौर और आज का दौर। ब्रिटिश शासन के दौरान पत्रकारिता ने जनमत को आकार देने में अहम भूमिका निभाई, लेकिन इस पर भारी जुल्म ढाए गए। आपातकाल के दौरान मीडिया पर सीधा नियंत्रण किया गया और खबरें दबाई गईं। वहीं आज, हालात भले ही अलग हैं, लेकिन पत्रकारिता को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

वर्तमान पत्रकारिता और चुनौतियां-

आज पत्रकारिता तकनीकी प्रगति के कारण डिजिटल युग में प्रवेश कर चुकी है। सोशल मीडिया और 24x7 न्यूज़ चैनलों के दौर में समाचार तेजी से प्रसारित हो रहे हैं, लेकिन साथ ही फेक न्यूज़ और प्रोपेगैंडा की चुनौतियां भी बढ़ी हैं। स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता की आवश्यकता आज पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है।

245 वर्षों की यात्रा और जनजागरण की भूमिका-

भारतीय पत्रकारिता की यह 245 वर्षों की यात्रा न केवल इतिहास की गवाह है, बल्कि समाज के बदलाव और जनजागरण का माध्यम भी रही है। इसने हर दौर में जनहित की आवाज को बुलंद किया है। आज भी पत्रकारिता को अपनी इस भूमिका को ईमानदारी और निर्भीकता के साथ निभाने की आवश्यकता है।

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