25 मार्च 1971 को पाकिस्तान ने अपने पूर्वी हिस्से में विद्रोह को कुचलने के नाम पर ऑपरेशन सर्च लाइट शुरू किया। जनरल टिक्का खान की अगुआई में पाक सेना ने बांग्लादेश के झंडे को देखते ही निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया। ढाका यूनिवर्सिटी पर हमले के साथ, दो दिन के भीतर 1.5 लाख से अधिक लोग मारे गए। इस हिंसा से बचकर असम और पश्चिम बंगाल में शरण लेने के लिए 10 लाख लोग भारत की सीमा की ओर दौड़ पड़े।
"भारत की सीमा पर बांग्लादेशी शरणार्थियों की भारी भीड़"
27 मार्च 1971 को कर्फ्यू हटने के बाद, बांग्लादेश की 80% आबादी अपनी जान बचाने के लिए भारत के सीमावर्ती राज्यों में घुस आई। अप्रैल के पहले सप्ताह में असम और पश्चिम बंगाल में 10 लाख शरणार्थी खड़े थे, जो पाकिस्तान की बर्बरता से बचने के लिए सुरक्षा की तलाश में थे।
"सैम मानेकशॉ की साहसिक चुनौती: इंदिरा गांधी से सीधे युद्ध की बात"
27 अप्रैल 1971 को, जब इंदिरा गांधी ने शरणार्थी संकट के बीच सेना को पूर्वी पाकिस्तान भेजने की योजना बनाई, तो जनरल सैम मानेकशॉ ने अप्रत्याशित रूप से विरोध किया। इंदिरा ने जब युद्ध की बात की, सैम ने साफ शब्दों में कहा, "मैं युद्ध के लिए तैयार नहीं हूं।" उन्होंने सेना की स्थिति, आपूर्ति और मौसम के कारण युद्ध की विफलता की संभावना जताई और 6 महीने का समय मांगा। सैम का यह साहसिक कदम इंदिरा गांधी को चौंका गया, लेकिन उन्होंने अंततः सैम को पूरा नियंत्रण देने का फैसला किया, और फिर भारतीय सेना ने 1971 में पाकिस्तान पर निर्णायक विजय हासिल की।
INS विक्रांत को बचाने के लिए गाजी को धोखा"
3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी पनडुब्बी PNS गाजी ने भारतीय विमानवाहक पोत INS विक्रांत को डुबोने के आदेश प्राप्त किए थे, लेकिन भारत ने चतुराई से उसे बचा लिया। पाकिस्तानी पनडुब्बी ने विशाखापत्तनम के पास हमला करने की कोशिश की, लेकिन भारतीय नेवी ने विक्रांत को छिपाने के लिए उसे वहां से हटा दिया। इस दौरान, एक भारतीय गश्ती बोट के पास से गुजरने पर गाजी की पहचान छिपाने के लिए उसे डुबो दिया गया। 3 दिसंबर की शाम को विस्फोट हुआ, और गाजी समुद्र में डूब गई।
अमेरिका का सातवां बेड़ा और रूस का दमदार जवाब"
1971 के युद्ध में जब पाकिस्तान के हालात बिगड़े, अमेरिका ने अपने USS एंटरप्राइज विमानवाहक पोत को पूर्वी पाकिस्तान भेजने की घोषणा की, यह कहते हुए कि ढाका में कई अमेरिकी नागरिक फंसे हुए हैं। हालांकि, एक दिन पहले ही अमेरिका अपने नागरिकों को निकाल चुका था, और यह एक रणनीति थी भारत पर दबाव डालने की। इस बीच, इंदिरा गांधी ने सोवियत संघ से मदद मांगी, और सोवियत बेड़ा बंगाल की खाड़ी में पहले ही पहुंच चुका था। रूस की मौजूदगी के सामने अमेरिका और ब्रिटेन के जहाज कुछ नहीं कर पाए। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने सरेंडर किया और भुट्टो ने हार के संकेत के रूप में कागज फाड़ दिए।
"भुट्टो का UN में आंसू और पाकिस्तान का आत्मसमर्पण"
1971 के युद्ध में पाकिस्तान की हार तय हो चुकी थी। सीजफायर के लिए जुल्फिकार अली भुट्टो ने UN में भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की। 16 दिसंबर को न्यूयॉर्क में भुट्टो की आंखों में आंसू थे, और वे सुरक्षा परिषद से न्याय की अपील कर रहे थे। इस बीच, उन्हें यह खबर मिली कि पाकिस्तान की सेना ने ईस्ट पाकिस्तान में सरेंडर कर दिया है। गुस्से में भुट्टो ने सीजफायर प्रपोजल फाड़ दिया और मीटिंग छोड़ दी, कहते हुए, "मैं अपने देश के अपमानजनक आत्मसमर्पण में भागीदार नहीं बनूंगा!
By Ankit Verma