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Birthday Special: सिर्फ तबले के उस्ताद नहीं हैं जाकिर हुसैन, और भी हैं कई शौक

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(Special story) देश के मशहूर तबला वादक जाकिर हुसैन ने अपने बचपन में ही कला का जादू बिखेरना शुरू कर दिया था। जब वह अपनी उंगलियों और हाथ की थाप से तबला बजाते हैं तो दुनिया मंत्रमुग्ध हो जाती है। उनके तबले के सुर को सुनकर लोग कहते हैं 'वाह उस्ताद'। जाकिर हुसैन ने अपनी कठिनाईयों और संघर्षों के बावजूद अपनी कला से पूरी दुनिया में नाम रोशन किया है। जाकिर हुसैन की सादगी और विनम्रता ने उन्हें संगीत प्रेमियों के बीच में बहुत लोकप्रिय बना दिया है। आज उनके जन्मदिन के मौके पर आइए जानतें उनसे जुड़ीं कुछ दिलचस्प बातें..

जाकिर हुसैन के बारे में -
जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था। जाकिर हुसैन अपने समय के बहुत बड़े तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा के बेटे हैं। उस्ताद अल्ला रक्खा ने कई सारे कंसर्ट्स में पंडित रवि शंकर के साथ जुगलबंदी भी की थी जाकिर को तबला बजाने का यह हुनर अपने पिता से विरासत में मिला है। उन्होंने बचपन से ही पूरी लगन के साथ वाद्य बजाना सीखा। महज तीन साल की उम्र में ही उन्होंने अपने पिता से पखावज बजाना सीख लिया था। जाकिर की काबीलियत से पंडित रवि शंकर काफी प्रभावित थे। उन्होंने USA की यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन में म्यूजिक टीचर के तौर पर जाकिर के नाम का सुझाव दिया था।

जाकिर हुसैन की शादी-

जाकिर हुसैन ने साल 1978 में इटैलियन लड़की एंटोनिया मिनेकोला से शादी की थी। जिनके साथ वो आज भी हैं और उनसे उन्हें दो बेटियां इसाबेला कुरैशी और अनिशा कुरैशी है। 

11 साल की उम्र में  पहला कॉन्सर्ट-

जाकिर हुसैन ने महज 11 साल की उम्र में अमेरिका में अपना पहला कॉन्सर्ट किया था। इसके बाद साल 1973 में अपना पहला एल्बम 'लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड' लॉन्च किया। वे प्लैनेट ड्रम नाम के एक रिद्धम बैंड का हिस्सा रहे। इस बैंड में उनके साथी मिकी हार्ट, सिकिरू एडिपोजू, जियोवन्नी हिडाल्गो थे।  साल 1992 में इस ग्रुप को विश्व के श्रेष्ठ म्यूजिक एल्बम का ग्रैमी अवॉर्ड मिला। इस बैंड ने साल 2007 में एक बार फिर से अपना जलवा बिखेरा। ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट नाम का एल्बम लेकर ये आए और एक बार फिर से इस बैंड की झोली में ग्रैमा अवॉर्ड आया।

गोद में रख लेते थे तबला-

ट्रेन में बैठने के लिए उस्ताद के पास आरक्षित सीट नहीं होती थी, इसलिए वह अखबार बिछाकर नीचे बैठ जाते थे। तबले पर किसी का पैर या जूता ना लगे, इसलिए वह उसे अपनी गोद में रख लेते थे। जब तक उनका सफर जारी रहता था, वह तबले को एक बच्चे की तरह गोद में उठाए रखते थे। संगीत यात्रा के दौरान पैसे के अभाव के कारण वह अपने परिवार से भी मिलने नहीं जा पाते थे। लगातार संघर्षों के बाद जब उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ, तब वह अपनी संगीत यात्रा में से समय निकालकर परिवार से मिलने जाने लगे।

जाकिर की जिंदगी में 5 रुपये की कीमत

उनकी जिंदगी से जुड़ा एक बहुत ही दिलचस्प किस्सा है जब जाकिर हुसैन 12 साल के थे तब वो अपने पिता के साथ एक कॉन्सर्ट में गए थे। उस कॉन्सर्ट में पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खान, बिस्मिल्लाह खान, पंडित शांता प्रसाद और पंडित किशन महाराज जैसे संगीत की दुनिया के दिग्गज पहुंचे थे। ये सभी दिग्गज स्टेज पर थे और अल्ला रक्खा खान के साथ 12 साल के जाकिर भी स्टेज पर थे। उस दौरान मंच पर प्रदर्शन खत्म होने के बाद जाकिर को 5 रुपये मिले।  जाकिर हुसैन ने इसका जिक्र एक इंटरव्यू में करते हुए कहा था, "उसके बाद मैंने बहुत पैसा कमाया लेकिन वो 5 रुपये मेरे लिए बहुत कीमती है।"

ग्रैमी अवॉर्ड से सम्मानित

तमाम कठिनाइयों भरे रास्ते को पार करने के बाद उन्होंने दुनिया भर के लोगों के दिल में जगह बनाई। जब भी वह तबला बजाते हैं तो लोग अपनी सुध बुध खो बैठते हैं और एक नई दुनिया के सफर का आनंद लेते हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत के विकास में उस्ताद का महान योगदान रहा है। साल 1988 में पद्मश्री और साल 2002 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। इसके बाद 2009 में उन्हें संगीत के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार ग्रैमी अवॉर्ड से भी नवाजा गया। और साल 2023 में जाकिर हुसैन को पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया।

हुसैन का फिल्मी सफर-

हुसैन ने सिनेमा में म्यूजिक भी दिया है। उनकी सबसे पहली फिल्म थी हीट एंड डस्ट फिल्म का निर्माण स्माइल मर्चेंट ने किया था। फिल्म में शशि कपूर अहम रोल में थे स्माइल के साथ जाकिर की जोड़ी खूब जमी। 1993 में आई इन कस्टडी और 2001 में आई The Mystic Masseur में जाकिर ने म्यूजिक दिया। दोनों ही फिल्मों में ओम पुरी अहम रोल में थे। इसके अलावा साल 1997 में जाकिर हुसैन फिल्म साज में शबाना आजमी के साथ नजर आए थे। इसमें उन्होंने बतौर तबला वादक तो काम किया ही साथ में एक्टिंग में भी हाथ आजमाया था।

By Ankit verma

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